Dec 06, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप गंभीरता से सोचें तो पायेंगे कि चित्त याने मन और वित्त याने धन की स्थिति लगभग हमेशा ही एक जैसी नज़र आती है। मेरी बात थोड़ी अटपटी लग रही है ना… चलिए इसे थोड़ा गहराई के साथ समझने का प्रयास करते हैं। मन और धन दोनों ही चलायमान प्रवृति के होते हैं। अर्थात् मन और धन दोनों को ही एक जगह पर रोक कर रखना बहुत मुश्किल है। इसीलिए तो कहा जाता है, ‘मन कभी एक जगह टिकता नहीं!’ और ‘धन को बांध कर रखना संभव नहीं।’ शायद धन के इसी स्वभाव को देखकर हमारे यहाँ धन की देवी माँ लक्ष्मी को चंचला भी कहा जाता है।
शायद मन और धन का यही स्वभाव कहीं ना कहीं हमारे जीवन में अस्थिरता या यूँ कहूँ जीवन में भटकाव लाता है। वैसे इस अस्थिरता और भटकाव की एक और वजह हमारे मन का स्वभाव भी है। हमारा मन अक्सर उसी वक़्त भटकता है जब हम उसे किसी एक जगह रोकना चाहते हैं। वैसे यह कहना ज़्यादा बेहतर होगा कि हमारा मन वहीं जाना चाहता है, जहाँ हम उसे जाने से रोकना चाहते हैं। सहमत ना हों तो जरा अपने आज के ही दिन को एक बार मन में दोहरा के देख लीजिए आप पाएँगे कि यह मन उसी तरफ़ भागा है, जहाँ से आपने इसे हटाने का प्रयास किया है। सही कहा ना साथियों…
ठीक ऐसा ही कुछ धन के विषय में भी कहा जा सकता है। अक्सर हम इसे उस जगह प्रयोग में लाते हैं, जहाँ इसे हमें बचाना चाहिए। अर्थात् जिस समय या जिस कार्य के लिए हम धन का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं अक्सर इसे हम वहीं खर्च करते हैं। वैसे यह स्थिति भी हमारे मन के कारण ही निर्मित होती है। इस विषय में मैं आपको एक और बात याद दिलाना चाहूँगा, हमारे जीवन में जब भी धन आता है, तब अक्सर हमारी शांति बाहर की ओर भागने लगती है।
इस आधार पर देखा जाए दोस्तों, तो वर्तमान समय में धन के साथ-साथ स्वयं की शांति और पारिवारिक सद्भाव को बनाये रखना थोड़ा मुश्किल काम है। लेकिन मज़े की बात यह भी है कि इस सामंजस्य को बनाये बिना जीवन का कोई सा भी उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है। इसलिए दोस्तों, हमें अपने मन को साधना सीखना होगा, जिससे इसका भटकाव भी हमारे लिए लाभप्रद सिद्ध हो। जैसे, मान लीजिए आप अपने समय को सत्संग, सेवा, परोपकार, आदि जैसे कार्यों में लगाना शुरू कर दें। साथ ही आप उन लोगों के साथ रहना शुरू कर दें जो सत्संग, सेवा, परोपकार आदि के क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं, तो आप पाएँगे कि आपके मन का भटकाव भी अब सकारात्मक हो गया है। अर्थात् अब आपका मन और साथ में ही आपका धन; दोनों भटकाव के दौर में भी सही स्थान पर जाने लगे हैं।
जी हाँ दोस्तों, मन और धन का भटकना रोकने से कई गुना ज्यादा आसान मन और धन को सही दिशा देना है। जिसका सबसे आसान रास्ता ख़ुद को सकारात्मक माहौल में रखना और उन कार्यों को करना है जिनमें सेवा और परोपकार हो। यही बातें हमें हमारी अंतरात्मा के क़रीब ले जाएँगी और हम हमारे अंदर प्रभु की मौजूदगी का एहसास कर पाएँगे। इसीलिए शायद हमारे धर्मग्रन्थ, प्रचलित लोक कथाएँ, नैतिक कहानियाँ और हमारे बड़े बुजुर्ग हमें सिखाते हैं कि जब हम हमारे चित्त और वित्त को नारायण के चरणों में लगाते हैं तभी हम उनमें सहज स्थिरता ला पाते है। विचार कर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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