top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

रिश्तों को मज़बूत बनाना हो तो जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकारें…

Mar 5, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

बात कई साल पुरानी है, सुदूर गाँव में रहने वाला रामू बाज़ार में पत्नी के हाथ के बनाए छोले बेच कर अपना जीवन यापन किया करता था। हालाँकि इस व्यवसाय से उसे आमदनी तो बहुत थोड़ी होती थी लेकिन फिर भी वह आराम से खुश रह लिया करता था। एक दिन बाज़ार में एक फ़क़ीर कुछ खोटे सिक्के लेकर आया और उससे अपने लिए भोजन ख़रीदने का असफल प्रयास करने लगा। पूरे भरे बाज़ार में कोई भी उसे खोटे सिक्के के बदले कुछ भी देने को तैयार नहीं था।


अंत में वह फ़क़ीर रामू के पास पहुँचा और खोटे सिक्के देते हुए छोले देने की गुहार करने लगा। रामू ने फ़क़ीर से खोटे सिक्के लेकर अपने गल्ले में डाले और उसे छोले दे दिए। छोले पाकर फ़क़ीर ख़ुशी-ख़ुशी उस वक्त तो वहाँ से चला गया। लेकिन अगले ही दिन वह फिर से कुछ और खोटे सिक्के लेकर वापस छोले ख़रीदने रामू के पास आ गया। रामू ने आज भी उसे पूर्व की ही तरह छोले दे दिए। कुछ दिनों तक फ़क़ीर रोज़ ऐसा ही करता रहा अर्थात् खोटे सिक्के देकर रामू से छोले ख़रीद, खाता रहा।


एक दिन रोज़ की ही तरह रामू सुबह पूजन कर बाज़ार जाने के लिए तैयार हुआ तो उसकी पत्नी ने उससे कहा, ‘आज मैं तुम्हें छोले नहीं दे पाऊँगी क्योंकि बाज़ार में तुम्हारे दिए यह खोटे सिक्के किसी ने नहीं लिए। इसलिए छोले बनाने के लिए आवश्यक किराने का इंतज़ाम नहीं हो पाया।’ रामू, जो उस वक्त अपनी ही धुन में मस्त था, ने ईश्वर को याद करते हुए हवा में हाथ उठाया और बोला, ‘जैसी तेरी इच्छा प्रभु जी। आज आप पता नहीं क्या चाहते हो? तुम्हारी लीला इस साधारण, नासमझ, मूर्ख रामू को कहाँ समझ आने वाली।’


ईश्वर, जो उस वक्त अपने प्रिय भक्त रामू की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे, तुरंत बोले, ‘वत्स खोटे सिक्के लेकर छोले तुमने दिए, भला इसमें मेरी लीला कहाँ से आ गई?’ ईश्वर द्वारा की गई आकाशवाणी सुन रामू तो सातवें आसमान पर था क्योंकि उसे आज ईश्वर के साक्षात होने का आभास हो गया था। वह अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘प्रभु, मैं भी तो खोटे सिक्के समान ही हूँ, मुझमें भी कई कमियाँ हैं। कहीं तुम मुझ खोटे सिक्के को वक्त आने पर अपनी क्षरण में लेने से नकार ना दो, इसीलिए मैंने फ़क़ीर से खोटे सिक्के ले लिए।’


कहानी सुनते-सुनते हो सकता है, आपमें से कुछ के मन में विचार आ रहे हो कि अब मैं ईश्वर द्वारा रामू को खोटा नहीं, खरे सिक्के के रूप में स्वीकारना और उसे कहीं से ढेर सारे पैसे मिलने के विषय में बताऊँगा। साथ ही आप यह भी सोच रहे होगे कि ऐसा सिर्फ़ किस्से और कहानियों में होता है, हक़ीक़त में नहीं। इसलिए ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है…’ में इसका ज़िक्र करने या ऐसी कहानी सुनाने का क्या फ़ायदा? बात तो सही है आपकी साथियों, लेकिन सिर्फ़ तब, जब आप इस कहानी में छिपे जीवन को बेहतर बनाने वाले गूढ़ संदेश को पहचान ना पाएँ।


दोस्तों, खोटे सिक्के को देख सबसे पहले रामू के मन में विचार आया कि खोट तो उसके अंदर भी है। जिस तरह खोट होने पर लोग सिक्के को नहीं स्वीकार रहे, ठीक उसी तरह हो सकता है कि भविष्य में ईश्वर उसे इस भवसागर को तरने के लिए स्वीकारने से मना कर दे अर्थात् दोस्तों, उसने खोट या कमी देखने के बाद उसे अस्वीकारने के स्थान पर खुद में कमियाँ देखी और उन कमियों को पहचानने के बाद अपने कर्मों से उससे तरने का प्रयास किया।


ठीक इसी तरह दोस्तों, जीवन में हमें अपने आस-पास भी ढेरों कमियों के साथ लोग नज़र आएँगे। इन्हीं लोगों में से कुछ आपके दोस्त, तो कुछ आपके रिश्तेदार या करीबी होंगे। इन लोगों को अगर आप उनकी कमियों को नज़रंदाज़ करते हुए स्वीकारते जाएँगे, तो आप उनके दिलों में अपने लिए ख़ास जगह बनाते हुए, मज़बूत रिश्ते बना पाएँगे। याद रखिएगा दोस्तों, अच्छे रिश्तों की बुनियाद कमियों पर नहीं बल्कि क्षमताओं और अच्छाइयों पर आधारित रहती है। दूसरी बात जो हम इस कहानी से सीख सकते हैं वह है कि हमारा काम मानवीय मूल्यों के आधार पर कर्म करना है, उसे ईश्वर के चरणों में अर्पित करना है। उस कर्म का फल देना, आपकी ज़िंदगी की गाड़ी को सकारात्मक दिशा में तेजी से चलाना उस ईश्वर का कार्य है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

2 views0 comments

Comments


bottom of page