मुनाफे से ज़्यादा मायने रखती है किसी की मुस्कान…
- Nirmal Bhatnagar
- May 3
- 3 min read
May 3, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, आज के युग में जहाँ सामान्यतः लोग परमार्थ से ज़्यादा स्वार्थ-सिद्धि में नजर आते हैं, वहीं कुछ लोग अपने छोटे-छोटे कर्मों से इस दुनिया को बेहतर बना रहे हैं। जी हाँ! आज भी कई लोग मुनाफे और स्वार्थ की अंधी दौड़ को छोड़ इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए बिना दिखावे और अपेक्षा के सच्ची सेवा में लगे रहते हैं। आइए, इस बात को हम सच्ची घटना पर आधारित एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।
कुछ माह पहले एक युवा फल की दुकान पर गया और दुकानदार से फलों के दाम पूछने लगा। उसके प्रश्न का जवाब देते हुए दुकानदार ने बताया कि केले 20 रुपये दर्जन और सेब 100 रुपये किलो हैं। अभी उनका मोल भाव ही चल रहा था कि एक गरीब-सी महिला दुकान पर आई और बोली, “भैया, एक किलो सेब और एक दर्जन केले चाहिए, क्या भाव लगाओगे?” मुस्कुराते हुए दुकानदार बोला, “केले 5 रुपये दर्जन और सेब 25 रुपये किलो।” भाव सुनते ही एक ओर उस महिला के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, वहीं दूसरी ओर वह युवा आश्चर्य के साथ दुकानदार को देखने लगा।
दुकानदार उस युवा का भाव समझ गया और उसे चुप रहने का इशारा करने लगा। तभी उस महिला ने दुकानदार से जल्दी-जल्दी कुछ फल खरीदे और जाते समय भगवान को धन्यवाद देते हुए कहने लगी कि आज उसके बच्चों को फल खाने को मिलेंगे। इस दृश्य को देखकर पहले से मौजूद युवा हैरान रह गया। हालांकि उसे अभी भी दुकानदार की नीयत पर शक था, पर उसने उस क्षण कुछ कहा नहीं।
महिला के जाने के बाद दुकानदार ने उस युवा को दिल को छू लेने वाली बात बताते हुए कहा, “भैया! वह महिला एक विधवा है, और वह चार अनाथ बच्चों के साथ रहती हैं। अत्यंत ग़रीब होने के बाद भी वह कभी किसी से मदद नहीं लेती। मैंने भी कई बार उसे सहायता देने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह मना कर देती। इस स्थिति को देख मैने एक तरकीब निकाली और उसे बेहद सस्ते दामों पर फल देने लगा, ताकि उसे लगे कि उसने खुद अपने पैसे से सामान खरीदा है।”
कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद फल विक्रेता अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, “मैं उसका आत्मसम्मान नहीं तोड़ना चाहता। जब भी वह आती है, मेरे लिए वह दिन खास हो जाता है। उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और मुझे लगता है जैसे ईश्वर खुद मेरी दुकान पर आशीर्वाद देने आए हैं।” यह सुनकर उस युवा ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए। उसने दुकानदार को गले लगाया और बिना कोई शिकायत किए अपने पैसे देकर दुकान से चला गया।
दोस्तों, अब आप समझ ही गए होंगे कि मैंने पहले यह क्यों कहा था कि ‘कुछ लोग हमेशा इस दुनिया को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं।’ लेकिन कुछ लोगों की सोच इसके ठीक विपरीत होती है, वे सोचते हैं कि मदद करने का मतलब है सामने वाले को कुछ देकर एहसान जताना। लेकिन इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि “सच्ची मदद वही है जो सामने वाले के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाए।” तो आइए दोस्तों, आज से हम कुछ इस तरह मदद करने का प्रयास करते हैं कि मदद पाने वाले को यह महसूस हो कि उसने वह सब खुदकी याने अपनी मेहनत से पाया है। ऐसा करके हम न केवल किसी की भूख मिटाते हैं, बल्कि उसके आत्मबल को भी जीवित रखते हैं। वैसे भी दोस्तों, अगर आप खुशी बांटना चाहो, तो तरीके अपने आप ही मिल जाते है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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