June 24, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक क़िस्से से करते हैं। बात कुछ माह पूर्व की है, एक युवा ने अपने वृद्ध पिता के जन्मदिन को उनके साथ होटल में मनाने का निर्णय लिया और उन्हें शहर के सबसे बड़े, 5 स्टार होटल के रेस्टोरेंट में ले गया। वहाँ पहुँचने पर उसने बड़े सलीक़े से पिता को हाथ पकड़कर कुर्सी पर बैठाया, पानी पिलाया और फिर उन्हें चश्मा पहनाकर, हाथ में मीनू पकड़ा दिया। पिता ने काफ़ी देर तक मीनू देखा फिर उसमें से कुछ चीजों को चुनकर बेटे की मदद से ऑर्डर कर दिया। कुछ देर बाद जब वेटर ने खाना सर्व कर दिया तो पिता पुत्र दोनों ने बड़े ही मज़े के साथ हंसते, बात करते खाना शुरू कर दिया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया, जिसे देख रेस्टोरेंट में खाना खा रहे कुछ लोग वृद्ध सज्जन को घृणा की नज़रों से देखने लगे। कुछ लोग तो वहाँ उनके बारे में चर्चा भी कर रहे थे। लेकिन इस सब के बाद भी वृद्ध का बेटा एकदम शांत बैठा था और उनसे हंसी-मजाक कर रहा था।
खाना पूर्ण होने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, अपने वृद्ध पिता को वॉशरूम ले गया और उनके कपड़े और चेहरे को साफ़ करने लगा। इसके बाद उस युवा ने पिता के बालों में कंघी करी, फिर उनका चश्मा साफ़ किया और उन्हें पहनाया और अंत में उनका हाथ पकड़ कर बाहर ले आया। इसके पश्चात उस युवा ने खाने का बिल पे किया; वेटर को धन्यवाद दिया और वृद्ध पिता का हाथ पकड़ बाहर जाने लगा। बाहर जाते वक्त वृद्ध पिता के चेहरे पर पूर्ण संतोष का भाव था।
पिता-पुत्र अभी कुछ कदम ही चले थे कि रेस्टोरेंट में खाना खा रहे एक वृद्ध ने उन्हें आवाज़ दी और कहा, ‘सुनो बेटा! तुम्हें नहीं लगता क्या कि तुम यहाँ कुछ छोड़े जा रहे हो?’ बेटा उन वृद्ध की बात सुन चौंक गया और अपना सभी सामान एक बार फिर चेक करते हुए बोला, ‘नहीं सर, मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ भी छोड़ कर जा रहा हूँ। इस पर वो वृद्ध सज्जन मुस्कुराते हुए बोले, ‘नहीं बेटा तुम यहाँ वाक़ई एक बहुत बड़ी चीज छोड़ कर जा रहे हो। तुम्हारा व्यवहार प्रत्येक पुत्र के लिये एक शिक्षा या सबक़ था और हर पिता के लिए उम्मीद या आशा।’
बात तो दोस्तों, दूसरे वृद्ध की सौ प्रतिशत सटीक थी। आज के समाज में सामान्यतः देखा जाता है कि ज़्यादातर लोग अपने वृद्ध माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते हैं। वे उनसे कहते हैं कि ‘आप बाहर जाकर क्या करोगे? चला तो जाता नहीं है आपसे और ना ही आप ठीक से खा पाते हैं। आपका घर पर रहना ही उचित है। यही सबके लिए अच्छा रहेगा। ऐसे लोगों से मैं सिर्फ़ एक ही बात कहना चाहूँगा, क्या आप भूल गए कि बचपन में आपके माता-पिता ने आपको ऐसे ही गोद में उठाकर सम्भाला है। आप जब ठीक से खा नहीं पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाया करती थी और जब आप वह खाना गिराया करते थे तो वह आपको डाँटती नहीं थी, बल्कि आप पर प्यार लुटाया करती थी। जब बुढ़ापे में आपके माँ-बाप अच्छे से अपने कार्य नहीं कर पा रहे हैं तो वे आपको बोझ क्यों लग रहे हैं?
दोस्तों, अगर आपको मेरी बात किताबी या दक़ियानूसी या फिर प्रवचन वाली लग रही हो, तो बस एक बात ख़ुद को याद दिला लेना, प्रकृति कभी किसी का उधार नहीं रखती, वह तो ‘जैसे को तैसा’, के सूत्र पर सीधे-सीधे कार्य करती है। अर्थात् आप इसे जैसा देंगे, यह ठीक वैसा ही आपको लौटा देगी। कई बार तो कई गुना बढ़ा कर। इसलिए मेरा मानना है कि हमेशा इसे वही देने का प्रयास करें जो आप इससे चाहते हैं। अगर आप माँ-बाप को बोझ मानेंगे तो याद रखना प्रकृति आपको यही सब उस वक़्त लौटाएगी जब आप वृद्ध होंगे। उस दिन बच्चों से सेवा की उम्मीद रखना, आपको हताशा और निराशा देगा। इसलिए दोस्तों हर पल याद रखो, माँ बाप भगवान का रूप होते है, उनकी सेवा करना और उनसे प्यार करना ना सिर्फ़ उनका बल्कि हमारा जीवन भी बेहतर बनाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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