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भाग्य या कर्म : चुनाव आपका

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Aug 13, 2023
  • 3 min read

August 13, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, भाग्य और कर्म दो ऐसे विषय हैं जिन पर सबका मत समान होना थोड़ा मुश्किल ही है। कोई आपको कर्म को प्रधान बतायेगा, तो कोई भाग्य को महत्वपूर्ण बताते हुए कहेगा की ‘कुछ भी कर लो मिलेगा वही जो क़िस्मत में लिखा होगा।’ लेकिन अगर आप इस विषय में मेरी धारणा या राय पूछेंगे तो मैं कर्म को प्रधान बताऊँगा क्योंकि हो सकता है ईश्वर ने मेरे भाग्य में लिखा हो कि कर्म करने पर ही मुझे वांछित फल प्राप्त होंगे। वैसे कर्म को प्रधान मानने की मेरी एक और वजह है, भाग्य में क्या लिखा है, यह हममें से किसी को भी पता नहीं है और ना ही हममें से कोई इसे पढ़ सकता है। लेकिन कर्म करना सदैव हम सभी के हाथ में होता है।


ऐसी स्थिति में एक प्रश्न निश्चित तौर पर आपके मन में आ सकता है कि अगर कर्म ही प्रधान था तो फिर ‘ईश्वर की इच्छा’ और ‘भाग्य के अनुसार ही हमें फल मिलता है’ या ‘ईश्वर की इच्छानुसार ही सब कुछ घटता है’, जैसी बातें या मान्यतायें कैसे प्रचलन में आ गई? असल में दोस्तों, मुझे तो लगता है कि हमारे पूर्वजों और गुरुओं ने इन मान्यताओं को हमें विपत्ति याने विपरीत और चुनौती भरे समय में टूटने और अच्छे समय में अहंकारी बनने से बचाने के लिये बनाया होगा।


मेरी बात पर प्रतिक्रिया देने के पूर्व साथियों थोड़ा गम्भीरता से सोचियेगा। मेरा विचार नास्तिक विचारधारा से प्रेरित नहीं है और ना ही मैं परमपिता परमेश्वर अर्थात ईश्वर या भगवान की सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा हूँ। मैं तो ऐसा सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिये कह पा रहा हूँ क्योंकि मैं उस परमपिता परमेश्वर के प्रति पूर्णतः

आस्थावान हूँ। आप ख़ुद सोचकर देखिये जिस परमपिता परमेश्वर ने हमें देवताओं समान असीम शक्तियों के साथ इस धरती पर भेजा है, क्या वह परमेश्वर हमें भाग्य जैसे किसी बंधन में बांध कर रखेगा? मेरी नज़र में तो शायद नहीं। इसीलिये मैं भाग्य और हरिइच्छा जैसी बातों को मान्यता मान रहा हूँ।


याद रखियेगा, अगर ईश्वरीय सत्ता की आड़ में किसी भी इंसान ने बार-बार इन मान्यताओं का उपयोग कर्मप्रधानता के सिद्धांत के विरुद्ध जाकर किया तो वह व्यक्ति निश्चित तौर पर कायर, अकर्मण्य और निरुत्साही बन जायेगा। जी हाँ दोस्तों, प्रतिभा एक कौशल है अर्थात् यह कोई जन्मजात योग्यता नहीं है और अगर यह जन्मजात योग्यता नहीं है तो निच्छित तौर पर यह आसमान से बरसती भी नहीं होगी और ना ही राम-राम रटने से मिलती होगी। यह तो एक ऐसी विशेषता है जिसे कर्म करते हुए अपने अंदर विकसित किया जा सकता है। इस आधार पर प्रतिभावान बनने के लिये आपका कर्मप्रधान मनुष्य होना ही पर्याप्त है।


अगर आपको अभी भी मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो एक बात बताइये, सवर्णों और पढ़े-लिखों के मुक़ाबले ईश्वर ने कबीरदास जी या रैदास जी जैसे लोगों को इतना विशेष या प्रतिभावान क्यों बनाया? इसी तरह ढेरों बलिष्ठ, बलवान और पैसे वालों को छोड़कर कमजोर शरीर वाले गांधीजी और कुरुप आचार्य चाणक्य को विशेष योग्यता या प्रतिभा का धनी बनाने के लिये क्यों चुना?


असल में साथियों, प्रतिभा का किसी भी विशेषता से लेना- देना नहीं है। वह तो बिना किसी भेदभाव के उसके पास जाती है जो उसे पाने के लिये अपनी पूरी क्षमता और निष्ठा के साथ कर्म करता है। इसके विपरीत अगर वह बुरे कर्मों या व्यसनों में उलझता है तो वह कितना भी सक्षम क्यों न हो, वह अपना सारा समय, संपत्ति और जीवन निरर्थक ही गँवा देता है। यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे अपव्ययी अपनी बुरी आदतों को पूरा करने के लिये अपनी सारी संपत्ति गँवा देता है। साथियों यदि आप वाक़ई अपने जीवन में सफल बनना चाहते हैं तो ईश्वर पर विश्वास रखें क्योंकि उसकी सत्ता भाग्य नहीं न्याय प्रधान है। चूँकि ईश्वर सर्वव्यापी है इसलिये वह हमारे कर्मों के अनुरूप फल देता है। याने हम अपने कर्मों के आधार पर ईश्वर द्वारा लिये गये निर्णय के अनुरूप जीवन में गिरते या उठते हैं। एक बार विचार करके देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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