Sep 1, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, सोच कर देखिए, इस दुनिया में ऐसा कौन होगा जो खुश या आनंदित नहीं रहना चाहता होगा? आप कहेंगे, ‘शायद कोई नहीं!’, लेकिन मैं गारंटी से कह सकता हूँ, ‘हर कोई’। अर्थात् इस प्रश्न के जवाब में ‘शायद’ की कोई गुंजाइश ही नहीं है। इस दुनिया में स्वाभाविक तौर पर हर इंसान खुश और आनंदित ही रहना चाहता है और इस ‘ख़ुशी’ और ‘आनंद’ को पाने के लिए ही वो हर दिन, हर पल अपनी ओर से प्रयासरत रहता है। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इतना सब करने के बाद भी ज़्यादातर लोग इस जीवन में सब कुछ होने के बाद भी खुश और आनंदित नहीं रह पाते हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि जो चीज उनके पास पहले से ही है, वे उसे बाहर खोजने का प्रयास करते हैं।
यह स्थिति बिल्कुल मृग की तरह होती है। मृग कस्तूरी की सुगंध में पागल हो उसे वन में भटकते हुए खोजता है। वह हर पल इस बात से अनजान बना रहता है कि कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ उसकी नाभि में ही स्थिर याने मौजूद है। वह कभी भी उसे अपने अंदर खोजने का प्रयास नहीं करता। अब आप ही बताइये दोस्तों, जो चीज मृग के अंदर याने उसकी नाभि में मौजूद है वह क्या उसे बाहर भटकने पर मिल सकती है? नहीं ना… ठीक इसी तरह ख़ुशी भी इंसान के अंदर मौजूद होती है, लेकिन अक्सर उसे इंसान अपने अंदर खोजने के स्थान पर बाहर ढूँढता है।
जी हाँ दोस्तों, ख़ुशी और आनंद को बाहर ढूँढना ही हमारे दुख और परेशानी की मुख्य वजह है। अर्थात् अक्सर मन के भटकाव के कारण ज़्यादातर लोग ख़ुशी और आनंद को बाज़ार में मिलने वाली वस्तुओं और भौतिक साधनों के साथ जोड़ कर देखते हैं। वे नहीं जानते हैं कि ख़ुशी और आनंद कहीं बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं जिसे आप खरीद कर ला सको। जीवन में इसका याने ख़ुशी और आनंद का स्रोत केवल और केवल हमारा मन है। यदि मन संतुष्ट है तो अभावों में भी आपको प्रसन्नता प्रदान कर देगा और यदि मन असंतुष्ट है तो संपूर्ण ऐश्वर्यों के बीच में भी आपको दुःखी कर देगा। जी हाँ दोस्तों, आनंद तो दूध में घी की तरह आपके भीतर ही समाहित है, जब भी निकलेगा कहीं बाहर से नहीं अपितु स्वयं के भीतर से ही निकलेगा।
इस आधार पर कहा जाए तो ख़ुशी और आनंद किसी परिस्थिति विशेष का नाम नहीं है, अपितु यह तो प्रत्येक स्थिति में मन को प्रसन्न रखने की कला का नाम है। इसीलिए दोस्तों, भारतीय अध्यात्म में बताया गया है कि मन से ही मोक्ष है; मन से ही बंधन है; मन से ही अभाव है और मन से ही ख़ुशी और आनंद का रास्ता है। इसलिए साथियों, जीवन में कुछ सीखना है तो मन को साधना सिखाइये क्योंकि यही आपको खुशहाल और आनंददायक जीवन की ओर लेकर जाएगा। इसीलिए कहते हैं, ‘जिसने मन को साधा है, वही तो साधु भी है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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