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भीतर झाँको, बाहर नहीं !!!

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 7
  • 3 min read

Mar 7, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, अक्सर बाहरी लक्ष्य की चाह में हम खुशहाल ज़िंदगी के लिए आवश्यक कुछ महत्वपूर्ण चीजों को खो देते हैं। जैसे, शांति, संतोष, या खुद पर भरोसा और जब हमें इन चीजों की अहमियत का अंदाज़ा होता है तब हम इन्हें पाने के लिए ना जाने कितने प्रयास करते हैं और पता नहीं कहाँ-कहाँ इन्हें खोजते हैं। लेकिन दोस्तों क्या कभी आपने यह सोचा है कि जिस चीज को पाने के लिए हम इतना प्रयास कर रहे हैं, वह हमारे भीतर भी हो सकती है। चलिए, आज आदि शंकराचार्य और उनके शिष्य के बीच घटी एक प्रेरणादायक घटना पर आधारित एक बेहद विचारोत्तेजक कथा से इसे समझने का प्रयास करते हैं।


एक शांत रात को आदि शंकराचार्य; आश्रम जाने वाली सड़क पर बड़े ध्यान से कुछ ढूँढ रहे थे। तभी उनका शिष्य बाजार से आश्रम लौटा और आदि शंकराचार्य जी को देख उन्हें प्रणाम करता हुआ बोला, ‘आचार्य! आप इस समय सड़क पर क्या ढूँढ रहे हैं?’ शंकराचार्य जी पूरे शांत भाव के साथ जवाब देते हुए बोले, ‘वत्स! मैंने अपनी सुई खो दी है, वही खोज रहा हूँ।’ इतना सुनते ही शिष्य भी उनकी मदद करने लगा। लेकिन काफ़ी देर तक प्रयास करने के बाद भी जब दोनों सुई को नहीं खोज पाये, तो शिष्य बोला, ‘आचार्य, क्या आपको याद है कि सुई कहाँ गिरी थी?’ शंकराचार्य मुस्कुरा कर बोले, ‘हाँ! बिल्कुल! मुझे बहुत अच्छे से याद है कि सुई तो कुटिया के भीतर बिस्तर के पास गिरी थी।’


इतना सुनते ही शिष्य आश्चर्यचकित होकर बोला, ‘आचार्य! यदि सुई अंदर गिरी है, तो हम इसे बाहर क्यों ढूँढ रहे हैं?’ शंकराचार्य शांत भाव से बोले, ‘कुटिया में दीये का तेल खत्म होने के कारण घुप्प अँधेरा है। इसलिए मैंने सोचा बाहर की रोशनी में ढूँढ लूँ।’ इतना सुनते ही शिष्य हँसने लगा और बोला, ‘लेकिन आचार्य, अंदर गिरी सुई बाहर खोजने से कैसे मिलेगी?’ इतना सुनते ही आदि शंकराचार्य एकदम गंभीर हो गए और बोले, ‘यही तो हम सब रोज़ कर रहे हैं!’ शिष्य आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोला, ‘मैं समझा नहीं आचार्य।’ शंकराचार्य जी उसी गंभीरता के साथ बोले, ‘शांति, प्रेम, और खुशी, जो हमारे भीतर ही है, क्या हम उसे मंदिरों, यात्राओं, और दूसरों में नहीं तलाशते हैं?’ इतना कहकर वे एक पल के लिए रुके फिर बोले, ‘बाहर चकाचौंध है और हमारे भीतर अँधेरा। इसलिए हमने जो अंदर खोया है, उसे बाहर खोजते हैं। लेकिन सच्चाई यही है, जिसे जहाँ खोया है, वो वहीं मिलेगा। इसलिए, अपने अंदर दीप जलाओ और वहीं अपना खोया खजाना खोजो।’


दोस्तों, उपरोक्त कहानी की सीख बेहद सरल और सटीक है। हमारी खुशी, शांति और संतोष कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर है। हम दूसरों से प्रशंसा चाहते हैं और इस बाहरी कृत्य में अपनी ख़ुशी ढूँढते हैं। इसी तरह कई बार हम भौतिक संसाधनों को लाकर अपनी खुशी ढूँढते हैं, लेकिन सच तो ये है कि असली ख़ुशी हमारी आत्मा की गहराई में छुपी है। जब तक हम अपने भीतर का दीपक नहीं जलायेंगे, तब तक बाहर की चकाचौंध भरी रोशनी से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।


दोस्तों, थोड़ा गंभीरता के साथ सोच कर देखियेगा, कहीं आप भी तो अपनी ‘सुई’ बाहर तो नहीं ढूँढ रहे हैं? अर्थात् आप किसी ऐसी चीज को बाहर तलाशने में तो नहीं लगे हैं, जो आपके अंदर ही छुपी है। अगर ‘हाँ’ तो दोस्तों आज से ही बाहर नहीं, अपने भीतर झांकना शुरू करो। खुशी खोजनी है? तो अपने दिल में देखो! शांति चाहिए? तो अपनी आत्मा में उतर जाओ! अर्थात् जीवन को सच्चे अर्थों में जीने के लिए अपने भीतर झाँको, बाहर नहीं!



-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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