Apr 22, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अक्सर शारीरिक सुंदरता लोगों के लिए इतनी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे आंतरिक सुंदरता और अन्य गुणों पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। यह गलती अक्सर लोग दोनों ही स्थितियों में करते हैं, अर्थात् खुद को निखारते समय भी और लोगों को चुनते समय भी। साथ चुनने में की गई इस गलती का मूल्य अक्सर हमें बहुत महँगा पड़ता है। कई बार तो लोग ग़लत साथ चुनने की वजह से ही पूरे जीवन परेशान रहते हैं; दुखी रहते हैं। अपनी बात को मैं आचार्य चाणक्य और सम्राट चंद्रगुप्त के बीच घटे एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।
एक बार सम्राट चंद्रगुप्त अपने गुरु आचार्य चाणक्य के साथ मंत्रणा में व्यस्त थे। कार्य पूर्ण होने के पश्चात सम्राट चंद्रगुप्त अचानक ही आचार्य चाणक्य से बोले, ‘गुरुदेव, काश आप खूबसूरत होते?’ चंद्रगुप्त से आचार्य चाणक्य के विषय में इस तरह की बात सुन सभी दरबारी आश्चर्यचकित थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कहीं आचार्य चाणक्य नाराज़ हो गए तो क्या होगा। परंतु आचार्य चाणक्य पूरी तरह शांत रहते हुए बोले, ‘राजन, इंसान की पहचान उसके गुणों से होती है, रूप से नहीं।’ सम्राट चंद्रगुप्त भी कहाँ आसानी से मानने वाले थे। उन्होंने अपना असंतोष जताते हुए आचार्य चाणक्य से कहा कि वे उदाहरण देकर समझाएँ कि गुण के सामने रूप छोटा या महत्वहीन कैसे रह सकता है। सम्राट की बात सुन आचार्य चाणक्य मुस्कुराए और इशारे से दास को 2 लोटे पानी लाने के लिए कहा। पानी आने पर आचार्य चाणक्य ने पानी के दोनों लोटे सम्राट को देते हुए पानी पीने के लिए कहा।
सम्राट के पानी पीते ही आचार्य चाणक्य बोले, ‘महाराज, पहले गिलास का पानी सोने के घड़े से लाया गया था और दूसरे लोटे का पानी मिट्टी के घड़े से। आपको दोनों में से कौन से घड़े का पानी अच्छा लगा?’ सम्राट चंद्रगुप्त बोले, ‘निःसंदेह मिट्टी के घड़े का क्योंकि वह ज़्यादा शीतल और संतुष्टि पहुँचाने वाला था।’ आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त की बात वहाँ पास ही खड़ी महारानी याने सम्राट चंद्रगुप्त की पत्नी सुन रही थी। वे आचार्य चाणक्य द्वारा दिए गए उदाहरण से काफ़ी प्रभावित हुई और कुछ पल विचार करने के बाद बोली, ‘आचार्य आप एकदम सही ओर इशारा कर रहे हैं। वह सोने का घड़ा किस काम का जो एक इंसान की प्यास भी ना बुझा सके। मिट्टी का घड़ा कुरूप था, लेकिन अपने शीतल जल के कारण प्यास बुझा कर इंसान को तृप्त करने लायक़ था। आप एकदम सही कह रहे थे कि रूप से अधिक गुण का महत्व ज़्यादा होता है।’
महारानी की बात सुनते ही सम्राट चंद्रगुप्त प्रसन्न हो गए और बोले, ‘मिट्टी के घड़े समान ही गुणी गुरु के रूप में आचार्य चाणक्य के मिल जाने के कारण ही मैं मगध राज्य पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में कामयाब हुआ हूँ। गुणी लोगों की संगत ही आपके जीवन का उद्धार करती है और अगर आप गुणी गुरु की संगत में हैं तो निश्चित तौर पर आप अपने जीवन को सफल और उपयोगी बना लेंगे।’
वैसे तो दोस्तों मुझे लगता नहीं है की इस किस्से को सुनने के बाद इस विषय में कुछ और चर्चा करने की आवश्यकता है। लेकिन फिर भी संक्षेप में कहूँ तो यकीनन रूप से ज़्यादा गुण होना महत्वपूर्ण है। क्योंकि शारीरिक रूप तो उम्र के साथ ढल जाता है लेकिन इंसान का गुण उम्र और तजुर्बे के साथ निखरता जाता है। जिसका तेज़ हर हाल में सुंदर रूप से ज़्यादा होता है। गुण से आप दूसरों को भी गुणी बना सकते हैं लेकिन रूप से कदापि नहीं। इसलिए दोस्तों हमेशा याद रखिएगा, इंसान अपने रूप के कारण नहीं बल्कि अपने गुणों के कारण पूजा जाता है और इसीलिए हमें हर पल अपने गुणों को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिये और यह सिर्फ़ दूसरों के गुणों को ग्रहण करने से ही सम्भव होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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