Aug 30, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कहते हैं आपका व्यक्तित्व उन पाँच लोगों के व्यक्तित्व का मिलाजुला स्वरूप रहता है, जिनके साथ आप अपना ज़्यादातर समय बिताते हैं। इसीलिए दोस्तों, भारतीय दर्शन में ‘साधना’ से महत्वपूर्ण ‘संग’ याने संगत को बताया है। जी हाँ साथियों, हम कितना भी ध्यान कर लें; कितना भी भजन कर लें; कितनी भी अच्छी किताबें पढ़ लें; कितनी भी परीक्षाएँ पास कर लें, लेकिन अगर संगत सही नहीं है, तो उपरोक्त सभी कार्य आपके जीवन को ज़्यादा बेहतर नहीं बना पायेंगे। अगर इसी बात को दूसरे शब्दों में कहा जाये तो अगर संगत सही ना हो, तो जीवन भर में आपने जो भी सुना है; जो भी पढ़ा है; जो भी जाना है, वह सब व्यर्थ चला जाएगा याने आप उसे अपने आचरण; अपने व्यक्तित्व; अपने चरित्र में उतार नहीं पाओगे।
उपरोक्त को आधार मान देखा जाये, तो अगर आप अमीर लोगों के बीच रहेंगे तो आप पैसा कमा कर अमीर बनना सीख जाएँगे। राजनैतिक लोगों के बीच में रहेंगे तो राजनेता बनना। हर स्थिति-परिस्थिति से ऊपर उठकर हमेशा ख़ुश रहने वालों के बीच में रहेंगे, तो ख़ुशमिज़ाज इंसान बन जाएँगे। अगर रोने, चिंता करने, परेशानियाँ देखने वाले लोगों के बीच रहेंगे, तो दुखी इंसान बन जाएँगे और अगर आप साधना में लीन लोगों के बीच रहेंगे, तो साधक बन जाएँगे। इसीलिए कहा जाता है, ‘आप जिस माहौल में रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।’
यह बात दोस्तों, हमें ना सिर्फ़ याद रखनी है अपितु अपनी अगली पीढ़ी को भी बार-बार बतानी है। अन्यथा उनके जीवन में सब कुछ होते हुए भी सुख और शांति दोनों साथ नहीं रह पायेगी। ऐसा कहने की मुख्य वजह आसानी से ग़लत संगत उपलब्ध होना है। आज के युग में जहाँ बच्चों के पास ढेरों टीवी चैनल, हाथ में इंटरनेट वाला मोबाइल और आसानी से ओटीटी प्लेटफार्म पर ग़लत भाषा और ग़लत संदेश वाला ढेर कंटेंट उपलब्ध है, जो उन्हें सही और ग़लत की पहचान होने के पहले ही बिगाड़ रहा है; समय से पहले बड़ा बना रहा है।
याद रखियेगा दोस्तों, दुर्जन याने ग़लत लोगों या ग़लत विचारों की संगति भी बड़ी ख़तरनाक और नुक़सानदायक होती है। यह आदमी की सोच, उसके आचरण, उसके व्यक्तित्व ही नहीं, बल्कि उसके चरित्र तक को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। अगर आप इससे बचना चाहते हैं या अपने बच्चों, परिजनों या परिचितों को इससे बचाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उनकी संगत को सुधारिये। ऐसा करते ही आप पायेंगे कि उनमें सकारात्मक बदलाव आने लगा है।
संभव है कि आप में से कुछ लोगों को मेरी बात उचित ना लगे या आप मेरे द्वारा दिये गये तर्कों से सहमत ना हों। हो सकता है आप में से कुछ लोगों का मानना हो कि अच्छी संगत से ग़लत लोगों को सुधारना संभव नहीं है, तो मैं आप लोगों से कहूँगा कि आप नारद मुनि की संगत के प्रभाव से लूटपाट करने वाले डाकू रत्नाकर के महर्षि वाल्मीकि बनने की घटना को याद कर लीजिएगा। एक संगत ने उनके पूरे जीवन को ना सिर्फ़ बदल दिया, बल्कि रामायण का रचियता बना दिया। ठीक इसी तरह भगवान गौतम बुद्ध के थोड़े से साथ ने डाकू अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर दिया था।
याद रखियेगा दोस्तों, अच्छी संगत पहले आपके विचार, फिर आपकी सोच, फिर हृदय और जीवन के प्रति नज़रिए को बदल कर आपके व्यवहार, व्यक्तित्व, आचरण और चरित्र में सकारात्मक परिवर्तन लाकर आपके जीवन को बेहतर बनाती है। इसीलिए कहा जाता है, ‘महापुरुषों के संग से जीवन सुधरता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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