June 12, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इस दुनिया में ज़्यादातर लोग कुछ क्षेत्र में उल्टा कार्य करते हैं। जैसे वे रिश्तों का उपयोग करते है और चीजों से प्यार। जबकि होना बिल्कुल इसका उल्टा चाहिए याने रिश्ते प्यार करने के लिए होते हैं और चीजें उपयोग करने के लिए। मेरा मानना है कि चीजों या वस्तुओं को रिश्तों से ज़्यादा महत्व देना कहीं ना कहीं रिश्तों में दूरी पैदा कर देता है। ऐसा ही एक अनुभव मुझे हाल ही में एक काउंसलिंग के दौरान देखने को मिला। एक सज्जन अपनी पुरानी चीजों को लेकर इतने ज़्यादा पॉसेसिव थे कि उन्होंने एक पुराना पेन गुम हो जाने पर अपनी बेटी से एक माह तक बात नहीं करी।
जब मैंने उनसे इस विषय में चर्चा करी तो वे बोले, ‘सर, उसे उसकी गलती की सजा मिलना चाहिए; उसे इस बात का एहसास होना चाहिये कि उसने कितना नुक़सान करा है।’ उन सज्जन को इस बात का एहसास ही नहीं था कि उनके इस व्यवहार का उनकी बेटी पर कितना गहरा असर पड़ रहा है और आने वाले समय में इसके परिणाम कहीं ना कहीं उनके भविष्य को भी प्रभावित करेंगे।
स्थिति की गंभीरता को देख मैंने बातों ही बातों में उन्हें एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी। बात कई साल पुरानी है। एक बार एक राजा को विदेश यात्रा के दौरान उनके एक परिचित ने तीन काँच की बहुत ही सुंदर मूर्तियाँ उपहार स्वरूप दी। राजा उन्हें बहुत सम्भाल कर अपने राज्य ले आया और उसे एक कमरे में सजाकर रख दिया। इसके बाद राजा ने इन मूर्तियों की देखभाल के लिए एक नौकर को रखा, जिसका काम मूर्तियों की सफ़ाई करना और उन्हें चमका कर रखना था।
एक दिन सफ़ाई के दौरान इस कर्मचारी से एक मूर्ति गिर कर टूट गई। जैसे ही राजा को इस बात का पता चला उनका पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया और उन्होंने ग़ुस्से में आकर उस कर्मचारी को फाँसी पर चढ़ा देने की सजा सुना दी और उसे सिपाहियों से पकड़वाकर जेल में डाल दिया। नौकर बड़ा बुद्धिमान था इसलिए वह रात भर बचने के उपाय खोजने में व्यस्त रहा। अगले दिन जब नौकर को फाँसी पर चढ़ाने के लिए ले ज़ाया जाने लगा तो उसने पूरे शांत भाव के साथ राजा से कहा, ‘महाराज, आपके द्वारा दिया गया दंड सर-आँखों पर। लेकिन क्या आप मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर सकते हैं।’ राजा ने उससे पूछा, ‘बताओ तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?’ सफ़ाई कर्मचारी हाथ जोड़ कर बोला, ‘महाराज! मैं मरने से पहले उन बची हुई काँच की मूर्तियों को हाथ में लेकर जी भर कर देखना चाहता और अंतिम बार उनकी सफ़ाई कर, उन्हें चमकाना चाहता हूँ।’
राजा ने तुरन्त उस कर्मचारी की अंतिम इच्छा पूरी करने का आदेश दिया। सिपाही उस कर्मचारी को मूर्तियों के पास ले गए। कर्मचारी ने उन मूर्तियों को उठाया और जोर से ज़मीन पर दे मारा। काँच की मूर्तियाँ चूर-चूर होकर फ़र्श पर बिखर गई। राजा को जैसे ही इस बात का पता चला वो आपे से बाहर हो गए। उन्होंने नौकर को बुलाकर जब इस विषय में पूछा, तो वो बोला, ‘महाराज! नाराज़ ना हों। इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं थी। मैंने तो ऐसा करके आपकी इज्जत और दो लोगों की जान बचाई है।’ राजा अब आश्चर्य से भरी नज़रों से उसे देख रहे थे। वे कुछ कहते उससे पहले ही नौकर बोला, ‘आप स्वयं सोचिए, मेरी सजा के विषय में जब प्रजा को पता चलता तो वे आपके विषय में क्या सोचते? हो सकता है, वे यह भी कहते कि इतनी छोटी सी गलती के लिये, क्या मृत्यु की सजा देना उचित था? लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब सब मुझे ही दोषी मानेंगे।
दूसरी बात, मेरी मृत्यु के पश्चात आप किसी ना किसी को तो इन मूर्तियों की सफ़ाई के लिए नौकरी पर रखते और उनसे भी किसी ना किसी दिन यह मूर्तियाँ टूटती और फिर आप उनको भी मेरी तरह फाँसी की सजा सुनाते। लेकिन अब वो मूर्तियाँ ही नहीं है, इसलिए जीवन के अंतिम क्षणों में मैंने अपने राजा की इज्जत और दो लोगों की जान बचाने का, पुण्य भरा काम किया है।’ नौकर की समझदारी पूर्ण बातों ने राजा का मन बदल दिया और उन्होंने नौकर को क्षमा कर दिया।
कहानी पूर्ण होते ही मैंने उन सज्जन की ओर देखा और कहा, ‘सर, अब आप राजा की भूमिका में है। अब आपके ऊपर है कि आप रिश्तों को महत्व देकर बच्ची को माफ़ कर देते हैं या फिर राजा की माफ़िक़ एक छोटी सी गलती पर रिश्ते को सूली पर चढ़ा देते हैं।’ मेरी बातों का उनपर क्या असर हुआ दोस्तों मुझे नहीं मालूम। लेकिन यही सूत्र याने 'रिश्ते प्यार करने और चीजें उपयोग करने के लिए होती है!’, को अपने जीवन में अपना कर हम सभी अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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