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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

भावनात्मक होना कमजोरी नहीं…

Aug 27, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पिछले दो दिनों से वायरल बुख़ार के कारण मुझे गाडरवारा में बिना कार्य के रुकने का मौक़ा मिला। जी हाँ दोस्तों, इसे मैं मौक़ा ही मानूँगा क्यूँकि एक लम्बे अरसे के बाद मुझे खुद के साथ समय बिताने का मौक़ा मिला। हालाँकि शारीरिक रूप से कुछ तकलीफ़ें अकेलेपन के एहसास को बढ़ाती हैं, लेकिन ट्रेंड माइंड हक़ीक़त को स्वीकार कर इस अकेलेपन को एकांत में तब्दील कर देता है और यही वह समय होता है जब आप इस दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति ‘खुद’ से मुलाक़ात कर पाते हैं। खुद के साथ एकांत में की गई यही मुलाक़ात आपके सुखद अथवा दुखद भविष्य की रूपरेखा तय करती है।


चूँकि यह एकांत मुझे अपने प्रिय दोस्त के घर पर रहकर मिला था तो मैंने ज़्यादातर वक्त उसके साथ बिताई सुखद यादों और आपस में हुई बातों को याद करते हुए बिताया। इस दौरान दोस्तों जो सबसे महत्वपूर्ण विचार मेरे मन में चल रहा था, वह था कि भावनात्मक रूप से खुद को व्यक्त करना कमजोरी की निशानी है या मानसिक रूप से मज़बूती की। आपने देखा होगा अक्सर लोग अपने मन के भावों को अपने लोगों के बीच भी व्यक्त नहीं करते हैं और अपने मन में ही तमाम भावनाओं को समेट कर घुट-घुट कर जीवन जीते हैं। इन लोगों का मानना रहता है कि दूसरों के सामने खुद को व्यक्त करना सामान्यतः नुक़सान का सौदा रहता है। इसमें इस बात की रिस्क रहती है कि कहीं सामने वाला हमारी भावनाओं का ग़लत फ़ायदा ना उठा ले।


लेकिन दोस्तों, इस विषय में मेरा मानना थोड़ा अलग है। खुद की भावनाओं, ख़ुशी या ग़म को व्यक्त करना मेरी नज़र में आपको कमजोर नहीं, मज़बूत बनाता है। ऐसा मैं इसलिए कह पा रह हूँ क्यूँकि मैं स्वयं लम्बे समय तक पहली कैटेगरी का हिस्सा रहा हूँ। जब मैंने एकांत में रहते हुए भावनाओं को व्यक्त करना शुरू किया तो मुझे एहसास हुआ स्वयं को आप जैसे हैं वैसे ही व्यक्त करना स्व या आत्म-जागरूक होने की निशानी है। जब आप अपनी ख़ुशी, अपनी उदासी, अपने सुख, अपने दुःख या संक्षेप में कहूँ तो अपने भाव को व्यक्त करते हैं तब आप उन बातों को व्यक्त करते हैं जो आप या तो स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं या फिर आप जिन बातों की सराहना करना चाहते हैं। दोनों तरह के भावों को व्यक्त करना ही आपके मन में अनावश्यक गाँठें बनने से रोकता है और आपको खुलकर अपना जीवन जीने का मौक़ा देता है। इसीलिए मैंने कहा आपकी अच्छाइयाँ या आपकी ग़लतियाँ, आपकी भावनाएँ आदि हमारे जीवन को पूर्ण बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मेरा मानना है भावनात्मक रूप में मज़बूत लोग अपनी भावनाओं को लेकर ज़्यादा जागरूक रहते हैं, वे अपनी भावनाओं के उतार-चढ़ाव के पैटर्न को बेहतर तरीके से जानते हैं और इसीलिए बेहतर तरीके से अपनी भावनाओं मैनेज कर, अच्छा आचरण कर पाते हैं।


लेकिन दोस्तों, भावनाओं को हर किसी के सामने व्यक्त करने की रिस्क पर बात करे बिना यह विषय अधूरा रहेगा। रिस्क के विषय में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि भावनात्मक होना या अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अर्थ यह क़तई नहीं है कि आप हर किसी के सामने भावनात्मक व्यवहार करें या अपनी भावनाओं को व्यक्त करें। इसके लिए सर्वप्रथम आपको अपने परिचितों या जानकारों को इनर सर्कल और आउटर सर्कल में बाँटना होगा और हाँ, इनर सर्कल या आउटर सर्कल का लेना-देना आपके व्यक्तिगत या व्यवसायिक सम्बन्धों से नहीं है। आपके इनर सर्कल में सिर्फ़ वह व्यक्ति आएगा जो आपका शुभचिंतक हो। जैसे आपके मात-पिता, पत्नी, भाई-बहन या बच्चे अथवा कोई मित्र।


याद रखिएगा दोस्तों, स्वयं को सरल तरीके से व्यक्त करना अपनी ग़लतियों को पहचान कर जल्दी सुधरने का मौक़ा देता है। स्वयं को व्यक्त करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखिएगा कि लोगों की इस पर प्रतिक्रिया जानने के लिए आपको धैर्य रखना होगा। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘भावनाओं के (कु)चक्र में फँस कर कुंठित हो जीवन गुज़ारने से बेहतर है उन्हें व्यक्त कर दिल से हल्का हो जाना और एक बार फिर से नई ऊर्जा के साथ प्रयास करना और हाँ, इस वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखिएगा कि हमें इस बार भी किसी से कोई अपेक्षा नहीं करना है।’ सकारात्मक बने रहें और हमेशा ख़ुश रहें !!!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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