भूमि नहीं, अपनी भूमिका बदलो…
- Nirmal Bhatnagar
- Mar 22
- 3 min read
Mar 22, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर आपने सुना होगा कि ‘ज़िंदगी है तो सुख भी आएगा और दुख भी।’ बात सही भी है क्योंकि उतार के बिना चढ़ाव का और दुख के बिना सुख का मजा लेना असंभव ही होगा। लेकिन इस बात का यह अर्थ भी नहीं है कि हम दुखों और परेशानियों के कारणों को समझ कर उन्हें दूर करना बंद कर दें क्योंकि ऐसा करना कहीं ना कहीं हमें उन सुख; उन खुशियों से दूर कर देगा, जिसके हम हकदार है। आइए इस विषय को थोड़ा गहराई से समझने के लिए हम जीवन में सुख और संतोष के महत्व पर चर्चा कर लेते हैं।
हमारे जीवन में दुःख और असंतोष का सबसे बड़ा कारण अपेक्षाओं के अनुसार फल नहीं मिलना है। सामान्यतः हम जो हमारे पास है उसकी कद्र करने के स्थान पर, हमेशा उन चीजों की ओर देखते हैं जो हमें नहीं मिलीं। बजाय इसके कि हम जो कुछ भी हमारे पास है, उसकी कद्र करें। वास्तव में, जीवन को सुखद और संतोषजनक बनाने के दो तरीके हैं। पहला, जो तुम्हें पसंद है, उसे प्राप्त कर लो और दूसरा, जो प्राप्त है, उसे पसंद कर लो।
यदि आप उन चीजों को पाने की इच्छा रखते हैं जिसको पाने का सामर्थ्य आपके पास नहीं है और साथ ही जो आपके पास है उन चीजों को पसंद नहीं करते हैं, तो कुल मिलाकर आप स्वयं ही, अपने सुख के द्वार बंद कर रहे हैं। किसी चीज को पाने की चाह होना और उसके आने का रास्ता बंद होना, एक विरोधाभासी स्थिति पैदा करता है, जो कहीं ना कहीं हमारे अंदर द्वन्द पैदा करती है। इसी वजह से अक्सर इंसान आज उन संसाधनों में ख़ुशियों और सुखों को तलाश रहा है, जो उसके पास नहीं है। यही सुख की तलाश में उसके भटकाव की मुख्य वजह है।
सहमत ना हों तो अपने आस-पास नज़रें घुमा कर देख लीजिए सारा माजरा आपको स्वयं ही समझ आ जायेगा। आज सुख की तलाश में इंसान अपना मकान बदलता है; दुकान बदलता है; कभी-कभी देश बदलता है; यहां तक कि अपना भेष भी बदल लेता है। लेकिन इसके बाद भी कभी ख़ुश और सुखी नज़र नहीं आता क्योंकि वो अपनी सोच और स्वभाव को बदलने का प्रयास नहीं करता, जिससे इन सबको बदला जा सकता था। जी हाँ दोस्तों, सुख और ख़ुशी के लिए हमें असली परिवर्तन अपने भीतर लाना चाहिए, बाहरी परिवर्तन से केवल कुछ समय के लिए राहत मिल सकती है, लेकिन स्थायी सुख नहीं।
लेकिन हममें से कई लोग यह सोचते हैं कि अगर हमें कोई विशेष वस्तु, पद, व्यक्ति या परिस्थिति मिल जाए तो हम खुश हो जाएंगे, पर ऐसा होता नहीं है। जब हम जो चाहते हैं वो पा भी लेते हैं, तब हम किसी नई चीज़ की तलाश में लग जाते हैं। यह एक अंतहीन चक्र है। सच्चा सुख हमारी इच्छाओं की पूर्ति में नहीं, बल्कि संतोष में है। इसी तरह अक्सर लोग यह सोचते हैं कि हमारे दुःख का कारण हमारी परिस्थितियाँ हैं। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है, सुख, ख़ुशी और संतोष के लिए हमारी परिस्थितियाँ उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितना कि हमारा दृष्टिकोण।
इसलिए दोस्तों, मेरा सुझाव है कि स्थायी सुख, ख़ुशी और शांति चाहते हो तो भूमि नहीं, भूमिका बदलने के बदलने के विषय में सोचो। इसका अर्थ है कि हमें बाहरी चीज़ों को बदलने की बजाय अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। जब तक हम अपने स्वभाव और सोच को नियंत्रित नहीं करेंगे, तब तक हमें सुख नहीं मिलेगा। यदि हम हर परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और जो हमारे पास है, उसकी कद्र करते हैं, तो जीवन में सुख की अनुभूति स्वतः ही होने लगेगी।
दूसरे शब्दों में कहूँ तो, यदि आप अपने स्वभाव को नियंत्रित कर लेते हैं, तो आपके जीवन से अभाव समाप्त हो जाता है क्योंकि सुख बाहरी चीज़ों पर निर्भर नहीं करता, वह हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है। जब हम जीवन में संतोष और आंतरिक शांति को प्राथमिकता देते हैं, तो हम किसी भी स्थिति में सुखी रह सकते हैं। इसलिए, अपनी सोच बदलें, अपने स्वभाव को सकारात्मक बनाएं, और जीवन में खुशहाल और संतोषजनक जीवन व्यतीत करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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