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मेरे साथ ही क्यों?

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Oct 29, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, मेरी नजर में आप खुशहाल ज़िंदगी जी रहे हैं या उसे श्राप मान हर पल मरते-मरते जी रहे हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जीवन में घटने वाली घटनाओं को आप किस तरह देखते हैं और जीवन में मिले अच्छे या बुरे अनुभवों में से किसे ज़्यादा तवज्जो देते हैं। जी हाँ दोस्तों, इस दुनिया में दो तरह के लोग रहते हैं, पहले वो, जो चंद चुनौतियों या नकारात्मक अनुभवों की वजह से पूरी ज़िंदगी को दोष देते हुए अपने बचे हुए जीवन को जीते हैं और दूसरे वे, जो ज़िंदगी में मिले चंद नकारात्मक अनुभवों और चुनौतियों को नजरअंदाज कर, जीवन से मिले अच्छे अनुभवों को याद कर, हर पल ईश्वर के प्रति आभारी रहते हुए अपने जीवन को जीते हैं। स्वीकारोक्ति के भाव के साथ आभारी रहते हुए जीवन जीना ही इन लोगों को आशा के विपरीत मिले अनुभवों को बड़े आराम से स्वीकार कर जीवन जीने की शक्ति देता है। अपनी बात को मैं आपको महान विंबलडन खिलाड़ी आर्थर ऐश के जीवन से जुड़ी एक घटना से समझाता हूँ।


वर्ष १९८३ में हृदय की शल्य क्रिया के दौरान चढ़ाये गए रक्त की वजह से इस महान खिलाड़ी को एड्स हो गया था। जब यह बात उनके प्रशंसकों को पता चली तो उन्होंने अपने इस चहेते खिलाड़ी को संवेदना से भरे ढेरों पत्र लिखना शुरू कर दिए। एक बार इन्हीं में से एक पत्र में एक प्रशंसक ने लिखा था, ‘भगवान ने आपको ही क्यों इतनी बुरी बीमारी के लिए चुना?’ पत्र पढ़ते ही ऐश मुस्कुराने लगे और फिर अपने प्रशंसक को जवाब देने के लिए पत्र लिखने लगे। इस पत्र में आर्थर ऐश ने लिखा, ‘पूरी दुनिया में 50 मिलियन बच्चों ने टेनिस खेलना शुरू किया, इनमें से 5 मिलियन बच्चे टेनिस सीखे और खेले। इन 5 मिलियन बच्चों में से 5 लाख खिलाड़ी प्रोफेशनल टेनिस सीखें और इनमें से मात्र 50 हज़ार खिलाड़ी सर्किट में आए। इन 50 हज़ार खिलाड़ियों में से 5 हज़ार खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम तक पहुँचें और इनमें से मात्र 50 खिलाड़ी विंबलडन तक और इनमें से 4 सेमीफ़ाइनल तक पहुँचें और 2 खिलाड़ी फ़ाइनल तक पहुँचें। इन 2 खिलाड़ियों में से एक मैं था, जिसे अंत में विजेता के कप को अपने हाथ में पकड़ने का मौक़ा मिला। उस वक्त या उस पल मैंने भगवान से नहीं पूछा था कि यह मौक़ा ‘मुझे ही क्यों’ मिला। इसलिए आज जब मैं दर्द में हूँ तब मैं भगवान से कैसे पूछ सकता हूँ, ‘मुझे ही क्यों चुना आपने?’


बात तो दोस्तों, आर्थर ऐश की बड़ी गहरी थी। इस जीवन में मिलने वाला हर अनुभव फिर चाहे वो हमारे अनुसार अच्छा हो या बुरा; असल में हमें बेहतर इंसान बनाने के लिए ही होता है क्योंकि अगर ऐसा ना होता तो ईश्वर उस अनुभव को हमें देते ही नहीं। उदाहरण के लिए खुशी, आपको अपने जीवन के प्रति संतुष्टि का भाव देती है, तो विपरीत परिस्थितियाँ या चुनौतियाँ आपको मजबूत बनाती है। इसी तरह दुख आपको संवेदनशील बनाकर बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। इसी तरह असफलता आपको विनम्र बनाती है, तो सफलता आपको दुनिया में चमकने का मौक़ा देती है और अगर इनके साथ सिर्फ़ विश्वास जुड़ जाये, तो आपको जीवन में खुश, शांत और मस्त रहते हुए आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है।


इसके विपरीत अक्सर देखने में आता है कि लोग उपरोक्त भावों से जीवन को स्वीकार नहीं पाते हैं और अपने जीवन को असंतोष के साथ जीते हैं। असल में उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं होता है कि इस दुनिया में बहुत सारे लोग उनके जैसी ज़िंदगी जीने का सपना देख रहे हैं। उदाहरण के लिए खेत में काम करने वाला बच्चा ऊपर उड़ते विमान को देखकर उड़ने का सपना देखता है, जबकि पायलट फार्महाउस देखकर घर लौटने का सपना देखता है। सही मायने में यही ज़िंदगी है…


इसलिए दोस्तों, हर पल अपना जीवन एन्जॉय करें और ऐसा करते वक्त याद रखें कि अगर दौलत ही खुशियों का पैमाना होती, तो अमीर हमेशा सड़कों पर ख़ुशी के मारे नाचते दिखते। लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है, यह मजे तो सिर्फ और सिर्फ़ संतोषी लोग ही कर पाते हैं। इसी तरह सत्ता सुरक्षा सुनिश्चित करती, तो वीआईपी बिना सुरक्षा के ही घूमते। याद रखियेगा दोस्तों, जो सादगी से जीते हैं, वे चैन की नींद सोते हैं। इसलिए दोस्तों, सादगी से जिएँ, खुश रहें व विनम्रता से चलें और सच्चा प्यार करते हुए स्वीकारोक्ति के भाव के साथ जीवन में आगे बढ़ें, तभी आप जीवन को बेहतर बना पायेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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