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मांगो मत, अधिकार स्थापित करो…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Oct 30, 2023
  • 3 min read

Oct 30, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पहले माँगने और फिर पाने की अपेक्षा रखने से बेहतर, अपनी पात्रता बढ़ाना है क्योंकि किसी भी तरह की अपूर्ण अपेक्षा अंततः निराशा की ओर ले जाती है। ठीक इसी तरह अपेक्षा रख कर लोगों को देना या उनकी सेवा करना भी एक ना एक दिन निराशा का कारण बन जाता है। अगर अपनी इसी बात को मैं दूसरे शब्दों में कहूँ तो अपेक्षा रख कर किया गया कर्म अक्सर आपको जीवन में निराशा देता है। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।


कई वर्षों बाद हाल ही में मेरी मुलाक़ात एक पूर्व परिचित से हुई। सामान्य औपचारिक बातों के दौरान जब मैंने उनसे उनके दत्तक पुत्र के विषय में पूछा तो वे बोले, ‘निर्मल कहाँ उसकी याद दिला रहे हो, वह तो एकदम नाकारा और नालायक निकला।’ उनके यह शब्द सुनते ही मेरी आँखों के सामने उनके साथ पूर्व में बिताया गया समय एक चलचित्र की भाँति चलने लगा। असल में इन सज्जन ने गाँव से बुलवाकर एक बच्चे को अपने पास इसलिए रखा था कि वो उनके बुजुर्ग माता-पिता का ध्यान रख सके। उस बच्चे ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी तब तक निभाया जब तक वे इस दुनिया में थे। इसी दौरान उन सज्जन ने इस बच्चे का दाख़िला एक विद्यालय में करवा दिया था।


सही समय पर मिले सही एक्सपोज़र का प्रभाव बच्चे पर जल्द नज़र आने लगा और देखते ही देखते इस बच्चे ने अपनी लगन और मेहनत से अच्छे परिणाम लाना प्रारंभ कर दिया। वह बच्चा अब उक्त परिवार का सदस्य सा बन गया था। एक ओर जहाँ वे सज्जन इस बच्चे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभा रहे थे, वहीं यह बच्चा भी पढ़ाई के साथ-साथ घर पर विभिन्न कार्यों में हाथ बँटाकर शहर लाये जाने के मूल उद्देश्य की पूर्ति कर रहा था।


आज कई साल बाद उस बच्चे के बारे में परिचित के बदले हुए विचार सुनकर मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था। जब मैंने उनसे थोड़ा विस्तार में इस विषय में चर्चा करी तो मुझे पता चला कि वह बच्चा आज अपनी शिक्षा पूर्ण कर एक अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा है। लेकिन अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों या योजनाओं की पूर्ति के लिए यह सज्जन उसे वापस बुलाना चाह रहे हैं। उनका मानना था कि वह अब एहसान फ़रामोश इंसानों की भाँति व्यवहार कर रहा है और इसी वजह से वे काफ़ी निराश चल रहे हैं।


दोस्तों, मुझे नहीं पता इन दोनों में से कौन सही और कौन ग़लत था। लेकिन मैं यह बहुत अच्छे से कह सकता हूँ कि ग़लत अपेक्षा के कारण उन सज्जन ने जीवन भर ऊर्जा, ख़ुशी और अच्छा अहसास देने वाले कार्य को अपनी निराशा की वजह बना लिया था। याद रखिएगा साथियों, आशा रख कर की गई सेवा भी अंत में निराशा का कारण बनती है। वैसे भी आपके द्वारा की गई सेवा का फल आपको ईश्वर देगा ना कि वह इंसान जिसको इसका लाभ मिला है। वैसे भी भविष्य में फल प्राप्ति के नज़रिए से की गई सेवा या मदद, सेवा और मदद हो कैसे सकती है? मेरी नज़र में तो यह व्यापार है।


याद रखियेगा दोस्तों, सेवा या मदद कोई वस्तु नहीं है, जिसे खरीदा अथवा बेचा जा सके या फिर जिसे किसी अपेक्षा के साथ दूसरे को दिया जाए और ना ही सेवा या मदद प्रसिद्धि कमाने का ज़रिया है। बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि सेवा या मदद को तो पुण्य कमाने का साधन भी नहीं मानना चाहिए। यह तो बस नर सेवा के ज़रिये नारायण सेवा करने का रास्ता है। इसलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था कुछ पाने की आस से मदद और सेवा मत करो और ठीक इसी तरह माँगने और फिर पाने की अपेक्षा रखने से बेहतर, अपनी पात्रता बढ़ाना है। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘मांगो मत, अधिकार स्थापित करो, अपने-आप मिल जायेगा…’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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