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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

भारतीय दर्शन है सही…

Sep 21, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में एक पाठक ने मुझसे प्रश्न किया, ‘सर आप अपने इस कॉलम में लगभग रोज़ ही कोई ना कोई कहानी या क़िस्सा कहते हैं। कई बार उन क़िस्सों को पढ़कर अच्छा लगता है और कई बार मन में प्रश्न आता है कि यह सही भी हैं या नहीं।’ उनका प्रश्न सुन मैं मुस्कुराए बिना रह ना सका क्योंकि वे भारतीय पारंपरिक व्यवस्थाओं में कहे गये इन कहानी-क़िस्सों का मूल्य समझ नहीं पाये थे। मैंने उस वक़्त तो उन्हें संक्षेप में जवाब देते हुए सिर्फ़ इतना कहा, ‘सर, अगर कोई बात आपके जीवन को बेहतर बना रही है तो फिर वह सच्ची है या काल्पनिक इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए, रामायण और महाभारत हमें जीवन में क्या करना चाहिये और क्या नहीं, सिखाती है और जब हमें यह जीवन जीने की कला सिखा ही रही है तो फिर इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि यह सही हैं या झूठ।


सही कहा ना साथियों मैंने? वैसे भी अगर आप भारतीय पारंपरिक व्यवस्थाओं को देखेंगे तो पायेंगे कि हमारे यहाँ जटिल से जटिल जीवन मूल्यों को साधारण से लगने वाले कहानी-क़िस्सों या सांस्कृतिक विरासतों (त्यौहार आदि) से, बचपन में ही समझा दिया जाता है। बचपन में बार-बार बच्चों से साझा किए गये इन कहानी-क़िस्सों का सबसे बड़ा फ़ायदा यह होता है कि बच्चे के वयस्क बनने तक इन कहानी-क़िस्सों से समझाये गये जीवन मूल्य उस बच्चे की विचारधारा का हिस्सा बन दैनिक दिनचर्या में शामिल हो जाते हैं।


उदाहरण के लिए अगर आप बच्चों को अच्छी और बुरी संगत के विषय में समझाना चाहते है, तो आप निम्न क़िस्सा बच्चों से साझा कर सकते हैं। कई साल पहले एक बहुत प्रसिद्ध हकीम हुए हैं, जिनका नाम लुकमान था। हकीम लुकमान ने अपना पूरा जीवन ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित कर दिया था। अपने अंतिम समय में बच्चों को जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख देने के उद्देश्य से हकीम लुकमान ने अपने बेटे को बुलाया और उसे एक चंदन की लकड़ी का टुकड़ा और एक कोयला लाने के लिए कहा। बेटे को उक्त कार्य थोड़ा अटपटा तो लगा लेकिन पिता की नाज़ुक स्थिति को देख उसने उस हुक्म का पालन अक्षरशः करने का निर्णय लिया। वह तुरंत घर के अंदर गया और रसोई से एक कोयला और पूजाघर से एक चंदन की लकड़ी का टुकड़ा ले आया। हकीम लुकमान ने उसे उन दोनों को थोड़ी देर अपने अलग-अलग हाथ में रखने के लिए कहा। कुछ देर बात हकीम लुकमान ने अपने बेटे को अगला आदेश देते हुए, दोनों, याने कोयले और चंदन की लकड़ी, को ज़मीन पर फेंकने के लिए कहा। लड़के ने पिता के आदेशानुसार दोनों को ज़मीन पर फेंका और अनायास ही अपने हाथों की और देखा तो पाया कि कोयले के कारण उसका एक हाथ काला हो गया है। उसने तुरंत हाथ धोये और वापस हकीम लुकमान के पास आ गया। हकीम लुकमान ने अपने बेटे के दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उसे देखते हुए बोले, ‘कोयला हाथ में लेने के कारण तुम्हारे हाथ काले हो गये थे। इसलिए तुम अपने हाथ धोकर आये। लेकिन उसके बाद भी तुम्हारे हाथ में कोयले की कालिख लगी रह गई। ग़लत लोगों की संगत भी ठीक ऐसी ही रहती है। जब हम साथ रहते हैं तब हम उनकी बुरी आदतों और बातों को सीख कर अपना लेते हैं। इन बुरी आदतों और बातों का असर हमारे ऊपर इनसे दूर होने के बाद भी लंबे समय तक रहता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो उनका साथ हमें अंतिम परिणाम के रूप में दुख देता है और अगर हम साथ छोड़ दें तो भी कुछ दिनों का यह साथ हमें जीवन भर के लिये बदनामी दे देता है। हकीम लुकमान ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बेटे से कहा, ‘अब जरा तुम अपने दूसरे हाथ को सूंघ कर देखो उसमें अभी भी चंदन की महक होगी। यह महक अच्छी संगत के समान है। अगर तुम अपना जीवन अच्छे और सज्जन लोगों के साथ बिताओगे तो तुम उनसे दुनिया भर का ज्ञान लोगे और अच्छी बातों को सीखोगे और अगर किसी वजह से उनका साथ छूट गया तो उनके विचारों की महक, सीख के रूप में तुम्हारे जीवन को महकाती रहेगी। इसलिए हमेशा अच्छी संगत में रहो।


दोस्तों, अब तो शायद आप भी समझ गये होंगे कि मैं क्यों भारतीय दर्शन याने हमारे धर्म, सांस्कृतिक विरासत और सदियों से सुनाये जाने वाले कहानी-क़िस्सों के माध्यम से अपनी बात या अपनी सोच आपसे साझा करता हूँ। इस विषय पर अपना मत मुझसे अवश्य साझा कीजियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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