भला कीजिए, भुला दीजिए…
- Nirmal Bhatnagar
- May 1
- 2 min read
May 1, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, यदि आप शुभ कर्मों के बीज बो रहे हैं, तो पूरी तरह निश्चिंत होकर परिणाम की चिंता छोड़ दीजिए क्योंकि समय आने पर शुभ कर्मों का बीज शुभ फल ही देगा। वैसे यह भाव अपने आप में ही न केवल आध्यात्मिक सत्यों को उजागर करता है, बल्कि जीवन प्रबंधन के उस मूलभूत सिद्धांत को भी रेखांकित करता है जो हमें धैर्य, नि:स्वार्थता और संतुलित कर्म में विश्वास करना सिखाता है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक और परिणाम केंद्रित युग में जब प्रत्येक प्रयास को तात्कालिक मान्यता या लाभ के आधार पर तौला जाता है, तब यह विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो उठता है।
अपनी इस बात को मैं आपको प्रकृति की निष्पक्ष गणना प्रणाली के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। जिसका संचालन किसी मानवीय लेखा-जोखा प्रणाली की तरह नहीं होता, जिसमें तत्काल इनाम या सज़ा का निर्धारण किया जाए। यह एक सूक्ष्म और न्यायप्रिय प्रणाली है, जो हमारे प्रत्येक शुभ और अशुभ कर्म को स्मृति की पुस्तक में संचित कर लेती है, फिर भले ही वह हमारी स्मृति से लुप्त क्यों न हो गया हो।
जो लोग दूसरों की सहायता, परमार्थ या सेवा भाव से प्रेरित होकर बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षा के पुण्य कर्म करते हैं, उनके प्रयासों को समय की कसौटी पर खरा उतरने में अधिक देर नहीं लगती। प्रकृति ऐसे लोगों को तब पुरस्कृत करती है जब उन्हें स्वयं भी उसकी अपेक्षा नहीं होती। इसके विपरीत जो लोग स्वार्थ आधारित कर्म करते हैं, समय आने पर प्रकृति उनका भी हिसाब करती है।
यही बात हमारे शास्त्र और जीवन से मिले अनुभव भी हमें समझाते और सिखाते हैं। जैसे हमारे शास्त्रों ने हमें सिखाया है कि पुण्य का सार्वजनिक प्रदर्शन या स्व-प्रशंसा उस पुण्य के प्रभाव को क्षीण कर देता है। जब पुण्य कर्म अहंकार या दिखावे की चादर ओढ़ लेते हैं, तब वे अपने नैतिक मूल्य खो बैठते हैं और प्रकृति की संचित सूची से स्वतः हट जाते हैं। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम भलाई करें, पर उसकी गणना न करें। समाज में मौन रूप से की गई सेवा, किसी को संबल देना, किसी के लिए अवसर निर्माण करना या किसी की पीड़ा हर लेना; ये वे कर्म हैं जो हमारी आत्मा को भी पुष्ट और तृप्त करते हैं और समाज को भी।
दोस्तों, कर्म के संतुलन और प्रबंधन का यह सिद्धांत या दृष्टिकोण उद्योगों, संस्थानों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भी अत्यंत उपयोगी हो सकता है। नेतृत्वकर्ता यदि हर निर्णय में केवल तात्कालिक लाभ को देखें, तो दूरगामी परिणामों की गुणवत्ता कम हो सकती है। लेकिन यदि हर कार्य नैतिकता, भलाई और सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से किया जाए, तो संस्थाएं स्वयं भी दीर्घकालिक विश्वास और प्रभाव अर्जित कर सकती हैं।
अंत में उपरोक्त आधार पर इतना ही कहना चाहूँगा कि शुभ कर्मों की खेती विश्वास से की जाती है; फल की अपेक्षा से नहीं। जो लोग भलाई करके उसे भूल जाते हैं, प्रकृति उन्हें कभी नहीं भूलती। उनकी राह में समय आने पर ऐसे अवसर, सम्मान और सहायता प्रकट होती हैं जो स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि “प्रकृति ने तुम्हारे पुण्यों को संचित रखा था।” इसलिए दोस्तों, भला कीजिए, भुला दीजिए। प्रकृति आपको समय आने पर याद दिला देगी कि आपने कभी किसी का भला किया था।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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