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भौतिक लक्ष्य से ज़्यादा ज़रूरी है सुख, शांति और संतुष्टि…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Apr 9, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों मेरी नज़र में हर लक्ष्य का अंतिम लक्ष्य सुख, शांति और संतुष्टि है। अर्थात् अगर आपका लक्ष्य पैसे वाला बनना है या फिर आप कोई बहुत बड़ा व्यवसाय खड़ा करना चाहते हैं या फिर आप बहुत नाम कमाना चाहते हैं तो अंत में आप इन सभी के माध्यम से अपने जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि ही प्राप्त करना चाहेंगे और यह तीनों चीजें कभी भी दोस्तों भौतिक संसाधनों से प्राप्त नहीं की जा सकती है। लेकिन अगर आप मेरी इस बात से सहमत ना हों तो महान सिकंदर को याद करके देख लीजियेगा। तमाम दुनिया को जीतने का सपना रखने वाले सिकंदर को इस दुनिया से ना सिर्फ़ ख़ाली हाथ बल्कि असंतुष्ट ही जाना पड़ा था। ढेर सारी जीते गये युद्ध, कमाई गई दौलत, बड़ा फैला साम्राज्य भी उसे इस दुनिया से जाते वक़्त सुख, शांति और संतुष्टि का अनुभव नहीं करवा पाया था।


इसके ठीक विपरीत सारा साम्राज्य, सारी दौलत, सारी भौतिक सुख-सुविधाओं को छोड़कर, गौतम बुद्ध ने सुख, शांति और संतुष्टि को पा लिया था। इसलिए दोस्तों, मेरा मानना है बाहरी दुनिया की नज़र में हारकर भी जो स्वयं को जीत लेता है वही असली सम्राट होता है। लेकिन जो दुनिया को जीत कर भी स्वयं से हार जाता है, वह मेरी नज़र में कभी सम्राट हो ही नहीं सकता है। यह बात सही है कि सिकंदर महान था, एक बड़े भूभाग का सम्राट था, लेकिन वह ख़ुद के मन को नहीं जीत पाया था, इसलिए मेरी नज़र में उसका जीवन अधूरा था। इसीलिए दोस्तों कहा जाता है कि सम्राट को सुख, शांति और संतुष्टि मिले यह क़तई आवश्यक नहीं है। पर जिसे सुख, शांति और संतुष्टि प्राप्त हो गयी उसे सम्राट अवश्य समझना चाहिए। जी हाँ दोस्तों, सुख, शांति और संतुष्टि के आगे साम्राज्य का कोई मोल नहीं होता है।


लेकिन दोस्तों अगर आप आज के युग को गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि ज़्यादातर लोग भौतिक संसाधनों से इन्हें याने सुख, शांति और संतुष्टि को पाने का प्रयास कर रहे हैं। अर्थात् वे दौलत या पैसे वाला बनके इन्हें पाने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो ग़लत प्राथमिकताओं के चलते वे सुख, शांति और संतुष्टि को दांव पर लगाते हुए दौलत वाले बनने का प्रयास कर रहे हैं जिससे वे अपनी इच्छाओं को पूर्ण करके वापस से सुख, शांति और संतुष्टि पा सकें। आपको नहीं लगता दोस्तों यह घुमाकर कान पकड़ने के समान है?


दोस्तों, इस जीवन की एक बड़ी विडंबना यह भी है कि कभी-कभी यहाँ साम्राज्य याने दौलत, शोहरत आदि सब मिल जाता है। मगर सुख, शांति और संतुष्टि नहीं मिल पाती है और कभी-कभी इसके ठीक विपरीत इंसान को साम्राज्य याने दौलत, शोहरत तो नहीं मिल पाती है, लेकिन हाँ जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि ज़रूर प्राप्त हो जाती है। जैसा कि हम जानते हैं कि साम्राज्य जीवन की उपलब्धि नहीं अपितु शांति जीवन की उपलब्धि है। इसलिए मैं दोनों में से दूसरे याने जिसके पास भले ही दौलत, शोहरत ना हो लेकिन उसके बाद भी वह सुख, शांति और संतुष्टि के साथ अपने जीवन को जी रहा हो, को मैं सफल मानूँगा।

इसलिए दोस्तों हमेशा याद रखियेगा, केवल धनवान बनने से सुख, शांति और संतुष्टि की प्राप्ति नहीं हो सकती है। उसके लिए तो आपको धर्मवान बनना पड़ेगा। तभी जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि की प्राप्ति संभव है। इसलिए दोस्तों शास्त्रों में धर्म विरुद्ध आचरण अशांति का कारण तो धर्ममय आचरण ही जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि का मूल माना गया है। तो आइए साथियों आज से हम अपना जीवन दौलत या भौतिक लक्षण की प्राप्ति के स्थान पर सुख, शांति और संतुष्टि को पाने के नज़रिए से जीना प्रारंभ करते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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