Sep 12, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बात कई साल पुरानी है, एक दिन किसी विषय पर चर्चा करते समय मेरे गुरु मुझसे बोले, ‘निर्मल, मूर्खों को तर्कों से नहीं जीता जा सकता क्योंकि अगर तुम उनसे तर्क करोगे तो वे पहले तुम्हें अपने स्तर तक नीचे गिरायेंगे और फिर मूर्खता के अपने अनुभव से तुम्हें हरा देंगे। उनसे जीतने का बस एक ही तरीक़ा है, तर्कों से बचो और विद्वता पूर्ण निर्णय लेकर जीवन में आगे बढ़ जाओ।’ अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात उस समय की है जब राजपुर में महामूर्ख और सनकी राजा का राज्य था। उनके सनक भरे निर्णय से अक्सर ही प्रजा को उलझन भरी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। लेकिन उस राज्य के बुद्धिमान मंत्री अपने बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णयों से किसी ना किसी तरह प्रजा और पूरे राज्य को बचा लिया करते थे। जैसे एक बार राजा ने नदी किनारे घूमते हुए अपने मंत्री से प्रश्न किया, ‘मंत्री जी, ज़रा यह बताइए हमारे राज्य से बहने वाली इस नदी का पानी किस दिशा में बहता है और अंततः यह कहाँ जाता है।’ मंत्री पूर्ण आदर के साथ बोले, ‘महाराज इस नदी का पानी हमारे राज्य से पूर्व दिशा में बहकर अन्य राज्यों से होता हुआ अंत में समुद्र में मिल जाता है।’ राजा बोले, ‘मंत्री जी आपको क्या लगता है पूर्व दिशा वाले देश इस नदी के पानी का उपयोग करते होंगे?’ मंत्री बोले, ‘जी महाराज!’ मंत्री के जवाब को सुन राजा कुछ सोचते हुए बोले, ‘मंत्री जी, जब यह नदी हमारे राज्य में है तो यह हमारी हुई और जब नदी हमारी है तो इसके पानी पर भी हमारा अधिकार है। इसलिए आप तत्काल जाइए और नदी पर दीवार बनवा कर, नदी का सारा का सारा पानी रुकवा दीजिए। हम नहीं चाहते कि पूर्व दिशा में स्थित देशों को पानी दिया जाये।’ राजा के उत्तर से मंत्री उलझन में पड़ गये, वे राजा को समझाते हुए बोले, ‘महाराज! इससे तो हमें ही नुकसान होगा।’ मंत्री के जवाब को सुन राजा चिढ़ कर लगभग चिल्लाते हुए बोले, ‘नुक़सान? कैसा नुक़सान? अरे नुक़सान तो हमारा रोज़ हो रहा है क्योंकि पूर्व के देश रोज़ इस नदी का पानी मुफ़्त में ले रहे हैं। मेरी आज्ञा का तुरंत पालन करो और नदी को पूर्व दिशा में बहने से रोक दो।’ कोई और उपाय ना देख मंत्री ने ऐसा ही किया और कुछ ही दिनों में दीवार बनवाकर नदी का पानी रुकवा दिया।
जैसे ही राजा को इस बात का पता पड़ा वे बहुत खुश हुए, पर उनकी मूर्खता के कारण कुछ ही दिनों में राज्य के कई गावों में पानी भरने लगा और कुछ जगह तो यह पानी लोगों के घरों में घुसने लगा। सभी गाँव वाले इकट्ठा होकर इसकी शिकायत लेकर मंत्री जी के पास पहुँचे क्योंकि वे जानते थे कि मूर्ख राजा को समझाना आसान नहीं होगा। लोगों की शिकायत सुन मंत्री जी बोले, ‘मुझे इस समस्या का अंदाज़ा था, इसलिए मैंने इसका हल पूर्व में ही खोज लिया था। आप बस मेरे द्वारा बताये गये तरीक़े से कार्य करें, हम कल तक इस समस्या से निजात पा लेंगे।’ इसके बाद मंत्री ने प्रजा को कुछ कहा जिसे सुन प्रजा वहाँ से मुस्कुराते हुए वापस चली गई।
दूसरी ओर मंत्री जी सीधे राजमहल पहुँचे और वहाँ समय का भान कराने वाले सेवक को कुछ समझा कर वापस अपने घर चले गये। उस रात मंत्री जी की योजना अनुसार समय का भान कराने के लिए घंटा बजाने वाले सेवक ने रात्रि बारह बजे से लेकर रात्रि तीन बजे तक छह बार घंटा बजा दिया। अर्थात् जिस वक़्त रात्रि के तीन बज रहे थे उस वक़्त बजे हुए घंटों के अनुसार सुबह के छह बज रहे थे। छह घंटे सुनते ही राजा उठ कर बाहर आ गये ।
जब राजा को चारों ओर अंधेरा नज़र आया तो उन्होंने मंत्री से कहा, ‘मंत्री जी आज सुबह इतना अंधेरा क्यों है और सूरज अभी तक निकला क्यों नहीं?’ मंत्री पूर्ण गंभीरता के साथ बोला, ‘महाराज! मुझे ऐसा लगता है हमारे द्वारा पानी रोक जाने से नाराज़ होकर पूर्व देशों ने सूरज को हमारे राज्य में आने से रोक दिया है। अब हमें हमेशा अंधकार में ही रहना होगा और अब हमारे राज्य में कभी सूरज नहीं निकलेगा।’ मंत्री की बात सुन राजा चिंता में पड़ गये और जब उन्हें इसका कोई हल नहीं सूझा तो मंत्री की ओर देखते हुए बोले, ‘मंत्री जी, अब आप ही इसका हल बताओ।’
मंत्री तो शायद राजा के इस जवाब का ही इंतज़ार कर रहा था, इसलिए वह तपाक से बोला, ‘महाराज, मुझे लगता है अगर हम पूर्व राज्यों को पानी देना शुरू कर देंगे तो वे सूरज को वापस से निकलने देंगे।’ मंत्री का जवाब सुनते ही राजा बोले, ‘फिर देर मत कीजिए मंत्री जी। तत्काल नदी पर बनी दीवार को तोड़कर पूर्व राज्यों को पानी देना शुरू कीजिए।’
मंत्री ने तत्काल राजा के आदेश पर अमल किया और नदी पर बनी दीवार को तुड़वा दिया। दीवार टूटते-टूटते सूर्योदय का समय हो गया और राज्य में चारों और सूर्य की लालिमा छा गई। राजा ने तुरन्त मंत्री को इनाम दिया और उसकी बुद्धिमत्ता की प्रजा के सामने भूरी-भूरी प्रशंसा करी और कहा, ‘अब हमारे राज्य में कभी अंधेरा नहीं होगा।’
दोस्तों, वैसे तो अब आगे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन फिर भी इतना कहना चाहूँगा कि मूर्ख, भविष्य की ज़रूरतों को नज़रंदाज़ करते हुए वर्तमान का लाभ देखकर निर्णय लेते हैं और इसीलिए अक्सर आशा के विपरीत दुष्परिणाम भुगतते हैं। जबकि चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य की संभावनाओं और कठिनाइयों का आकलन करते हुए वर्तमान में निर्णय लेते हैं और समझदार, चतुर और बुद्धिमान लोग मूर्खतापूर्ण निर्णयों और बेवक़ूफ़ी भरे सवालों से भी कुछ ना कुछ सीख लेते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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