रखें ध्यान उनका जिनकी वजह से आप हैं…
- Nirmal Bhatnagar
- Mar 29
- 3 min read
Mar 29, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आजकल समाज में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जहाँ ‘मैं’, ‘हम’ से ज़्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण होता जा रहा है, जो कहीं ना कहीं पारिवारिक ढांचे को नुक़सान पहुँचा रहा है। इस बात का एहसास मुझे हाल ही की भोपाल यात्रा के दौरान उस वक्त हुआ, जब मैं किसी सज्जन से मिलने के लिए गया। जहाँ मेरा स्वागत लगभग चिल्लाती हुई आवाज ने किया, ‘पापा, क्या आपको इतनी सी बात समझ नहीं आती? अगर आप इसमें बदलाव नहीं कर सकते तो कृपा करके हमें अकेला छोड़ दो। ख़ुद भी शान्ति से रहो और हमें भी शांति से रहने दो।’
उक्त शब्द सुन मेरे पाँव ठिठक कर रह गए और मैं यादों में खो गया कि इन सज्जन ने दिन रात काम करके, अपने सपनों को मारके और समझौता कर ज़िंदगी जी कर किस तरह अपने बच्चे को काबिल बनाया था और समय-समय पर उसकी ज़िदों को पूरा किया था। वैसे एक पिता और करेगा भी क्या? वह तो अपने बच्चों के लिए जीवनभर मेहनत ही कर सकता है। अर्थात् वह रात-दिन खेतों में हल चला सकता है, मजदूरी या नौकरी कर सकता है। और हाँ, वह यह सब सिर्फ अपने लिए नहीं करता, बल्कि अपने परिवार की खुशियों के लिए करता है।
जी हाँ दोस्तों, पिता बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। वह उनकी शिक्षा, भोजन, कपड़े और स्वास्थ्य का ध्यान रखता है। यहां तक कि वह अपनी इच्छाओं को भी त्याग देता है, ताकि उसके बच्चे अच्छी जिंदगी जी सकें। लेकिन दुख तब होता है जब वही बच्चे बड़े होकर अपने पिता के बलिदान को भूल जाते हैं। मेरी नजर में यह कृतघ्नता का सबसे बड़ा उदाहरण है। माता-पिता, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए जीवनभर त्याग किया, उन्हें अकेलेपन और असहायता में छोड़ देना, मानवता के विरुद्ध है। इसकी मुख्य वजह बच्चों को परिवार और साथ का महत्व ना समझा पाना और साथ ही स्व-हित आधारित जीवन जीना सिखाना है। जिसकी वजह से बच्चे केवल अपने फायदे के बारे में सोचते हैं और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर देते हैं। अर्थात् अपने स्वार्थ के कारण परिवार से अलग हो जाते हैं और इसे अपनी समझदारी मानते हैं। सोच कर देखियेगा, ऐसा करना क्या वाकई समझदारी है? मेरी नजर में तो नहीं! आज कहीं ना कहीं स्वार्थ आधारित यही सोच परिवार का ताना-बाना तोड़ रही है।
दोस्तों, कहीं ना कहीं हम उन्हें यह बताना भूल गए हैं कि परिवार समाज की सबसे छोटी लेकिन सबसे मजबूत इकाई है। यह भावनाओं, संबंधों और जिम्मेदारियों का एक ताना-बाना होता है। जब परिवार के सदस्यों के बीच स्वार्थ बढ़ जाता है और वे अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, तो परिवार बिखरने लगता है।
अगर आप अपने बच्चों को इस विनाशकारी सोच से बचाना चाहते हैं तो उन्हें बचपन से समझाइए कि एक परिवार को जोड़कर रखने के लिए निस्वार्थ प्रेम और जिम्मेदारी की भावना आवश्यक है। इस दुनिया में स्वार्थी व्यक्ति कभी भी सही मायने में खुश नहीं रह सकता। जो लोग अपने स्वार्थ के कारण परिवार में फूट डालते हैं, वे कभी भी सफलता और सुख को पूरी तरह से महसूस नहीं कर पाते। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने माता-पिता का सम्मान करें और उनकी देखभाल करें। माता-पिता का आशीर्वाद ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है। जब वे बुजुर्ग हो जाते हैं, तब उन्हें हमारे प्यार और सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। एक अच्छा इंसान वही है जो अपने माता-पिता की सेवा करता है और उनके जीवन के अंतिम समय तक उनका साथ निभाता है। यह न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कार भी हमें यही सिखाते हैं।
अंत में निष्कर्ष के रूप में इतना ही कहना चाहूँगा कि परिवार में प्रेम, त्याग और कर्तव्य की भावना बनाए रखना ही सच्ची समझदारी है। स्वार्थ छोड़कर अगर हम मिलजुलकर रहें, तो जीवन में सच्ची खुशी और शांति का अनुभव कर सकते हैं। माता-पिता के प्रति कृतज्ञता और सम्मान रखना हमारी पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। याद रखिएगा, माता-पिता की सेवा करके ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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