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मूल्यवान वही जो समय पर काम आए…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Feb 1, 2024
  • 3 min read

Feb 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, रोज़ खर्च होती ज़िंदगी में विशेष अवसरों या परिस्थितियों के लिए पेट काट कर बचत करना एक ऐसी आदत है, जो सामान्यतः भविष्य को सुखद और ख़ुशियों से भरा बनाने के लिए हमारे आज के सुख और ख़ुशी की क़ुर्बानी ले लेती है। इतना ही नहीं मेरा व्यक्तिगत अनुभव तो यह कहता है कि सुख और ख़ुशी को टालने की यह आदत सामान्यतः आपको हमेशा के लिए उससे दूर कर देती है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पहले की है, गाँव में रहने वाला खेतिहर मज़दूर भोला सामान्यतः अपनी वस्तुओं का उपयोग बड़ी कंजूसी से किया करता था। एक बार उसके मन में चाँदी का पात्र ख़रीदने का विचार आया। विचार आते ही उसने अपना पेट काटकर बचत करना शुरू कर दिया और अगले कुछ माह में ही वह बड़ा सुंदर सा चाँदी का पात्र बाज़ार से ले आया।


खेतिहर मज़दूर के लिए यह उपलब्धि साधारण नहीं थी। इसलिए भोला ने अपनी सबसे बहुमूल्य वस्तु को संदूक में सम्भाल कर रखने का निर्णय यह सोच कर लिया कि वह सही अवसर आने पर ही उसका उपयोग करेगा। एक बार ख़ुद के जन्मदिन पर भोला के मन में उस पात्र में खाना खाने के विचार आया लेकिन उसने यह सोचते हुए अपने निर्णय को टाल दिया कि इस पात्र का उपयोग वह किसी विशेष उद्देश्य के लिए करेगा।


एक दिन भोला के यहाँ एक संत पधारे। जब परिवार के सदस्यों द्वारा उन्हें भोजन परोसा जाने लगा, तो एक क्षण के लिये भोला के मन में विचार आया कि क्यों ना संत को चाँदी के पात्र में भोजन परोसा जाए? किंतु अगले ही क्षण उसने सोचा कि मेरा चाँदी का पात्र बहुत कीमती है। गाँव-गाँव भटकने वाले इस संत के लिए उसे क्या निकालना? जब कोई राजसी व्यक्ति मेरे घर पधारेगा, तब यह पात्र निकालूंगा। यह सोचकर उसने पात्र नहीं निकाला।


कुछ दिनों बाद संयोग से राजा के मंत्री उसके घर भोजन के लिए पधारे। उन्हें देखते ही एक बार फिर भोला, जो अब तक बूढ़ा हो चुका था, के मन में विचार आया कि आज चाँदी का बर्तन निकाल लेना चाहिए। किंतु अगले ही पल उसके मन में विचार आया कि यह कोई राजा तो है नहीं; जिसके लिये मैं इतनी टेंशन मोल लूँ। जब राजा आएगा तब इस विषय में सोचूँगा। विचार आते ही उसने एक बार फिर चाँदी का बर्तन निकालने का विचार त्याग दिया।


ईश्वर शायद भोला की बातों को सुनने या उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए तैयार ही बैठे थे। उन्होंने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि एक दिन राजा स्वयं बूढ़े भोला के यहाँ खाना खाने के लिए पहुँच गया। राजा को देखते ही एक बार फिर भोला के मन में विचार आया कि चाँदी के बर्तन को निकालने के लिए इससे अच्छा मौक़ा हो ही नहीं सकता है। वह तुरंत अपने कमरे में गया और राजा को खाना खिलाने के लिए चाँदी का बर्तन निकालने लगा। लेकिन उसी वक़्त उसे याद आया राजा कुछ समय पूर्व पड़ोसी राज्य से युद्ध हार गया था और इसी कारण उनके राज्य के एक हिस्से पर पड़ोसी राजा ने क़ब्ज़ा कर लिया था। घटना याद आते ही बूढ़े भोला ने सोचा कि चाँदी के इस बहुमूल्य पात्र में तो किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन करना चाहिए। इसलिए भोला बिना पात्र निकाले वापस आ गया।


एक दिन अचानक ही बूढ़े भोला की मृत्यु हो गई और उसका क़ीमती चाँदी का पात्र बिना उपयोग के यूँही ही पड़ा रह गया। कई दिनों बाद एक दिन भोला के बेटे को सफ़ाई के दौरान वह पात्र मिला। उसने तुरंत वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया और उससे पूछा कि इसका क्या किया जाये? पत्नी ने काले पड़ चुके उस पात्र को देखते ही पहले तो मुँह बनाया, फिर बोली, ‘अरे कितना गंदा पात्र है। इसका हम क्या करेंगे? एक काम करो, इसका उपयोग कुत्ते को भोजन देने के लिए करने लगो।’ उसी दिन से वह पात्र अब कुत्ते को भोजन देने के लिए काम में आने लगा।


सोच कर देखिए दोस्तों, एक इंसान ने जिस पात्र को बहुमूल्य मान कर जीवन भर सम्भाला, वह पात्र अंत में किस काम आया। किसी भी वस्तु का मूल्य तभी तक है, जब तक वह उपयोग में लाई जा सके। अक्सर दोस्तों, लोग अपना जीवन उन चीजों को इकट्ठा करने में बर्बाद कर देते हैं जिसका उपयोग वे जीवन भर नहीं कर पाते हैं। याद रखियेगा, बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं है। इसलिए यदि आपके पास कोई वस्तु है, तो यथा समय उसका उपयोग कर लें, फिर चाहे वह समय हो, या सेहत अथवा दौलत।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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