Nirmal Bhatnagar
रिश्तों में भी केटी (नॉलेज ट्रांसफ़र) है ज़रूरी…
Sep 13, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ‘क्या सही है के स्थान पर मैं सही हूँ।’ एक ऐसा भाव है जो अच्छे ख़ासे रिश्ते को तबाह कर सकता है। वैसे इस भाव के पीछे मुख्यतः इंसान का मूलतः स्वार्थी होना ज़िम्मेदार है। वैसे स्वार्थी होना क़तई ग़लत नहीं है क्योंकि यह आपको फोकस्ड बनाता है और साथ ही आपको अपने समय का सही उपयोग करना सिखाता है। लेकिन अपने लाभ के विषय में सोचते वक़्त हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि अपने लक्ष्यों या लाभ के विषय में सोचते वक़्त अपनी सीमा का भी ध्यान रखें। अर्थात् आपका लाभ किसी भी हाल में आपके अपनों के लिए हानि का कारण ना बन जाए अर्थात् आपकी सुख प्राप्त करने की चाह दूसरों के दुख की वजह ना बन जाये। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी भाव का होना हमको इंसान बनाता है अन्यथा हम इंसान के वेश में पशु या हैवान भी हो सकते हैं।
लेकिन अक्सर दोस्तों मैंने देखा है कि पारिस्थितिक चुनौतियाँ या किसी बाहरी कारण से प्रभावित सोच अक्सर आपको इस सोच से वंचित कर देती है और आप अनावश्यक रूप से ग़लतियाँ कर जाते हैं। इसे मैं प्रभावी होने की चाह में दूसरों से प्रभावित हो जाना मानता हूँ। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। मेरे एक परिचित द्वारा मुझे हाल ही में अपने कर्मचारियों को ट्रेन करने के लिए आमंत्रित किया गया। ट्रेनिंग के दौरान शेयरिंग राउंड में एक सज्जन खड़े हुए और बोले, ‘माफ़ कीजियेगा सर!, आपकी सभी बातें सही होने के बाद भी किसी काम की नहीं हैं।’ मैंने जब उनसे इसका कारण पूछा तो वे बोले, ‘सर!, अच्छी बातों और अच्छी प्रोसेस के मुक़ाबले पारदर्शिता, अपनापन, स्पष्ट नज़रिया, सुरक्षा की भावना आदि ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं और हमारे यहाँ इन बातों की कमी है।'
इतने बेबाक़ और स्पष्ट फीडबैक ने मुझे हैरान कर दिया। मैंने उस वक़्त तो किसी तरह बात को सम्भाला और बाद में कंपनी प्रमुख से इस विषय में चर्चा करी तो वे बोले, ‘सर, मैं चाहूँगा कि आप इस बात को नज़रंदाज़ कर दीजिए क्योंकि फीडबैक देने वाले शख़्स मेरे छोटे भाई हैं।’ यह बात मेरे लिए किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं थी। मैंने तुरंत संचालक से कहा, ‘सर अगर यह फीडबैक परिवार के किसी सदस्य का है तो फिर हमें एक बार अपने अंदर ज़रूर झांकना चाहिये।’ इस पर उन सज्जन ने कुछ पुराने क़िस्सों का हवाला देते हुए बताया कि ‘सर, पूर्व में परिवार के सभी निर्णय मैं अकेला लेता था। लेकिन जब मुझे यह एहसास हुआ कि मेरे ऊपर सभी की निर्भरता बहुत अधिक बढ़ गई है तो मैंने भाई को आत्मनिर्भर बनाने का निर्णय लिया। जिससे विपरीत समय में परिवार पर कोई परेशानी ना आये। इसलिए मैंने इन्हें अकेला छोड़ दिया है ताकि वे परेशानियों, दिक़्क़तों और चुनौतियों से निपटकर, खुद को निखार सके।’
दोस्तों, उन सज्जन का नज़रिया था तो बड़ा अच्छा और स्पष्ट, लेकिन अधूरा था क्योंकि भाई को सिखाने और आत्मनिर्भर बनाने की इस पूरी प्रॉसेस में उन्होंने अपने अनुभव को नज़रंदाज़ कर दिया था और भाई को शून्य से शुरुआत करने के लिए मजबूर किया था। मैंने उसी पल इस समस्या का निदान करने का निर्णय लिया और बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘चलिए, अपनी इस बात को हम यहीं विराम देते हैं और आगे की चर्चा शुरू करते हैं। आज मुझे ट्रेनिंग के दौरान एक बड़ा सुखद अनुभव भी हुआ। असल में एक युवा और नये कर्मचारी से जब मैंने उसके रोल और रिस्पांसिबिलिटी और उपलब्ध संसाधन के विषय पर बात करी तो उसने सभी कुछ एकदम सही-सही बता दिया।’ मेरे इतना कहते ही कंपनी के युवा मालिक का चेहरा एकदम खिल गया और वे बोले, ‘सर, यह के टी याने नॉलेज ट्रांसफ़र की प्रोसेस का कमाल है। हमारे यहाँ जब भी कोई कर्मचारी नौकरी छोड़ता है तो वो अपनी सभी रिस्पांसिबिलिटी नये कर्मचारी को समझाता है। इसके साथ ही नये कर्मचारी को सभी कार्य करना सिखाना भी उसी की ज़िम्मेदारी है।’ उनकी बात को बीच में ही काटते हुए मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘यही प्रोसेस अगर आपने परिवार में अपनाई होती, तो आज भाई और आपके रिश्ते में दिक़्क़त नहीं होती।’
मेरे इतना कहते ही वे एकदम चुप हो गये लेकिन मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आज आपके पास जीवन का जो अनुभव है अगर वह आप अगली पीढ़ी से साझा नहीं करेंगे तो वे भी उन्हीं ग़लतियों को दोहरायेंगे और परेशानियों भरा जीवन जियेंगे। इसी स्थिति से बचने के लिए परिवारों में बड़ों को अपना अनुभव साझा करने और छोटों को बड़ों की सलाह मानने का कहा जाता है। इसके पश्चात मैंने छोटे भाई को सुझाव देते हुए कहा कि, ‘आपके भाई आपके साथ इस तरह का व्यवहार आपको आत्मनिर्भर बनाने के लिए कर रहे हैं। आप उनके साथ बैठिए और उनसे अपनी परेशानी साझा कीजिए। याद रखना, जो लोग अपने बड़ों की मूल्यवान और मुफ्त सलाह मान लेते हैं, वे दुखों से बच जाते हैं और अपने जीवन को आनन्दमय बना पाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com