June 1, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, किसी बात को जानना और उसे पूर्ण विश्वास के साथ मानना दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। उदाहरण के लिए हम सब जानते हैं कि ईश्वर ने हमें इस दुनिया में अपनी योजना के तहत, कुछ उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए भेजा है। साथ ही हम यह भी जानते हैं कि हमारे जीवन में घटने वाली हर घटना कहीं ना कहीं हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए घटती है। लेकिन इसके बाद भी हम चिंता, तनाव, दुख और असंतुष्टि जैसे नकारात्मक भावों के साथ अपना जीवन जीते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
एक दिन गाँव के एक चौक पर एक नट और नटनी अपने बच्चे को साथ लेकर अपना खेल दिखाने के लिए आए। सबसे पहले नट ने ज़मीन से लगभग १५ फुट की ऊँचाई पर बांस की सहायता से एक रस्सी को बाँधा और फिर एक अन्य बांस को हाथ में पकड़ कर रस्सी के ऊपर सधे हुए कदमों से, संतुलन बनाते हुए चलने लगा। एक चक्कर पूर्ण करने के पश्चात उस नट ने अपने कंधे पर अपने बेटे को बिठाया और एक बार फिर सधे हुए कदमों से, संतुलन बनाते हुए १५ फुट की ऊँचाई पर बंधी हुई रस्सी पर चलने लगा।
नट को इस तरह १५ फुट की ऊँचाई पर, बच्चे की जान को दांव पर लगाते हुए देख, वहाँ मौजूद सैंकड़ों लोगों की साँस थम सी गई। कुछ ही मिनटों में जैसे ही उस नट ने आंधी जैसी तेज हवाओं के बीच, अपने सधे हुए कदमों से उस दूरी को तय किया, वैसे ही भीड़ आनंद और उल्लास से उछल पड़ी और साथ ही तालियाँ और सीटियाँ भी बजाने लगी।
करतब पूरा होने के बाद कई लोगों ने उसे इनाम के तौर पर कुछ पैसे दिये, कुछ लोगों ने उसके साथ सेल्फ़ी ली और कुछ लोगों ने उससे हाथ भी मिलाया। कई लोगों ने नट से बातचीत भी करी, तो कुछ लोग वीडियो बनाते हुए उससे प्रश्न पूछने लगे। नट ने प्रश्नों के सीधे जवाब देने के स्थान पर एक नया रुख़ अपनाया और माइक पर भीड़ से प्रश्न पूछता हुआ बोला, ‘क्या आपको लगता है मैं इस करतब को दोबारा भी कर सकता हूँ?’ भीड़ बिना कुछ सोचे-समझे ज़ोर से चिल्लाई, ‘हाँ, हमें पूर्ण विश्वास है, तुम इसे एक बार नहीं हज़ार बार और कर सकते हो।’ नट ने एक बार फिर भीड़ से पूछा, ‘क्या आपको मुझ पर पक्का विश्वास है?’ भीड़ चिल्लाई, ‘हाँ, पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलतापूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।’ इतना सुनते ही कलाकार नट बोला, ‘तो ठीक है फिर, मैं एक बार फिर आपको यह करतब करके दिखाऊँगा। आपमें से कोई है जो मुझे इस करतब को करने के लिए अपने बच्चे को दे सकता है? मैं उस बच्चे को अपने कंधे पर बैठाकर उस रस्सी पर चलूँगा।’ नट की बात सुनते ही सारा शोर एकदम शांत हो गया। उस भीड़ भरे माहौल में चारों और खामोशी, शांति और चुप्पी फैल गई।
कलाकार हंसते हुए बोला, ‘कुछ देर पहले तो आप सबको मुझ पर पूरा विश्वास था। आप में से कई लोग तो शर्त लगाने के लिए भी राज़ी थे, तो अब डर क्यों गए? अब आपका विश्वास क्यों डगमगा रहा है?’ इसके पश्चात नट कुछ पलों के लिए ख़ामोश हो गया और फिर धीमे स्वर में बोला, ‘असल में आप सब मान कर चल रहे थे कि मैं इस करतब को दोहरा सकता हूँ अर्थात् आप सब को मुझ पर विश्वास याने बिलीव था, लेकिन आप मुझ पर भरोसा याने ट्रस्ट नहीं कर पा रहे थे। इसीलिए आप अपने बच्चे को मुझे सौंपने के लिए राज़ी नहीं थे।’
बात तो दोस्तों, उस नट की सौ प्रतिशत सही थी। लेकिन नट के द्वारा बताई गई गलती को ईश्वर के मामले में दोहराना हमारे ज़्यादातर दुख, तनाव, चिंता, दुविधा और क्रोध का कारण है। अगर आपका लक्ष्य सुख, चिंता रहित, स्पष्ट और आनंद से पूर्ण जीवन जीना हैं तो आज से ही जीवन में जो और जैसा घट रहा है, उसे ईश्वर पर पूर्ण भरोसा याने ट्रस्ट रख वैसा ही स्वीकारना शुरू कर दीजिए। जल्द ही आप पाएँगे ज़िंदगी आपकी इच्छाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप आगे बढ़ने लगी है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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