Nirmal Bhatnagar
माँगो मत, देना सीखो !!!
Apr 27, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरी नज़र में मानसिक शांति का हमारे अचीवमेंट से कोई लेना देना नहीं है। आप सब-कुछ होते हुए भी दुखी रह सकते हैं और कुछ ना होने के बाद भी शांति के साथ सुखी रह सकते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कई सौ वर्ष पुरानी है माधोपुर का राजा एक समृद्ध राज्य, गुणवान पत्नी, संस्कारी संतान और ज्ञानी मंत्रिमंडल आदि सब कुछ होने के बाद भी दुखी रहा करता था।
एक बार राज्य के भ्रमण के दौरान उसकी नज़र साप्ताहिक बाज़ार में मिट्टी का मटका बेच रहे कुम्हार पर पड़ी, जो किसी भी प्रकार का सुख-संसाधन ना होने के बाद भी पूर्ण संतुष्टि के साथ हरी भजन गा रह था। उसके चेहरे का तेज़ और शांति देख अनायास ही राजा उसकी ओर खिंचा चला गया। राजा को अपने सामने देख कुम्हार पूर्व की ही तरह पूरी तरह शांत रहा और बड़े आदर के साथ राजा को पानी पिलाते हुए सामान्य बातचीत करने लगा।
कुम्हार की बातचीत में ठहराव और चेहरे पर तेज देख महाराज बड़े प्रभावित हुए और उससे बोले, ‘प्रजापति जी आप मेरे साथ नगर चलो, वहाँ काफ़ी बड़ा बाज़ार है उसमें आप मटकियाँ बना-बना कर बेचना। उससे आप ख़ूब सारा पैसा कमा पाओगे।’ कुम्हार बोला, ‘महाराज, वह पैसा क्या करेगा?’ महाराज बोले, ‘प्रजापति जी, यह कैसा सवाल है कि ‘पैसा क्या करेगा?’, पैसा ही सब कुछ है।’ कुम्हार मुस्कुराया और बोला, ‘यह आपने अच्छा बताया राजन। एक बात और बताइए मैं इस पैसे का करूँगा क्या?’ महाराजा बोले, ‘अरे फिर आराम से भगवान का भजन करते हुए, आनंद से रहना।' कुम्हार दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘महाराज, बुरा ना माने तो क्या मैं आपसे एक प्रश्न कर सकता हूँ’ महाराज के हाँ में सर हिलाते ही कुम्हार बोला, ‘महाराज, पूरी ईमानदारी से बताइएगा मैं अभी क्या कर रहा हूँ।’ सवाल सुनते ही राजा सकपका गए, ऐसा लग रहा था मानो इस प्रश्न ने उन्हें झकझोर दिया था। काफ़ी देर सोच-विचार करने के बाद राजा बोले, ‘प्रजापति जी, जहाँ तक मैं देख पा रहा हूँ उस आधार पर तो आप इस समय आराम से भगवान का भजन कर रहे हैं और अपने जीवन को पूरे आनंद के साथ जी रहे हैं। कुम्हार मुस्कुराते हुए बोला, ‘राजन, मैं आपको यही कहना चाह रहा था कि आनंद और शांति को पैसों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उसके लिए तो आपको पाने के स्थान पर देने के आधार पर जीवन जीना सीखना होगा।’
दोस्तों, वैसे तो आप समझ ही गए होंगे कि सब कुछ होने के बाद भी कुछ लोग शांत, संतुष्ट और सुखी क्यों नहीं रह पाते हैं?, लेकिन फिर भी एक बार संक्षेप में उस पर चर्चा कर लेते हैं। जैसा कि कुम्हार ने कहा, ‘माँगो मत, देना सीखो!’ यही अपने आप में आनंद और शांति की राह पर चलने का पहला कदम है क्योंकि जब आप पाने की जगह देना शुरू करते हैं तब आप स्वार्थ को छोड़ परमार्थ की राह चुनते हैं। परमार्थ आपको आत्म संतुष्टि प्रदान कर शांत और खुश रहने का मौक़ा देता है।
वैसे अगर हम इसे दूसरे नज़रिए से देखें तो जब आप कुछ नया पाने के विषय में सोचते हैं तब आप जो आपके पास होता है उस पर से ध्यान हटाकर, उन चीजों को देखने लगते हैं जो आपके पास नहीं होता है। यह स्थिति आपके अंदर असंतुष्टि के भाव को बढ़ाती है। इसके विपरीत जब आप देते हैं तब आप अपना पूरा ध्यान जो आपके पास होता है उस पर लगाते हैं, यह आपको संतुष्टि के भाव से भर देता है। अधिकांशतः लोगों के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही है कि जो कुछ भी उसके पास है वो उसमें सुखी नहीं है और बस जो नहीं है उसे पाने के चक्कर में दुःखी है! अरे भाई जो है उसमें खुश रहना सीख लो, दुःख अपने आप चले जाएँगे। जो नहीं है उसके चक्कर में क्यों दुःखी रहना! याद रखिएगा, आत्म संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं और जिसके पास सन्तोष रूपी धन है, वही सबसे बड़ा सुखी है और वही आनन्द में है और सही मायने में वही राजा है!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर