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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

रोक-टोक और डाँट भी सकारात्मक हो सकती है…

Oct 20, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में मिली असफलता के लिए परिस्थितियों अथवा दूसरों को दोष देना उन्हें स्वीकारने के मुक़ाबले हमेशा आसान होता है। इसीलिए आपको दुनिया में ज़्यादातर लोग अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हुए दिख जाएँगे। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे दो दिन पूर्व एक काउंसलिंग के दौरान उस वक़्त हुआ जब एक युवा ने अपनी सभी समस्याओं के लिए अपने पिता को दोषी ठहराते हुए कहा कि ‘मेरे पिताजी इतने स्ट्रिक्ट थे कि वे जरा सी गलती पर भी बुरी तरह डाँट दिया करते थे। उनकी इसी रोक-टोक के कारण मैं जीवन में कुछ कर नहीं पाया।’ जब मैंने उस युवा से थोड़ा और विस्तार से बात करी तो मुझे एहसास हुआ कि उसकी असफलता की मुख्य वजह असफलताओं से सीख कर पूर्ण क्षमता के साथ फिर से प्रयास ना करना है। समस्या समझ आते ही मैंने पहले तो उसे सीधे-सीधे समझाने का प्रयास किया, लेकिन जब बात नहीं बनी तो मैंने उसे एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी-


एक बार एक नन्ही सी चिड़िया, जो अभी उड़ना सीख ही रही थी, अपने परिजनों से बिछड़कर अपने घोंसले से काफ़ी दूर आ गई थी। अपनी पहली सोलो यात्रा कर वह नन्ही चिड़िया काफ़ी खुश थी, लेकिन कुछ देर बाद उसे एहसास हुआ कि अब शाम ढलने वाली है और उसे जल्द ही अपने घोंसले तक पहुँचना होगा, अन्यथा परिवार वाले उसे घोंसले में ना पा परेशान होंगे। विचार आते ही उस नन्ही चिड़िया ने उड़ान भरने की कई कोशिशें करी लेकिन हर बार वह कुछ ऊपर उठ कर, नीचे गिर पड़ी।


उस नन्ही चिड़िया के इस प्रयास को पास की डाल पर बैठी दो अन्य चिड़ियाँ बड़े गौर से देख रही थी। वे दोनों चिड़िया उड़कर उस नन्ही चिड़िया के पास गई और बोली, ‘क्या हुआ नन्ही चिड़िया रानी, बड़ी परेशान नज़र आ रही हो?’ नन्ही चिड़िया बोली, ‘मैं रास्ता भटक कर यहाँ आ गई हूँ और अब मुझे अंधेरा होने के पहले वापस अपने घर पहुँचना है। मुझे अभी ढंग से उड़ना नहीं आता है, क्या आप मुझे उड़ना सिखा सकते हैं?


दोनों चिड़ियाओं में से एक चिड़िया कुछ क्षण सोचने के बाद बोली, ‘जब उड़ना नहीं आता है तो इतना दूर आई क्यों? इसके बाद दोनों चिड़िया मिलकर उस नन्ही चिड़िया का मजाक उड़ाने लगी। दोनों चिड़ियाओं की बातों से नन्ही चिड़िया को तेज ग़ुस्सा आने लगा। वह ग़ुस्से में कुछ कहती उसके पहले ही एक चिड़िया उसे चिढ़ाते हुए बोली, ‘देखो हमें तो उड़ना आता है।’ इतना कहकर दोनों चिड़िया उड़ गई। कुछ देर बाद वह चिड़िया उड़ने की कोशिश कर रही नन्ही चिड़िया के पास फिर से आई और बोली, ‘देखा तुमने, हम तो उड़ कर अपनी मर्ज़ी के स्थान तक मज़े से जा सकते हैं। लेकिन तुममें अभी इतना दम नहीं है।’ इतना कहकर दोनों चिड़िया एक बार फिर उड़ गई।


दोनों चिड़िया ने इसी तरह ताने मारते, चिढ़ाते, कड़वी और चुभने वाली बातें कहते हुए ४-५ बार और उड़ान भरी और जब इस बार वे उड़ान भरकर वापस आयी तो उन्होंने पाया कि नन्ही चिड़िया अब वहाँ नहीं है। यह देख दोनों में से एक चिड़िया मुस्कुराई, जिसे देख दूसरी चिड़िया बोली, ‘मित्र, मुझे समझ नहीं आया कि नन्ही चिड़िया के उड़ जाने पर तुम इतना खुश क्यों हो? तुम तो उल्टा उसका मजाक बना रही थी।’ पहली चिड़िया उसी मुस्कुराहट के साथ बोली, ‘मित्र, तुमने सिर्फ़ मेरे बाहरी नकारात्मक रवैये को देखा; उसी पर ध्यान दिया। लेकिन नन्ही चिड़िया ग़ुस्से के साथ, सिर्फ़ मेरे सकारात्मक पहलू को देख यह समझने का प्रयास कर रही थी कि उड़ा कैसे जा सकता है। इसका अर्थ हुआ उसका ध्यान मेरे मजाक, मेरे लहजे, मेरे कहे बुरे शब्दों पर नहीं था, बल्कि उन हरकतों में था, जिनका प्रयोग मैं मेरी उड़ान के लिए कर रही थी।’


इन बातों ने दूसरी चिड़िया की उलझन को बढ़ा दिया। अपनी इस उलझन को दूर करने के उद्देश्य से उसने पहली चिड़िया से प्रश्न करते हुए कहा, ‘जब तुम्हारा लक्ष्य सिर्फ़ उसे सिखाना था, तो फिर तुमने उसका मजाक क्यों उड़ाया?’ पहली चिड़िया बोली, ‘मित्र, नन्ही चिड़िया ने पहली दफ़ा अकेले उड़ान भरी थी और वह मुझे जानती भी नहीं थी। ऐसे में अगर मैं उसको सीधे और स्पष्ट तरीक़े से सिखाती तो शायद वह ख़ुद को जीवनभर मेरे एहसान तले दबा समझाती और आने वाले जीवन में कठिनाइयों या विपरीत परिस्थितियों से सामना होने पर भी वह मदद की आस में बैठी रहती। शुरू में जब मैंने उसे उड़ने का प्रयास करते हुए देखा था, तभी मैं उस नन्ही चिड़िया के अंदर छिपी लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति को पहचान गयी थी। तभी मुझे एहसास हो गया था कि अगर इसे सही दिशा का भान हो गया तो फिर यह अपने आप ही उड़ना सीख जाएगी। इसलिए मैंने उसे अप्रत्यक्ष रूप में सिखाया। अब वो पूरी ज़िंदगी बिना किसी से मदद माँगे, ख़ुद से कोशिश करेगी और सफल भी होगी। यही तरीक़ा उसके अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ाएगा।


इतना कहकर मैंने एक पल का विराम लिया फिर उस युवा की ओर देखते हुए कहा, ‘माता-पिता भी हमें भविष्य की अनिश्चितताओं से निपटने के लिए इसी तरह से तैयार करते हैं। उनकी डाँट के पीछे भी हमारे लिए प्यार और सकारात्मक चिंता छिपी रहती है। वे जानते हैं कि हमारे अंदर कुछ ख़ास छिपा हुआ है और वे उसे बाहर लाने के लिए डाँट को अप्रत्यक्ष साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।


वैसे भी दोस्तों, सच्ची मदद वही होती है जो मदद पाने वाले को महसूस ही ना होने दें कि उसकी मदद की गई है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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