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भाग्य का साथ चाहिए तो ख़ुद पर भरोसा रखें…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 5, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, भाग्य और मेहनत यह दो ऐसे विषय हैं जो अक्सर हमें परेशान करते हैं। कई बार हमें लगता है कि हमारी जिंदगी का हर पहलू केवल भाग्य पर निर्भर करता है और कई बार लगता है की भाग्य कुछ नहीं होता, मेहनत ही हमारा भविष्य बनाती है। ऐसे में मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है की भाग्य और मेहनत दोनों में से सही क्या है? चलिए एक कहानी के माध्यम से इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं।


बात कई साल पुरानी है, श्यामू अपने बेटे रघु के साथ गाँव में एक बहुत ही छोटी सी दुकान चलाया करता था। श्यामू अपने हर कार्य को बड़ी मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ किया करते थे। लेकिन इसके ठीक विपरीत उनका बेटा रघु मेहनत से ज़्यादा भाग्य पर भरोसा किया करता था। एक बार किसी ने रघु को कह दिया की अगर तुम उत्तर दिशा में खुलने वाली बड़ी दुकान ले लोगे तो तुम्हारा भाग्य एकदम से पलट जायेगा।


एक दिन रघु को किसी से खबर मिली कि पास के शहर में उत्तर दिशा वाली एक बड़ी दुकान बिक रही है। उसने तुरंत अपने पिता से कहा, ‘पिताजी, यह दुकान खरीद लेते हैं। इससे हमारे व्यापार में चार चाँद लग जाएंगे।’ श्यामू ने कहा, ‘बेटा, बड़ी दुकान खरीदने से पहले हमें अपनी क्षमता और मेहनत को देखना होगा।’ लेकिन रघु कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था। इसलिए रघु की जिद के आगे श्यामू को झुकना पड़ा। अंत में रघु की ज़िद के आगे हार मान श्यामू ने अपनी सारी बचत लगाकर वह दुकान खरीद ली।


रघु अब खुश था, उसने पूरी ऊर्जा के साथ खुशी-खुशी दुकान चलाना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ ही दिनों में उसे एहसास हुआ कि बड़ी दुकान को सम्भालना इतना आसान नहीं है। बड़ी दुकान पर काम बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी, लेकिन रघु का ध्यान अब भी भाग्य पर था।


एक दिन, दुकान में एक बुजुर्ग ग्राहक आए। उन्होंने रघु से पूछा, "बेटा, तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो?” रघु ने अपनी समस्या बताते हुए कहा, ‘हमने बड़ी दुकान खरीदी है, लेकिन इसका काम बढ़ाने के लिए भाग्य का साथ नहीं मिल रहा।’ बुजुर्ग मुस्कुराए और बोले, ‘बेटा, पहले मेरे एक प्रश्न का जवाब दो। एक किसान ने बड़ा खेत लिया और उसमें बीज बोए बिना सोचता रहा की बारिश और सूरज खुद फसल उगा दें। क्या ऐसा संभव है?’ रघु बोला, ‘बिल्कुल भी नहीं!’ रघु की बात को आगे बढ़ाते हुए बुजुर्ग बोले, ‘सही कहा तुमने। जब तक बीज नहीं बोयेंगे फसल नहीं उगेगी। बिना बीज बोए और मेहनत करे, कोई खेत फसल नहीं दे सकता, फिर चाहे भाग्य कितना भी अच्छा क्यों न हो।’


बुजुर्ग की बात ने उसी क्षण रघु की सोच बदल दी। उसने दिन-रात मेहनत करनी शुरू की और ग्राहकों की जरूरतों को समझने लगा। कुछ महीनों में रघु की दुकान में रौनक लौट आई। श्यामू ने अपने बेटे की प्रगति देखी और कहा, ‘बेटा, मैंने तुमसे कहा था न, मेहनत ही भाग्य का साथी है। समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। लेकिन मेहनत से हम अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं।’


दोस्तों, अब आप निश्चित तौर पर भाग्य और मेहनत का रिश्ता समझ गए होंगे। यह दोनों अर्थात् भाग्य और मेहनत दोनों हमेशा साथ-साथ चलते हैं। सिर्फ भाग्य पर भरोसा करके कभी भी कोई सफल नहीं हो सकता है। लेकिन अगर मेहनत को साधन बना लिया जाये, तो भाग्य के दरवाजे को खोला जा सकता है। तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी मुश्किल में हों, तो मेहनत करना न भूलें। याद रखें, भाग्य उन्हीं का साथ देता है, जो खुद अपनी कोशिशों पर भरोसा रखते हैं।



-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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