May 12, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए, दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, गाँव में रहने वाला सुरेश बात-बात में अपने पड़ोसी महेश को चोर कहा करता था। बीतते समय के साथ यह अफ़वाह दूर-दूर तक फैल गई और लोग महेश से कट-कट कर रहने लगे और लोगों ने उसपर विश्वास करना बंद कर दिया। हालाँकि इन सब बातों का महेश पर कोई असर नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह अपने क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी था और उसका काम अच्छा चल रहा था।
कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। एक बार उस गाँव में चोरी हुई और लोगों ने महेश को उसकी नकारात्मक छवि के कारण चोर मानना शुरू कर दिया। चूँकि ज़्यादातर लोग महेश को ग़लत मानते थे इसलिए शक के आधार पर उसे गिरफ़्तार कर लिया गया और इस वजह से उसका अच्छा ख़ासा चलता व्यवसाय और खुशहाल पारिवारिक ज़िंदगी, दोनों पूरी तरह बर्बाद हो गए। लेकिन जब गहराई से इस विषय में जाँच-पड़ताल हुई तो महेश निर्दोष साबित हुआ और उसे स-सम्मान रिहा कर दिया गया।
दोस्तों, हम सभी ऐसी स्थितियों से जीवन में कभी ना कभी दो-चार होते हैं। कभी हम सुरेश की भूमिका में होते हैं, तो कभी महेश की। मेरी नज़र में किसी की भी इज्जत या सम्मान को हवा में उछालना याने उसे उन कार्यों के लिए बदनाम करना, जो उसने कभी किया ही नहीं है, एक बड़ा गंभीर अपराध है। जिसे हम सामान्य तौर पर हमेशा नज़रंदाज़ करते हुए, कभी मज़े में तो कभी मज़े लेते हुए अपना जीवन जीते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारे मज़े का मूल्य एक निरपराध, सामान्य इंसान चुका रहा है। जो कई बार इतना ज़्यादा होता है कि उसका कैरियर, उसका पारिवारिक या सामाजिक जीवन सब कुछ तबाह हो जाता है।
दोस्तों, वाक़ई में इस छोटे और सामान्य से लगने वाले काम के दुष्परिणाम इतने गम्भीर हो सकते हैं। मैं स्वयं अपने जीवन में एक बार इसका शिकार हुआ हूँ। यह बात बिल्कुल सही है कि नकारात्मकता, सकारात्मकता के मुक़ाबले बहुत धीमी गति से फैलती है। यानी अच्छाई और सकारात्मक बातें जल्दी, ज़्यादा दूर तक जाती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि नकारात्मक बातों का प्रभाव शून्य होता है। चलिए इसे हम महेश और सुरेश के उपरोक्त किस्से से ही समझते हैं-
निर्दोष साबित होने और जेल से छूटने के बाद महेश ने पूरी स्थिति पर गम्भीर चिंतन किया और चुप ना बैठने का निर्णय लेते हुए सुरेश पर मानहानि और ग़लत आरोप लगाने का मुक़दमा पंचायत में दायर कर दिया। शुरू में उसके इस निर्णय को लेकर लोग तरह-तरह की बातें करते रहे लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब सुरेश को पंचायत के सामने पेश होना पड़ा। पंचायत में अपना पक्ष रखते हुए सुरेश बोला, ‘मेरा इरादा किसी भी तरह से महेश को नुक़सान पहुँचाने का नहीं था। मैंने जो कुछ कहा था, वह मात्र एक टिप्पणी थी, उससे अधिक कुछ नहीं।’ सुरेश की बात सुन सरपंच, जो कि स्वयं बहुत समझदार और ज्ञानी थे, ने एक काग़ज़ सुरेश को देते हुए कहा, ‘यह रद्दी है आप इसके टुकड़े कर बाहर फेंक दीजिएगा और कल इस केस का फ़ैसला सुनने आ जाइएगा। सुरेश ने ठीक वैसा ही करा और अगले दिन फ़ैसला सुनने के लिए पंचायत पहुँच गया।
अगले दिन सरपंच ने कार्यवाही शुरू करते से ही सुरेश को निर्देश दिया कि वह कल बाहर फेंके गए काग़ज़ के सभी टुकड़ों को समेट या इकट्ठा कर वापस ले आए। सरपंच की बात सुनते ही सुरेश के माथे पर चिंता की लकीरें छा गई और वह बोला, ‘यह तो असम्भव होगा क्योंकि हवा के झोंके उस काग़ज़ को पता नहीं कहाँ-कहाँ उड़ा कर ले गए होंगे। मैं उन्हें खोजने के लिए कहाँ-कहाँ जाऊँ?’ महेश का जवाब सुनते ही सरपंच एकदम गम्भीर हो गए और बोले, ‘ठीक इसी तरह तुमने एक सरल सी टिप्पणी के रूप में कही गई बात से महेश के पूरे मान-सम्मान को तार-तार कर दिया है। आज पूरा समाज उसे शक की नज़रों से देखता है। जिस तरह फैले हुए काग़ज़ के टुकड़ों को समेटना सम्भव नहीं है ठीक उसी तरह, किसी भी दशा में खोए हुए सम्मान को पूरी तरह प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
इसलिए ही तो कहा गया है दोस्तों, ‘किसी के बारे में कुछ अच्छा नहीं कह सकते, तो चुप रहें।’ याद रखिएगा, शब्दों के ग़ुलाम या दास बनने से बचने के लिए हमें वाणी पर अपना नियंत्रण रखना सीखना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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