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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बहती का नाम - ज़िंदगी

Updated: Apr 2, 2023

Mar 28, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आप सुखी है या दुखी, आप परेशानी में जीवन जी रहे है या खुश हैं, यह सब आपके अपने व्यक्तिगत चुनावों का नतीजा है। जी हाँ दोस्तों, जीवन में हर पल आप कुछ निर्णय लेते हैं, कुछ चीजों को चुनते हैं। कुछ के साथ समय बिताते हैं तो कुछ को वहीं छोड़ जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। रोज़मर्रा में किए गए इन्हीं निर्णयों या चुनावों का नतीजा होता है सुख, दुःख, परेशानी या ख़ुशी।


अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। कहने को तो नदी और तालाब दोनों ही पानी के वाहक हैं। लेकिन उसके बाद भी दोनों में अंतर है, नदी में पानी चलायमान रहता है तो दूसरी ओर तालाब में रुका हुआ। जब तक स्थितियाँ सामान्य है तब तक तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है लेकिन अगर दोनों के ही पानी में कुछ गंदगी गिर जाए तो क्या होगा? उत्तर एकदम सरल है नदी का बहता पानी उस गंदगी को भी अपने साथ बहा कर ले जाएगा। लेकिन तालाब से अगर उस गंदगी को समय रहते नहीं निकाला तो वह पूरे पानी को सड़ा भी सकती है।


ठीक इसी तरह अगर आप जीवन और अपने विचारों को नदी के समान चलायमान रखते हैं तो रोज़मर्रा के जीवन में मिली नकारात्मकता रूपी गंदगी अन्य अच्छे अनुभवों के साथ खत्म हो जाती है। लेकिन अगर आप तालाब के रुके हुए पानी के समान उस नकारात्मक अनुभवों रूपी गंदगी के साथ जीवन में रुक कर बैठ जाते हैं तो वह आपके पूरे जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगती है।


इसलिए दोस्तों, जीवन को नदी समान चलायमान मानो, जो इस बात की परवाह नहीं करती कि उसमें क्या पड़ा है या क्या गिरा है। वह तो बस निरंतर बहती रहती है; आगे बढ़ती रहती है। अगर आप भी रोज़मर्रा में मिलने वाले अनुभवों को फिर चाहे वह सकारात्मक हों या नकारात्मक, स्वीकारते हुए आगे बढ़ते जाएँगे, तो आप अपने जीवन को सही मायने में जीना सीख जाएँगे। लेकिन अगर आप किसी नकारात्मक अनुभव को लेकर बैठ याने जीवन में एक स्थान पर ठहर गए और सोचने लगे कि मेरी क़िस्मत तो ख़राब है; मेरे साथ ही हमेशा ऐसा क्यों होता है; पता नहीं क्यों लोग मुझे समझ नहीं पाते हैं, तो समझ लीजिएगा बहने वाला पानी अब रुक गया है और उसने सड़ना शुरू कर दिया है। इसीलिए शायद कहा गया है, ‘रुका हुआ पानी और ठहरा हुआ मनुष्य दोनों सड़ जाते हैं।’


याने दोस्तों, रोज़मर्रा में किए गए कार्यों का परिणाम कुछ भी क्यों ना हो। उससे मिलने वाले अनुभव भी कैसे भी क्यों ना हो, हमें जीवन में हर हाल में आगे बढ़ते जाना है। इसके लिए हमें बस एक बात को स्वीकारना होगा कि ख़ुशी भी जीवन समान बहने में है अर्थात् यह गतिविधियों में निहित है। अगर आप लगातार गतिविधि में शामिल रहेंगे, तो आपको खुश होने के अनेकों मौके मिलते जाएँगे और अगर आप किसी एक गतिविधि में उसके मिले परिणाम के कारण रुक गए। तो यक़ीन मानिएगा आपका जीवन वहीं रुक जाएगा। इसलिए दोस्तों, किसी विचार, किसी पूर्व अनुभव में अटक रहे हो, तो उसमें से निकालने का प्रयास करो। एक लंबी सैर के लिए जाओ, व्यायाम करो, योग करो, ध्यान करो, गाओ, नृत्य करो, पेंट करो, फुटबॉल खेलो, तैरो, यात्रा करो, या एक नया कौशल सीखो। कहने का अर्थ है कुछ भी चुनो, कुछ भी करो, बस उसमें गहराई से उतर कर पूरी तरह जुट जाओ। बिलकुल एक बच्चे की तरह; वह जिसमें लग जाता है, पूरा उसी का हो जाता है। उस वक्त वह जो खुद को भूल जाता है, परिवेश और समय से भी बेखबर होता है, और अंततः अपने कार्य रूपी खेल के साथ एक हो जाता है।


दूसरे शब्दों में कहा जाए दोस्तों, तो कुल मिलाकर हमें पुराने अनुभवों को पीछे छोड़कर गहराई के साथ अपने कार्यों से जुड़ना होगा। फिर चाहे वह पढ़ना हो या खेलना, किसी कार्य को पूर्ण करना हो या कुछ नया सीखना अथवा बच्चों का पालन पोषण हो या प्यार। क्योंकि जब आप जीवन के प्रवाह के साथ बहते हैं तब आप स्वयं से बेख़बर, मुस्कुराते हुए, एक नए और अनूठे अनुभव के साथ समय और स्वयं से बेख़बर हो स्वर्गिक आनंद के साथ होते हैं। अर्थात् आप गतिविधि के प्रवाह में समय और स्वयं की समझ को खो देते हैं और पूरी तरह उसी पल में जीना शुरू कर देते हैं। जब आप किसी पल में पूरी तरह मौजूद रहकर किसी सार्थक कार्य में डूब जाते हैं और उस पल आप श्रेष्ठता का आनंददायक अनुभव लेते हैं , तब इस दुनिया में इससे बेहतर और क्या हो सकता है? आप ईश्वर से और क्या मांग सकते हैं? सोच कर देखिएगा दोस्तों, जीवन के प्रवाह का अर्थ है, जो कार्य हम कर रहे हैं, जो हम महसूस कर रहे हैं, उसमें आसपास के वातावरण के साथ सामंजस्य रखते हुए पूरी तरह मौजूद रहना। जब आप गाने, नाचने, खेलने या किसी अपने के साथ समय बिताने अथवा बात करने या फिर कोई अच्छी किताब पढ़ने जैसा कोई मनपसंद कार्य करते हैं तो आपके लिए नकारात्मक अनुभव के बाद भी प्रवाह में आना आसान हो जाता है। जी हाँ दोस्तों, जीवन को गहरे आनन्द, रचनात्मकता और पूर्ण जुड़ाव के साथ जीने का यही सर्वोत्तम उपाय है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर



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