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बूढ़े वृक्ष भी प्यार, स्नेह और अपनत्व से खिल सकते हैं…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Dec 14, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक काल्पनिक कहानी से करते हैं। एक गाँव में आम का एक बहुत बड़ा और घना वृक्ष था। उस वृक्ष की छाया में गाँव की कई पीढ़ियों ने अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ दिन बिताए थे। गाँव की महिलायें भी सभी त्यौहारों पर उसकी पूजा किया करती थी तो कुछ उसकी पत्तियों को शुभ मान घर के द्वार या कलश में नारियल के साथ स्थापित भी किया करती थी।


गर्मी में बच्चे उसी पेड़ के नीचे छाँव में खेला करते थे और भूख लगने पर उसी वृक्ष पर पत्थर मार, उसके फल तोड़कर, खा लिया करते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह वृक्ष सूखने लगा था। उसकी पत्तियाँ और शाखाएँ टूटकर गिरने लगी थी। ऐसा लग रहा था मानों ज़मीन पर जड़ों की पकड़ ढीली हो गई है और यह वृक्ष किसी भी दिन टूटकर गिर जाएगा।


वृक्ष की हालत देख एक दिन सभी गाँव वालों ने मिलकर उसे काटने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि अब पेड़ ना तो छाया दे पा रहा है और ना ही फल इसलिए इसे काट देना चाहिए और इससे मिली लकड़ी का प्रयोग ग़रीबों और बेसहारों के लिए बन रहे घरों में करना चाहिए। गाँव वालों की बात उस आम के पेड़ के साथ आसपास मौजूद अन्य पेड़-पौधे भी सुन रहे थे। वे सभी बड़े उदास थे क्यूँकि उनका मानना था गाँव वाले सभी बड़े मतलबी या स्वार्थी हैं। जब तक इनका स्वार्थ पूरा हो रहा था उन्हें बूढ़े आम के पेड़ से कोई दिक़्क़त नहीं थी। लेकिन आज जब गाँव वालों को वृद्धावस्था में आम काका का ध्यान रखने की ज़रूरत हैं तब वे उसे काटने के विषय में सोच रहे हैं।


अन्य पेड़-पौधों के विचार-विमर्श के इस दौर में आम के वृद्ध वृक्ष के पास खड़ा एक नीम का पेड़ बोला, ‘काका, आपको इन स्वार्थी गाँव वालों की प्रवृति पर क्रोध नहीं आता? जब इन्हें आपकी आवश्यकता थी तब ये आपकी पूजा किया करते थे, लेकिन आज आपको वृद्ध, निसहाय और अपने काम का ना देख काटने के विषय में सोच रहे हैं। बूढ़े आम के पेड़ ने मुस्कुराते हुए, नीम के पेड़ की बात काटते हुए कहा, ‘नहीं नीम बेटा, मैं तो यह सोचकर बहुत प्रसन्न हूँ कि मरने के बाद भी मैं आज इन गाँव वालों के काम आ सकूँगा।’


दोस्तों, आम के इस वृद्ध वृक्ष के समान ही कुछ वृद्धजन माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या किसी अन्य रूप में हमारे घरों में मौजूद हैं। हाँ, हो सकता है आज वे हमें पूर्व के समान फल या छाँव देने में सक्षम ना हो लेकिन हमें किसी भी हालत में यह नहीं भूलना चाहिए कि आज हम जहाँ भी पहुँच पाए हैं वह उनके अपने सपनों के बलिदान या त्याग से ही सम्भव हुआ है। उन्होंने ही हमें उँगलियाँ पकड़ कर चलना, खाना, पढ़ना, कार्य करना आदि सब कुछ सिखाया है।


यह सोचना कि आज वे सिर्फ़ वृद्ध हो गए हैं या फिर वे आज हमारा या अपना खुद का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं इसलिए उन्हें छोड़ देना, कहीं से भी उचित नहीं है। याद रखिएगा, समय रहते अगर वृद्ध वृक्ष का ध्यान प्यार, स्नेह और अपनत्व के साथ किया जाए तो वे जड़ों के ज़रिए अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रखते हैं। हमें यही बस अपने परिवार या समाज के वृद्धजनों के लिए करना होगा। लेकिन अगर आप अभी भी मेरी बात से सहमत नहीं हैं तो याद रखिएगा, आने वाले कुछ सालों में आप भी वृद्ध होने वाले हैं और समय बीतते देर नहीं लगती हैं। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘जो हम बोते हैं, वही हम काटते हैं।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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