Apr 26, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जीवन में कई बार हम ऐसी विपत्तियों, चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों के दौर से गुजरते हैं कि समझ ही नहीं आता है कि किया क्या जाए? अक्सर सुनहरे भविष्य को लेकर बनाए गए सपने, भविष्य को लेकर बुनी गई सुनहरी आशाएँ, उन्हें हक़ीक़त में बदलने के लिए बनाई गई योजनाएँ आदि सब धरे के धरे रह जाते हैं और हमें समझ ही नहीं आता है कि ऐसी असमंजस भरी स्थिति से कैसे पार पाया जाए? कुछ लोग ऐसे दौर में क़िस्मत को; तो कुछ ईश्वर को दोष देने लगते हैं और हार मान बैठ जाते हैं और इसके ठीक विपरीत, इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो हार मानने के स्थान पर सफलता के एक ऐसे अचूक सूत्र का इस्तेमाल करते जो स्थिति, परिस्थिति, चुनौती, परेशानी आदि के परे जाकर अपने लक्ष्यों को पा लेते हैं।आईए, आज हम सफलता के ऐसे ही अचूक सूत्र को एक कहानी के माध्यम से सीखने का प्रयास करते हैं।
महेश कई वर्षों से अपने घर के समीप पहाड़ी के ऊपर स्थित माताजी के मदिर के दर्शन करना चाहता था। लेकिन अपनी व्यस्त पारिवारिक और व्यवसायिक दिनचर्या के चलते कभी कर नहीं पाता था। एक दिन उसके मन में विचार आया कि क्यों ना मैं अपनी दिनभर की सारी ज़िम्मेदारियाँ निपटाने के बाद शाम के समय पहाड़ी पर चढ़कर दर्शन कर लूँ। भगवान के दर्शन करने के दृढ़ निश्चय के साथ महेश उसी दिन शाम को अपनी छोटी टॉर्च ले पहाड़ी चढ़ने के लिए निकल पड़ा। वह अभी आधी पहाड़ी भी नहीं चढ़ पाया था कि चारों ओर रात्रि का अंधेरा घिर आया। कुछ देर तो महेश अपनी टॉर्च का इस्तेमाल करता हुआ आगे बढ़ा, लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि टॉर्च की रोशनी उसे बमुश्किल 10 फ़ीट तक ही देखने में मदद कर रही है। उसके मन में विचार आया कि इतनी कम रोशनी में पहाड़ की चोटी तक पहुँचना मुश्किल ही होगा। शायद यह असम्भव सा लगने वाला कार्य उसे ज़िंदगी भर के लिए कोई परेशानी ना दे दे। विचार के प्रबल होते ही उसने अगली सुबह तक के लिए वहीं रुककर इंतज़ार करने का निर्णय लिया। उसने अपने साथ लाई दरी को ज़मीन पर बिछाया और वहीं लेट कर चाँदनी रात में आकाश को तारों से जगमगाता देखने का आनंद लेने लगा।
अभी कुछ ही समय बीता होगा कि उसे लालटेन लिए एक बुजुर्ग व्यक्ति पहाड़ी से उतरते हुए दिखे। महेश उसी पल उनके पास गया और उन्हें प्रणाम करते हुए बोला, ‘महाशय, मैं अपनी टॉर्च की रोशनी से मात्र 10 फ़ीट की दूरी तक देख पा रहा था, इसीलिए जोखिम से बचने के लिए मैंने रात यहीं गुज़ार कर, दिन के उजाले का इंतज़ार करने का निर्णय लिया। लेकिन आप तो लालटेन लिए ही चले जा रहे हैं।’ महेश अपनी बात पूरी कह पाता उससे पहले ही उस बुजुर्ग व्यक्ति ने उसे टोकते हुए कहा, ‘वत्स, मेरे लालटेन की रोशनी अगला कदम उठाने के लिए पर्याप्त है। जैसे ही मैं एक कदम आगे बढ़ाता हूँ मुझे यह अगले कदम को रखने के लिए सुरक्षित स्थान दिखा देती है और मैं रोज़ अंधेरा होने के बाद भी अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता हूँ।’
बात तो उस बुजुर्ग की एकदम सही है दोस्तों, जीवन में आगे बढ़ने, सपनों को सच करने के लिए हमें सिर्फ़ अगला कदम उठाने का साहस होना चाहिए क्योंकि जैसे ही दुविधा, परेशानी, विपरीत परिस्थिति या चुनौती के दौर में आप अगला कदम उठाते हैं, आपको लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने के लिए अगला कदम रखने का स्थान मिल जाता है। लेकिन यह तभी सम्भव हो सकता है जब आप के पास इच्छाशक्ति की लालटेन हो और आपने पहाड़ समान बड़े लक्ष्य को हर हाल में पाने का फ़ैसला ले रखा हो।
जी हाँ दोस्तों, तमाम विपत्तियों, चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों के दौर में एक ही बात आपको विजेता बना सकती है वह है पूर्ण इच्छाशक्ति के साथ लक्ष्य की दिशा में उठाया गया एक छोटा सा कदम। ऐसी स्थिति में सिर्फ़ एक बात याद रखिएगा जो रुक जाता है, वह वहीं रह जाता है, बर्बाद हो जाता है और जो आगे बढ़ता है, वह अपने लक्ष्य को पा लेता है। इसीलिए कहा गया है, ‘ठहरा हुआ पानी और रुका हुआ इंसान, दोनों सड़ जाते हैं।’ इसलिए दोस्तों लक्ष्यों को पाने के लिए अगर आपके पास दस कदम चलने के लिए आवश्यक दृष्टि, ज्ञान, संसाधन और क्षमता है तो याद रखें इतना ही पर्याप्त है। इन्हें लेकर जीवन में आगे बढ़िए और अपने लक्ष्य को पाकर सफलता की एक नई मिसाल पेश कीजिए; जीवन के एक नए स्वर्णिम युग की नई शुरुआत कीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments