Oct 5, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इस बदलते युग में बच्चों और माता-पिता दोनों की परेशानियाँ भी बदल रही है। जैसे, कुछ माता-पिता और बच्चे कम मित्र होने की वजह से परेशान हैं, तो कुछ मित्रों की अधिकता से। अर्थात् कोई अपने बच्चों को सबके बीच में भी मित्र ना होने की वजह से अकेला पाता है, तो कोई बच्चों की अधिक मित्रता के कारण ख़ुद को पीछे छूटा हुआ महसूस करता है। ऐसे में मन में एक प्रश्न आता है कि आदर्श स्थिति में एक बच्चे के कितने मित्र होने चाहिये? दो-चार या ज़्यादा? तो मैं कहूँगा कि इसका कोई सीधा-सीधा सूत्र नहीं है। लेकिन फिर भी इस प्रश्न का जवाब मैं एक कहानी से देने का प्रयास करता हूँ।
एक दिन राजू अपने गुरु के पास पहुँचा और उनसे बोला, ‘गुरुजी, मेरे एक या दो ही मित्र हैं, इसलिए मुझे अक्सर परिवार के लोगों के द्वारा भी टोका जाता है। आपके अनुसार एक अच्छे जीवन के लिए कितने मित्रों का होना आवश्यक है, एक या अनेक? राजू का प्रश्न सुन गुरुजी मुस्कुराए और उससे बोले, ‘राजू! मेरा सुझाव है आने वाले कुछ घंटों में तुम स्वयं इस प्रश्न का जवाब खोजने का प्रयास करो।’
इतना कहकर गुरुजी राजू को आम के बगीचे में ले गये और आम के एक पेड़ के नीचे खड़े होकर बोले, ‘राजू, क्या तुम मुझे इस वृक्ष की सबसे ऊपरी डाल पर लगे आम को तोड़ कर दे सकते हो।’ गुरु की बात पूर्ण होते ही राजू पेड़ की सबसे ऊपरी शाख़ की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘गुरुजी क्या आप उस आम को तोड़ कर देने के लिए कह रहे हैं?’ गुरुजी के ‘हाँ’ कहते ही राजू का चेहरा उतर गया और वो निराशा के भाव के साथ बोला, ‘गुरुजी, मैं हक़ीक़त में आपको वह आम तोड़ कर देना चाहता हूँ, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मैं अकेला वहाँ तक पहुँच नहीं पाऊँगा।’ राजू की बात पूरी होती ही गुरुजी बोले, ‘कह तो तुम बिलकुल ठीक रहे हो, पर तुम अपने दोस्त से मदद माँग कर इस कार्य को पूर्ण कर सकते हो।’
राजू को गुरुजी का उपाय बहुत पसंद आया। वो पूरे उत्साह के साथ मुस्कुराया और दौड़ते हुए अपने दोस्त बंटी के पास गया और उसे पूरी बात बताते हुए मदद करने के लिए कहा। अब बंटी और राजू दोनों मिलकर उस आम को तोड़ने का प्रयास करने लगे। इस प्रयास में कभी राजू, बंटी के कंधे पर बैठा तो कभी बंटी, राजू के। लेकिन इससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अंत में राजू थक-हारकर गुरुजी के पास गया और उनसे बोला, ‘गुरुजी, मुझे अभी भी आम तोड़ने में सफलता नहीं मिली। अब आप बताइए मैं क्या करूँ?’ गुरुजी बोले, ‘राजू बेटा, क्या तुम्हारे पास और मित्र नहीं है?’ राजू तुरंत बोला, ‘हे ना गुरुजी!’ गुरुजी बोले, ‘फिर तुम उनकी मदद क्यों नहीं लेते हो।’
राजू को गुरु का यह विचार बहुत पसंद आया और वह नई ऊर्जा के साथ, दौड़ता हुआ अपने बचे हुए मित्रों के पास गया और उन्हें बुला लाया। अब सारे दोस्त मिलकर कभी ह्यूमन पिरामिड बनाकर तो कभी एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर तो कभी पीठ पर चढ़कर, अलग-अलग मानव आकृतियों बनाते हुए आम तक पहुँचने का प्रयास करने लगे। लेकिन वो शाखा इतनी अधिक ऊँची थी कि उनके द्वारा बनाया गया ‘मानव पिरामिड’ भी ढह गया और इस प्रयास में थककर उन्होंने पेड़ की उस शाखा तक पहुँचने की सारी उम्मीदें भी खो दी।
बच्चों को हताश देख गुरुजी ने राजू को बुलाया और उससे पूछा, ‘राजू, मुझे लगता है अब तुम जान चुके होगे कि जीवन में कितने दोस्त होने चाहिये?’ राजू बोला, ‘जी गुरुजी! मुझे लगता है, जीवन में ढेर सारे दोस्त होने चाहिये, ताकि मुश्किल समय में वे एक साथ मिलकर किसी भी समस्या को हल करने का प्रयास कर सकें।’ गुरुजी ने मुस्कुराते हुए असहमति में सिर हिलाया और बोले, ‘राजू, मित्रों की संख्या से नहीं अपितु उनकी बुद्धिमत्ता से फ़र्क़ पड़ता है। मित्र तो तुम्हारे भी ढेर थे, लेकिन इनमें से एक भी इतना बुद्धिमान नहीं था, जो पास में रखी सीढ़ी लाकर आम तोड़ने के विषय में सोच सकता।’
विचार तो दोस्तों गुरुजी का सटीक था। मित्रों की संख्या नहीं बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता आपके जीवन को बेहतर बनाती है। इसलिए हमारे समाज में संगति को महत्वपूर्ण बताया गया है। इसलिए याद रखें बच्चों की संगत छोटी या बड़ी होने के स्थान पर ऐसी होना चाहिये जो उन्हें उनकी सीमाओं से आगे जाकर जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित कर सके। याद रखियेगा, मित्र वही जो अपने दिल में अपने मित्र का हित रख सके।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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