बाहर का संसार वैसा ही है, जैसा भीतर का मन…
- Nirmal Bhatnagar
- Apr 21
- 3 min read
Apr 21, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हमारा मन हमारा सबसे बड़ा साथी भी है और हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती भी क्योंकि हमारी सोच, हमारी भावनाएँ और जीवन में लिए जाने वाले सभी फैसले, सभी कुछ मन से तय होते हैं। अगर मन शांत और नियंत्रित है, तो जीवन आसान लगता है। लेकिन अगर मन बेकाबू हो जाए, तो सब कुछ याने सुख होते हुए भी हम दुखी महसूस करते हैं। इसीलिए कहते हैं, “मन को साधना ही असली साधना है।”
इसी बात को अर्जुन को समझाते हुए भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “मन बहुत चंचल, बलवान और अपने आप में भटकने वाला है। इसे रोकना वायु को रोकने जैसा कठिन है।” बात सही भी है, हमारा मन एक पल में प्रसन्न और अगले ही पल बेचैन हो जाता है। इतना ही नहीं जीवन में सब कुछ मिलने के बाद भी यह हमेशा अतृप्त याने असंतुष्ट रहता है और इसीलिए यह किसी न किसी कमी या दुःख की ओर हमारे ध्यान को आकर्षित करता रहता है।
दोस्तों, हमारे मन का एक और स्वभाव या प्रवृति है, यह हमेशा अहम को बढ़ावा देना चाहता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारा मन हमेशा अहंकार का पोषण चाहता है। इसलिए जहाँ भी हमारा अहंकार चोट खाता है, मन तुरंत दुखी हो जाता है। इसकी पराकाष्ठा तो तब होती है जब अपमान ना होने पर भी यह कल्पना कर हमें दुख का अनुभव करवाता है। अर्थात् अगर यह वश में ना हो तो यह हमें व्यर्थ के तनाव और पीड़ा का एहसास करवाता है।
अक्सर हम सोचते हैं कि बाहरी समस्याएँ या परिस्थितियाँ हमारी अशांति का मूल कारण हैं। अगर यह याने बाहरी परिस्थितियाँ बदल जाएंगी तो हम सुखी हो जाएँगे। लेकिन यकीन मानियेगा अशांति का मूल स्रोत बाहरी परिस्थितियाँ या समस्याएँ नहीं हैं, बल्कि स्वयं हमारा चंचल और अस्थिर मन है। जब तक मन नियंत्रित नहीं होगा, बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, हम अशांत ही रहेंगे। अर्थात् अशांति हमारे भीतर से आती है। जब तक मन नियंत्रित नहीं होता, तब तक बाहरी सुख भी हमें सच्ची शांति नहीं दे सकते।
इसलिए मेरा मानना है कि अगर आप शांत और सुखी जीवन जीना चाहते हैं तो अपने मन को नियंत्रित करना याने मन को साधना सीखें, जो निश्चित तौर पर आसान नहीं होगा। लेकिन साथ ही यह भी याद रखिएगा कि यह असंभव भी नहीं है। इसे निरंतर अभ्यास और धैर्य से वश में किया जा सकता है। अभ्यास का अर्थ है बार-बार मन को चेतन रूप से सही दिशा में ले जाना। अर्थात् जब भी मन भटकने लगे, उसे सकारात्मक विचारों, ध्यान, भक्ति या स्वाध्याय की सहायता से धीमे-धीमे सही दिशा में लाना है। मन को भटकाव से रोक कर सही दिशा में लाना ही मन को साधने की साधना है।
उपरोक्त आधार पर कहा जाए तो अंदर की शांति ही बाहर का सुख है। जो व्यक्ति अपने भीतर शांति स्थापित कर लेता है, उसके लिए बाहर की दुनिया भी शांत और मधुर हो जाती है। बाहरी संघर्ष उसे विचलित नहीं कर पाते क्योंकि उसका मन स्थिर और संतुलित होता है। हमारे शास्त्रों में ऐसे व्यक्ति को ही 'मुनि' कहा गया है। ‘मुनि’, अर्थात् वह इंसान जिसने अपने मना यानी मन को जान और साध लिया है।
अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि शांति और सफलता बाहरी दुनिया में नहीं, हमारे अपने मन में छुपी हैं। जब हम अपने मन को समझते हैं, उसे दिशा देते हैं और निरंतर अभ्यास करते हैं, तब जीवन में सच्चा आनंद आता है। मन को साधना कठिन हो सकता है, लेकिन इसके परिणाम लंबे समय तक सुख और संतोष देने वाले होते हैं। यदि आप जीवन में स्थायी शांति और सफलता चाहते हैं, तो आज से ही मन को साधने का अभ्यास शुरू करें। हर दिन थोड़ा-थोड़ा मन को सम्भालें, जैसे कोई माली पौधों की देखभाल करता है। याद रखियेगा, भीतर की यह साधना ही जीवन में बाहरी फूल खिलाएगी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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