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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

रिश्तों को मज़बूत बनाना हो तो अहम के वहम को छोड़ें…

Feb 2, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आजकल रिश्तों में असहजता या परेशानी एक सामान्य सी बात हो गई है। पति को पत्नी से, सास को बहु से, भाई को भाई से, अधिकारी को कर्मचारी से, कर्मचारी को अधिकारी से, पड़ोसी को पड़ोसी से समस्या है। कुल मिलाकर कहा जाए तो सभी लोग रिश्तों में असहज हैं। अगर आप गहराई में उतरकर देखेंगे तो पाएँगे कि रिश्तों में समस्या की मुख्य वजह हर स्थिति में खुद को सही मानते हुए दूसरों को परखना या उनसे अपेक्षा रखना है। अपनी बात को मैं कुछ दिन पूर्व घटे एक घटनाक्रम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


कंसलटेंसी के अपने कार्य के दौरान अपने क्लाइंट के साथ मैं उनके कार्यालय में कार्य कर रहा था। कार्य के दौरान मेरे द्वारा कुछ जानकारी माँगने पर उन सज्जन ने सम्बंधित कर्मचारी और उनके मैनेजर को बुलाया और जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए कहा। कुछ देर पश्चात कर्मचारी अपनी समझ के अनुसार आधी-अधूरी जानकारी लेकर आया, जिसे देख संस्था के मैनेजर उनपर काफ़ी नाराज़ हो गए। मैनेजर को शांत कर संस्थान प्रमुख द्वारा एक बार फिर बहुत शांति के साथ उस युवा जूनियर कर्मचारी को कार्य समझाया और फिर से उसे करके लाने के लिए कहा। कर्मचारी द्वारा एक बार फिर अस्पष्ट और अधूरी जानकारी उपलब्ध करवाने पर भी संस्था प्रमुख ने उसे डांटने के स्थान बड़े प्यार से समझाया।


उन्हें ऐसा करते देख मैनेजर, जो अभी तक शांत बैठा था, बड़े बनावटी अन्दाज़ में बोला, ‘सर, ऐसे लोगों को आप किस तरह इतने धैर्य से के साथ सम्भाल लेते हैं।’ संस्था संचालक मैनेजर की बात सुन मुस्कुराए और बोले, ‘एक बात हमेशा याद रखो, इस संस्था में कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति कर्मचारी से पहले एक इंसान है और इंसान को इंसानियत के साथ ही डील किया जाता है।’


बात तो उन सज्जन की एकदम सही थी। कई बार हम लोगों को अपने से पद, प्रतिष्ठा अथवा पैसे में छोटा मान, सही बात को भी ग़लत तरीके से बोलकर करते हैं। ठीक इसी तरह कई बार अहम का वहम रखना, खुद को हमेशा सही मानना, सामने वाले से अपेक्षा रखना भी रिश्तों को नुक़सान पहुँचाता है। उदाहरण के लिए, खाने की थाली में 5 अच्छी डिश होने के बाद भी सामान्यतः लोग जिस 1 डिश में समस्या होती है, उसी की बात करते हैं और इसी वजह से 5 अच्छी चीजों का मज़ा लेने से चूक जाते हैं और साथ ही सामने वाले व्यक्ति के मन में मेहनत करने के बाद भी कड़वाहट पैदा कर देते हैं।

याद रखिएगा दोस्तों, एक ख़राब कार्य, एक ख़राब डिश इंसान को उतना नुक़सान नहीं पहुँचाती है जितना तल्ख़ ज़ुबान, बदज़ुबानी या नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करता है क्योंकि शब्द किसी भी इंसान के जज़्बात को अंदर तक झकझोर देने की क्षमता रखते हैं। वैसे भी यह दुनिया ढेरों नापसंद लोगों और चीजों से भरी है। ऐसे में हर पल अपने अनुरूप अपेक्षा करना वैसे भी सही नहीं है। अगर आप भी अपेक्षा की इस बीमारी से ग्रसित हैं तो मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा कि इस दुनिया में हम सभी के समेत कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जो सभी लोगों की अपेक्षाओं को पूरा कर सके या बिना ग़लतियाँ करे जीवन जी सके। इसलिए हमारे इर्दगिर्द मौजूद लोग भी ग़लतियाँ कर सकते हैं।


दोस्तों, मेरे समान अगर आपका लक्ष्य भी रिश्तों को बेहतर बनाना है तो दूसरों की मामूली ग़लतियों को नज़रंदाज़ करते हुए, उन्हें साथ लेते हुए जिएँ। याद रखिएगा, यह ज़िंदगी इतनी छोटी है कि इसे ग़लतियाँ करते हुए या पछतावे के साथ नहीं जिया जा सकता है। इसलिए अपने अहम के वहम को छोड़ कर जीवन जिएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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