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मित्र भले ही एक हो, लेकिन नेक हो…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Jan 27, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

मित्र भले ही एक हो, लेकिन नेक हो। जी हाँ दोस्तों, मित्रों के विषय में संख्या नहीं आपसी विश्वास ज्यादा मायने रखता है। लेकिन कहीं ना कहीं यह बात हम आज बच्चों को सिखा नहीं पा रहे हैं। इस बात का एहसास मुझे हाल ही में बच्चों के एक समूह से मित्रता के विषय में बातचीत के दौरान हुआ। इस चर्चा के दौरान मैं साफ़ तौर पर महसूस कर पा रहा था कि आज के ज्यादातर बच्चे स्वार्थ या किसी ना किसी बात से इंफ्लूएंस हो मित्र चुन रहे हैं। यह प्रभाव पैसे, रूप-रंग या भौतिक सफलता के आधार पर हो सकता है।


मित्रता ग़लत आधार पर करना असल में उनकी नहीं हमारी विफलता है क्योंकि कहीं ना कहीं हम लोग उन्हें नहीं समझा पाये हैं कि मित्रता वह अनमोल रिश्ता है, जो बिना किसी स्वार्थ के जुड़ता है और मुश्किल भरे समय में आपके साथ हर पल खड़ा रहता है। इसलिए सच्चे मित्र को पहचानने में थोड़ा वक्त भी लगता है। चलिए अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई साल पुरानी है, परीक्षा खत्म होते ही दो दोस्त घूमने के लिए जंगल गए। वहाँ अचानक ही उनका सामना एक भालू से हो गया, जिसे देखते ही वे दोनों घबरा गए। दोनों दोस्तों में से एक दोस्त दौड़ने में तेज था और दूसरा सामान्य। तेज दौड़ने वाला मित्र भालू से नजरें बचा कर, अपने मित्र को मुश्किल में अकेला छोड़ तेज़ी से दौड़ा और एक पेड़ पर चढ़ गया। दूसरे मित्र को कुछ समझ नहीं आया तो वह भालू से बचने के लिए अपनी साँस रोक कर ज़मीन पर लेट गया और ऐसा अभिनय करने लगा जैसे वह मर चुका है। कुछ ही पलों में भालू ज़मीन पर लेटे व्यक्ति के पास आया और उसे चेहरे के पास सूँघ कर वापस चला गया। भालू के वहाँ से जाते ही पेड़ पर चढ़ा मित्र नीचे उतरा और हँसते हुए बोला, ‘बताओ मित्र भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था?’ ज़मीन पर उल्टा लेटा मित्र उठा और बोला, ‘भालू मुझे समझाते हुए सलाह दे रहा था कि ऐसे दोस्तों से सावधान रहो, जो मुश्किल समय में तुम्हारा साथ छोड़ दे।’


दोस्तों कहानी साधारण सी है, लेकिन मित्रता के विषय में हमें बड़ी महत्वपूर्ण बात सिखाती है कि‘सच्चा मित्र वही, जो संकट के समय आपके साथ खड़ा रहे।’ वैसे यही बात बचपन से ही हमें भी सिखाई गई है। आइए आज नैतिक कहानियों के द्वारा हमें मित्रता के विषय में सिखाई गई बातों को चार सूत्रों के रूप में दोहरा लेते हैं-

1) मित्रता निस्वार्थ भाव से होती है, अर्थात् सच्चा मित्र स्वार्थ से परे होता है। वह बिना अपना नफ़ा-नुक़सान देखे आपके साथ उस वक़्त खड़ा रहता है, जब आपको उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। फिर भले ही उस विकट दौर में पूरी दुनिया ने ही आपका साथ क्यों ना छोड़ दिया हो।

2) मित्र वही जो संकट में साथ दे, अर्थात् मुसीबत के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है। जो लोग केवल सुख के समय आपके साथ खड़े नजर आते हों, वे मित्र नहीं, केवल अवसरवादी होते हैं।

3) ईमानदारी - यह एक ऐसा गुण है जो सच्चे मित्र की सबसे बड़ी पहचान होता है। एक सच्चा मित्र ना सिर्फ़ व्यवहार में ईमानदार होता है, बल्कि वह तो स्पष्ट रूप से आपको आपकी ग़लतियों पर टोकता भी है और आपको उन्हें दूर करने में मदद करता है।

4) भरोसा - भरोसा और विश्वास मित्रता का मूलभूत आधार होता है। जो आपका सच्चा मित्र होगा वह इसे कभी भी, किसी भी हालत में तोड़ने नहीं देगा।


सच्चा मित्र पहचानने के लिए बच्चों को निम्न तीन मुख्य बातें सिखाई जा सकती है-

1) सच्चा मित्र वही होता है जो आपके पीछे आपकी अच्छाइयों से दूसरों को रूबरू करवाता है; आपके बारे में दूसरों के सामने अच्छा बोलता है।

2) सच्चा मित्र आपकी सफलता पर उतना ही ख़ुश होता है, जितना ख़ुद की सफलता पर और साथ ही अगर आप किसी कारण से असफल हो जाएँ तो वो आपका सहारा बन, आपके साथ खड़ा रहता है।

3) सच्चा मित्र परिस्थितियों को नकार कर निस्वार्थ भाव से हमेशा आपके साथ खड़ा रहता है।


कुल मिलाकर कहूँ दोस्तों, तो मित्रता एक अनमोल रिश्ता है, जो विश्वास, निस्वार्थता और सहयोग पर आधारित होता है। लेकिन यह जरूरी है कि हम अपने जीवन में सच्चे मित्रों को पहचानें। सच्चा मित्र वह नहीं होता, जो केवल सुख में साथ हो, बल्कि वह होता है, जो हर मुश्किल घड़ी में आपकी ढाल बन जाए। ऐसे मित्रों की कद्र करें और उनके साथ अपनी मित्रता को और मजबूत बनाएं। याद रखें, एक सच्चा मित्र जीवन को खुशियों और प्रेरणाओं से भर देता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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