Aug 8, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, किसी ने सही कहा है जीवन के उतार-चढ़ाव आपके ज़िंदा होने की निशानी है। जब हम जीवन में ऊपर चढ़ते हैं तब तक तो सब अच्छा लगता है, लेकिन कई बार जब हम उतार पर होते हैं अर्थात् हमारा सामना विपरीत परिस्थितियों से होता है, तब हमारी असली परीक्षा होती है। सामान्यतः सभी लोग अपनी क्षमता और पूरी शक्ति से इन विपरीत स्थितियों का सामना करते हैं, लेकिन जब हालात हाथ से निकलते हुए नज़र आते हैं तब हम सभी को इससे बाहर निकलने का एक ही रास्ता नज़र आता है, ‘प्रार्थना!’
जी हाँ साथियों, प्रार्थना ही एकमात्र ऐसी चीज़ है, जो हमें उस वक्त सम्बल देती है, जब और कोई उपाय काम नहीं करता है। इसीलिए हम में से कुछ लोग कभी-कभी, तो कुछ लोग रोज़ प्रार्थना करते हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आख़िर प्रार्थना में ऐसा क्या है जो यह प्रत्येक इंसान का विपरीत परिस्थितियों से निपटने का अंतिम उपाय है। दोस्तों, अगर मैं अपने अनुभव के आधार पर कहूँ तो मेरा मानना है प्रार्थना से हमें पहले लाभ के रूप में ‘मन की शांति’ मिलती है, दूसरे लाभ के रूप में, किसी एक बात पर मन को एकाग्र करने की शक्ति और तीसरे व अंतिम लाभ के रूप में हमें प्राप्त होती है, ‘शांति।’
लेकिन दोस्तों, ज़्यादातर लोगों के संदर्भ में आप एक बात एक सामान पाएँगे। लोग अपने मन की शांति, एकाग्रता और ख़ुशी को हमेशा बरकरार नहीं रख पाते हैं। सामान्यतः जब भी वे अपनी दैनिक व्यस्तताओं के कारण प्रतिदिन प्रार्थना नहीं करते हैं तो वे तनाव और दबाव जैसे नकारात्मक भावों के बीच फिर से घिर जाते हैं। बल्कि कई लोगों की स्थिति तो और बुरी होती है। वे प्रतिदिन प्रार्थना से प्राप्त एकाग्रता, शांति या ख़ुशी को अपनी नौकरी, व्यवसाय, रिश्तों या ज़िम्मेदारियों की वजह से उत्पन्न तनाव या प्रेशर की वजह से खो देते हैं।
तो दोस्तों, उपरोक्त विरोधाभासी बातों के आधार पर यह माना जाए कि किसी भी तरह से हर वक्त मन को शांत, एकाग्र और खुश रखना असम्भव है? बिलकुल भी नहीं! हम सभी लोग अपनी जीवन शैली, सोच और कार्य करने के तरीके में थोड़ा सा बदलाव करके मन की शांति, एकाग्रता और ख़ुशी को हर पल के लिए अपना साथी बना सकते हैं। आइए, आज हम मन की शांति, ख़ुशी और एकाग्रता को हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए आवश्यक 3 सूत्रों को सीखते हैं-
पहला सूत्र - अहंकार को कहें बाय-बाय
हर हाल, हर परिस्थिति में मन को शांत, एकाग्र और खुश रखने के लिए सबसे पहले आपको अपने अहंकार को पूरी तरह बाय-बाय कहना होगा।
दूसरा सूत्र - ‘तेरा तुझको अर्पण’ का भाव रखें
वैसे तो हम सभी जानते हैं कि अहंकार हमें नुक़सान पहुँचाता है लेकिन उसके बाद भी उसका अंश हम सभी में मौजूद रहता है क्यूँकि हमारे अंदर मैं, मेरा, मैंने किया, मरी वजह से हुआ आदि जैसी कई बातों का भाव मौजूद रहता है। इससे बचने का एकमात्र तरीक़ा है अपने प्रत्येक कार्य और उसके परिणाम को ‘तेरा तुझको अर्पण’ के भाव के साथ ईश्वर को समर्पित कर दिया जाए। दूसरे शब्दों में कहूँ तो दोस्तों, हम सभी को पूरी तरह अपने आपको ईश्वर के चरणों में समर्पित करना होगा। जब आप स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित करते हैं तब आप स्वयं को आनंद के सम्मुख पाते हैं क्यूँकि ईश्वर सूर्य के समान ऊर्जा का वाहक है जिसके आगे अंधेरा टिक नहीं सकता है या यह भी कहा जा सकता है कि ईश्वर आनंद का प्रतीक है और हम स्वयं को आनंद के हवाले कर रहे हैं।
तीसरा सूत्र - आशावान रहें
याद रखें हर दिन आप एक नई पारी की शुरुआत शून्य से करते हैं अर्थात् आपने जो भी खोया या पाया था, वह अब अतीत का हिस्सा है। उसको पकड़े रहना या उसके साथ चिपके रहना आपको जीवन में आगे बढ़ने से रोकता है।
याद रखिएगा दोस्तों, अहंकार हमें ईश्वर अर्थात् परम आनंद से दूर कर, दुखी करता है और इसी वजह से तनाव जैसे नकारात्मक भाव हमें घेर लेते हैं। उपरोक्त तीन सूत्रों की सहायता से जब आप अपने और ईश्वर के बीच मौजूद अहंकार के सूक्ष्म पर्दे को हमेशा के लिए हटा देते हैं तब आप मन की शांति, एकाग्रता और ख़ुशी को हमेशा के लिए पा लेते हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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