top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

मुट्ठी बंद या खुली !!!

Oct 10, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करता हूँ। बात कई साल पुरानी है, एक संत अपनी कुटिया में ध्यान में मग्न बैठे थे। संत का ध्यान कुटिया के बाहर से आते एक शोर से भंग हुआ। संत ने बाहर जाकर देखा तो कुटिया के सामने पेड़ के ऊपर बैठा एक बंदर जोर-जोर से शोर कर रहा था। संत ने क़रीब जाकर देखा तो पता चला उस बंदर का हाथ एक पोखर के अंदर फँस गया था और वह अपना हाथ छुड़ाने के लिए प्रयास कर रहा था।


संत उस बंदर की हरकत को काफ़ी देर तक देख कर मुस्कुराते रहे। संत की हरकत को देख बंदर थोड़ा सा चिढ़ते हुए बोला, ‘महात्मा जी आप तो इतने ज्ञानी हैं, तमाम आध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञाता हैं, उसके बाद भी आप मेरी स्थिति पर हंस रहे हैं? महाराज आपको तो मेरी मदद करना चाहिए।’ संत को तुरंत स्थिति का भान हुआ और वे बंदर से माफ़ी माँगते हुए बोले, ‘मैं तुम पर नहीं बल्कि स्वयं पर हंस रहा था। तुम्हारी स्थिति को देख मुझे अपनी सबसे बड़ी गलती समझ आ गई थी।’ महात्मा जी की बात को नज़रंदाज़ करते हुए बंदर बोला, ‘महाराज, आपकी समस्या, उसके समाधान पर तो हम बाद में चर्चा कर लेंगे। लेकिन अगर आप मुझे इस समस्या से छुटकारा दिला देंगे तो आपकी बहुत कृपा होगी।’


बंदर की बात सुन महात्मा जी बोले, ‘तुम्हारी समस्या का समाधान तुम्हारे पास ही है। याद करके देखो जब तुमने इस पोखर में हाथ डाला होगा तो बहुत आराम से गया होगा। लेकिन अब जब तुम हाथ बाहर निकालना चाह रहे तो वह अंदर फँस गया है क्यूँकि जब तुमने हाथ अंदर डाला था तब तुम्हारी मुट्ठी खुली हुई थी लेकिन अब तुम बंद मुट्ठी बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हो इसलिए तुम्हारा हाथ पोखर के अंदर फँस गया है। तुम अपना हाथ खोल कर बाहर निकालोगे तो वह तुरंत बाहर आ जाएगा।’


महात्मा की बात सुन बंदर बोला, ‘महात्मा जी, यह कैसी बात कर रह हैं, मैंने अपने हाथ में लड्डू पकड़ा हुआ है, उसे कैसे छोड़ दूँ? कृपया कोई और उपाय बताइए।’ संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘या तो तुम लड्डू छोड़ दो या फिर फँसे हुए हाथ के साथ जीवन जीयो।’ महात्मा की बात को नज़रंदाज़ करते हुए बंदर अपनी ओर से नए-नए प्रयास करने लगा, लेकिन सफल ना हो सका। हज़ार प्रयासों के बाद भी असफल रहने के बाद बंदर को एहसास हुआ कि बिना लड्डू छोड़े मेरा हाथ बाहर नहीं निकल सकता और मैं मुक्त नहीं हो सकता। बंदर ने यह विचार आते ही लड्डू छोड़ा और सहजता के साथ उस पोखर से हाथ बाहर निकाल लिया।


हाथ बाहर आते ही बंदर ने महात्मा को धन्यवाद दिया और विनम्रता के साथ बोला, ‘महात्मा जी, मुझे इस पोखर से हाथ बाहर निकालने के लिए धन्यवाद। लेकिन एक प्रश्न अभी भी मुझे परेशान कर रहा है, आप मुझे देख कर मुस्कुरा क्यूँ रहे थे? महात्मा गम्भीर स्वर में बोले, ‘मैंने तुम्हें पहले भी कहा मैं तुम पर नहीं खुद पर हंस रहा था क्यूँकि तुम्हारे लड्डू लिए फँसे हाथ को देख मुझे अपना जीवन याद आ रहा था। जिस तरह तुम लड्डू लिए उस पोखर से मुक्त होने का प्रयास कर रहे थे उसी तरह मैं सांसारिक वस्तुओं, इच्छाओं, लोभ-लालच लिए इस संसार रूपी मायाजाल से मुक्त होने का प्रयास कर रहा हूँ।


बात तो सही है दोस्तों, जब तक हम अपने अंदर की उलझनों से मुक्त नहीं होंगे तब तक शांति, सुख की आस करना सिर्फ़ कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com



8 views0 comments
bottom of page