Jan 5, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इंसान अगर कुछ ठान ले तो इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे पाया ना जा सके। लेकिन अपनी असीमित क्षमताओं और मौजूद असीम शक्तियों का भान ना होना उसे अपने सपनों, अपनी मंज़िल को पाने से रोक देता है। वैसे इसकी एक और महत्वपूर्ण वजह अपने खुद के अंदर आग की कमी होना भी हो सकती है अर्थात् किसी भी लक्ष्य जैसे पद, पैसा, प्रतिष्ठा आदि क्यों पाया जाए, इसके कारण का भान ना होना है। स्थिति की भयावहता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इंसान अपने पूरे जीवन में ईश्वर प्रदत्त शक्तियों या क्षमताओं का मात्र 7% से 10% ही उपयोग कर पाता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ ज़्यादातर लोग अपने पूरे जीवन में अपनी क्षमता, शक्ति या ऊर्जा का 90 प्रतिशत कभी उपयोग ही नहीं कर पाते हैं और इसीलिए आत्मविश्वास की कमी का शिकार हो जाते हैं।
इसी वजह से ज़्यादातर लोग परेशानी या विपरीत परिस्थिति के दौर में अपनी समस्याओं का हल बाहर ढूँढते हैं और चाहते हैं कि लोग हमसे सहानुभूति रखें। लेकिन इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी असीमित क्षमताओं अर्थात् अपने अंदर मौजूद अथाह ऊर्जा और शक्ति का एहसास होता है और वे इसी वजह से तमाम विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों और परेशानियों के बावजूद भी ज़िम्मेदारी पूर्ण जीवन जी पाते हैं। हो सकता है सुनने में आपको मेरी बात अतिशयोक्ति पूर्ण लगे लेकिन मेरा दावा है आज जब आप कटनी रेलवे स्टेशन पर बिल्ला नम्बर 36 वाले कुली की कहानी सुनेंगे तो निश्चित तौर पर दाँतो तले उँगलियाँ दबा लेंगे।
आप सोच रहे होंगे कि कटनी की बिल्ला नम्बर 36 वाले कुली की कहानी में ऐसा ख़ास क्या है तो मैं आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूँ कि कुली नम्बर 36 असल में सुश्री संध्या मारावी नामक महिला हैं। जी हाँ, सही पढ़ा आपने सुश्री संध्या मारावी महिला होने के बाद भी कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का कार्य कर रही है। पति, सास और तीन बच्चों के साथ मध्यप्रदेश के शहर कटनी में रह रही संध्या के जीवन में 2015 तक तो सब कुछ सामान्य चल रहा था। लेकिन पति की गम्भीर बीमारी के विषय में पता चलते ही जीवन ने करवट लेना शुरू कर दिया। परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ इस तरह की थी कि संध्या के पति को बीमारी के बाद भी मज़दूरी कर घर की व्यवस्था सम्भालना पड़ती थी।
22 अक्टूबर 2016 को संध्या के पति बीमारी की वजह से इस दुनिया में नहीं रहे और अब संध्या के ऊपर बच्चों की परवरिश व घर की ज़िम्मेदारी आ गई। अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाने की इच्छा के साथ संध्या कटनी से जबलपुर शिफ़्ट हो गई। शुरू में उन्होंने छोटे-मोटे कार्य करके घर चलाने अर्थात् अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का प्रयास किया। लेकिन समस्या इतनी ज़्यादा थी कि संध्या के लिए घर सम्भाल पाना आसान नहीं था। इसी दौरान किसी ने संध्या को बताया कि कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली की आवश्यकता है, संध्या ने तुरंत वहाँ अप्लाई कर दिया।
कुछ ही दिनों बाद संध्या कटनी रेलवे स्टेशन पर बिल्ला नम्बर 36 के साथ 45 पुरुष कुलियों के साथ काम करने लगी। इस कार्य के लिए संध्या को रोज़ जबलपुर से कटनी 45 किलोमीटर की यात्रा करना पड़ती है। अर्थात् अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए वे प्रतिदिन 90 किलोमीटर सफ़र करती हैं। इस दौरान उनकी सास तीनों बच्चों की देखभाल करती हैं।
संध्या से जब इस विषय में पूछा गया तो उनका कहना था, ‘मेरे सामने जो कार्य आया, मैंने उसे किया। ईश्वर ने मेरा हमसफ़र छीन लिया था। इस घटना ने सिर्फ़ मेरे सपने तोड़े थे, हौंसला नहीं। मैं अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर फ़ौज में अफ़सर बनाऊँगी और इसके लिए कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊँगी। अब मैं कुली नम्बर 36 हूँ, मेहनत करती हूँ और इज्जत का खाती हूँ।’
बात तो एकदम सही कही संध्या ने। अपनी आँखों को ढककर सबसे अंधेरे की शिकायत करने से बेहतर है, आँखें खोलकर रोशनी करना। अर्थात् फूटी क़िस्मत को रोने से बेहतर है अपनी क़िस्मत बनाना। संध्या के जज़्बे, मेहनत और हौंसले को सलाम करते हुए मैं इतना ही कहूँगा, ‘है अगर खुद पर विश्वास और हिम्मत, तो आसमाँ में भी सुराख़ किया जा सकता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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