Oct 09, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अगर रिश्तों को बेहतर बनाना है या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि अगर जीवन को बेहतर बनाना है तो आपको तीन कलाओं में निपुण बनना होगा। पहली, कैसे सोचें, दूसरी कैसे सुनें और तीसरी कैसे बोलें। जी हाँ, सामान्य से लगने वाले यह तीन कार्य वाक़ई में इतने महत्वपूर्ण होते हैं। हक़ीक़त में कानों में आवाज़ जाना सुनना नहीं होता, जवाब देने के लिए तार्किक आधार पर सुनना, सुनना नहीं होता और इसी तरह गले से आवाज़ निकालना बोलना नहीं होता। सोच कर देखिएगा, अक्सर हम बोली गई बातों के शब्द पकड़ते हैं और फिर उन शब्दों पर अपने मत या फ़ायदे के अनुसार जवाब देने के लिए सोचते हैं और फिर इसी सोच को अपने शब्दों से व्यक्त करते हैं। शायद इसीलिए बातचीत के मुख्य उद्देश्य को चूक जाते हैं और ग़लतियाँ कर बैठते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो शब्दों को पकड़कर सोचना और प्रतिक्रिया देना कभी भी संवाद को उसके सही उद्देश्य के अनुसार पूरा नहीं करता है। अपनी बात को मैं एक बहुत ही प्यारी छोटी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
एक बार शेखचिल्ली ने लोगों के बातों में आकर एक सेठ के यहाँ नौकरी कर ली। जल्द ही शेखचिल्ली ने सेठ के घर का पूरा कामकाज सम्भाल लिया। अब साफ़-सफ़ाई करना, खाना बनाना, कपड़े धोना आदि सब-कुछ शेखचिल्ली के ज़िम्मे था। शेखचिल्ली की लगन देख सेठ बहुत खुश था। उसे अब किसी बात की फ़िक्र नहीं थी सिवाय शेखचिल्ली की एक बुरी आदत के। शेखचिल्ली साफ़-सफ़ाई के दौरान इकट्ठा हुआ सारा कूड़ा-करकट ऊपरी मंज़िल की खिड़की से बाहर फेंक दिया करता था, जो अक्सर राहगीरों के ऊपर गिर ज़ाया करता था।
कई दिनों तक तो आस-पास के लोगों और राहगीरों ने शेखचिल्ली के सुधर जाने का इंतज़ार करा लेकिन जब बहुत दिनों तक उसकी आदत में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, तो आस-पास के सभी लोग इकट्ठा होकर, मालिक के पास पहुंचे और शेखचिल्ली की शिकायत करी। मालिक ने शेखचिल्ली को बुलवाया और उस समझाते हुए कहा, ‘देखो, इतने सारे लोग तुम्हारी शिकायत करने आए हैं। तुम जो रोज़ खिड़की से कचरा बाहर फेंकते हो, उससे इनके कपड़े ख़राब हो जाते हैं। तुम पहले भले लोगों को देखा करो और उसके बाद कचरा फेंका करो।’ सेठ की बात सुन शेखचिल्ली ने तुरंत हाँ में सर हिलाया और सेठ का इशारा पा घर के बचे कार्य निपटाने में लग गया।
शेखचिल्ली के जाने के बाद सेठ ने एक बार फिर सभी लोगों से माफ़ी माँगी और ध्यान रखने का कहा। अगले दिन शेखचिल्ली ने अपनी आदतानुसार पूरे घर की अच्छे से साफ़-सफ़ाई करी और फिर घर का सारा कचरा इकट्ठा करके खिड़की के पास खड़ा हो गया। कुछ देर तक कचरा लिए यूँही खड़े रहने के बाद शेखचिल्ली ने खिड़की से धीरे-धीरे कचरा नीचे फेंकना शुरू किया। शेखचिल्ली को व्यवस्थित तरीके से कचरा फेंकते देख मालिक खुश हो गया। लेकिन उसकी ख़ुशी ज़्यादा देर तक नहीं चली क्यूँकि कुछ ही मिनटों बाद एक युवा ग़ुस्से से चिल्लाता हुआ सेठ के पास आया और बोला, ‘आज फिर शेखचिल्ली ने घर का सारा कचरा मेरे ऊपर फेंक दिया है। देखो मेरे सारे कपड़े गंदे हो गए हैं, अब इन गंदे कपड़ों में मैं कैसे मीटिंग के लिए जाऊँ?’
सेठ ने तुरंत शेखचिल्ली को बुलाया और बोला, ‘कल ही तो मैंने इस विषय में समझाया था और आज फिर भी तूमने इस भले मानुष पर सारा कचरा फेंक दिया।’ सेठ की बात सुन शेखचिल्ली बड़ी विनम्रता और सादगी के साथ बोला, ‘मालिक, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैंने तो वही करा है जो आपने कहा था।’ आश्चर्य से भरा सेठ शेखचिल्ली की ओर देखता हुआ बोला, ‘मैंने कहा? कब…’ पूरी मासूमियत के साथ शेखचिल्ली बोला, ‘मालिक कल ही तो आपने कहा था, ‘तुम पहले भले लोगों को देखना, फिर कचरा बाहर फेंकना।’ मैंने ऐसा ही किया, मैं कचरा लेकर खिड़की के पास तब तक खड़ा रहा जब तक ये भला दिखने वाला व्यक्ति नहीं आ गया।’
साथियों, मैंने हास्य से शुरू ज़रूर किया है, लेकिन इसमें बात बड़ी गहरी छुपी हुई है। बोले गए शब्दों को पकड़ने के आधार पर देखा जाए तो शेखचिल्ली सही था। लेकिन वह शब्दों के भाव को पकड़ नहीं पाया था और इसीलिए बातचीत का परिणाम वह नहीं निकला जिसकी अपेक्षा थी। याद रखिएगा साथियों, बातचीत से अपेक्षित परिणाम तभी पाया जा सकता है जब बात को भाव के साथ कहा जाए, समझने के आधार पर सुना जाए और समाधान के उद्देश्य के आधार पर उसपर सोचा जाए। इसीलिए तो कहा गया है दोस्तों, ‘जो बात चित्त तक पहुँच जाए, वही बातचीत है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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