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लक्ष्य पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है मूल्यों का पालन करना…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Nov 15, 2024
  • 4 min read

Nov 15, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस दुनिया में हर इंसान अपने जीवन में कोई ना कोई ऐसा काम कर जाना चाहता है, जो उसका नाम हमेशा के लिए अमर कर दे। इसी सपने को पूरा करने के लिए वो अपने जीवन में कुछ लक्ष्य बनाता है और फिर उन लक्ष्यों को पाने के लिए अपनी ओर से पूरा प्रयास करता है। इस प्रयास के शुरुआती दौर में मिली असफलता कई बार लोगों को अपना कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर करती है, तो राह में मिली छोटी-छोटी सफलताएँ आपको और तेज़ी से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है। फिर जैसे-जैसे हम अपने लक्ष्य के क़रीब पहुँचते जाते हैं, हमारा फोकस और बढ़ता जाता है व हम और तेज़ी के साथ प्रयास करने लगते हैं। अक्सर इस स्थिति में आपने महसूस किया होगा या फिर सुना होगा कि फिर हमें लक्ष्य के सिवा कुछ और नज़र नहीं आता है।


वैसे साथियों यह प्रक्रिया बड़ी स्वाभाविक है और सफलता का मूल मंत्र भी इसे ही माना जाता है। लेकिन इस स्थिति में एक चीज जो और ज्यादा मायने रखती है, वह है आप किन जीवन मूल्यों का पालन करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। अगर जीवन मूल्य मानवता और इंसानियत पर आधारित होंगे तो आप सफलता सही मूल्य पर चाहेंगे, अन्यथा किसी भी मूल्य पर। अपनी बात को मैं आपको वर्ष १९८८ के सियोल ओलंपिक खेल के एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।


कनाडा के लॉरेंस लेम्यूक्स ने बचपन से एक ही सपना देखा था, ‘एकल नौकायन का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनना!’ अपने इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने एक दशक से भी अधिक समय तक कठोर प्रशिक्षण लिया और हर पल अपने उस सपने को जीने का प्रयास किया। इसी कारण वर्ष १९८८ के सियोल ओलंपिक में एकल नौकायान में लॉरेंस लेम्यूक्स के गोल्ड मेडल जीतने की प्रबल संभावना, सभी विशेषज्ञों और अन्य खिलाड़ियों द्वारा व्यक्त की जा रही थी। वे स्वयं भी महसूस कर रहे थे कि अब उनके सपने को साकार होने में बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया है।


इन्हीं सब बातों के बीच जल्द ही प्रतियोगिता का दिन भी आ गया और लॉरेंस लेम्यूक्स ने अपने सपने याने 'गोल्ड मेडल’ को ज़हन में रख बहुत अच्छी शुरुआत की। जिसके कारण हर बीतते पल के साथ उनके मेडल जीतने की संभावना प्रबल होती जा रही थी और उनके समेत सभी ने मन ही मन मान लिया था कि वर्षों पूर्व देखा गया सपना सच होने में अब बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया है। हालांकि उस वक्त वे दूसरी पोजीशन पर थे इसलिए उन्हें कोई ना कोई मेडल मिलना तय था, लेकिन उनके प्रयास बता रहे थे कि उन्होंने अभी गोल्ड की आस नहीं छोड़ी है और वे किसी भी समय नंबर वन की पोजीशन पर भी आ सकते हैं। लेकिन तभी उनकी नजर बीच समुद्र में उल्टी पड़ी दूसरी नाव और नाविकों पर पड़ी, जिन्होंने दूसरी प्रतिस्पर्धा में भाग लिया था। उन्होंने देखा कि दो प्रतिस्पर्धियों में से एक नाविक किसी तरह नाव से लटका हुआ है और दूसरा समुद्र में बह रहा है। इतना ही नहीं दोनों प्रतिस्पर्धी बुरी तरह से घायल भी थे। लॉरेंस स्थिति को देख समझ गए थे कि यदि इन दोनों प्रतिस्पर्धियों को तत्क्षण सहायता नहीं मिली तो इनका बचना असंभव होगा।


उन्होंने बिना एक क्षण भी गँवाए अपने चारों ओर देख कर अंदाजा लगा लिया कि आसपास बचाव दल और सुरक्षा नौका दोनों ही नहीं है और अब उनके पास दो विकल्प हैं। पहला, दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों को नज़रंदाज़ करके अपना पूरा ध्यान केवल अपने लक्ष्य को पाने या अपने सपने को पूरा करने पर केंद्रित करना और दूसरा विकल्प था दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों की मदद करना। लॉरेंस लेम्यूक्स ने बिना किसी हिचकिचाहट के दूसरे विकल्प को चुना और अपनी नौका को उस दिशा की ओर मॉड दिया जिधर दुर्घटनाग्रस्त नाव और नाविक समुद्र की विकराल लहरों में हिचकोले खा रहे थे। कुछ ही क्षणों में लॉरेंस ने एक-एक कर दोनों नाविकों को बचा कर अपनी नाव में बैठा लिया और तब तक वहीं इंतजार किया जब तक कोरिया की नौसेना आकर उन्हें सुरक्षित निकाल नहीं ले गई।


दोस्तों, इस कहानी को सुन मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक ही है कि लॉरेंस लेम्यूक्स ने अपने जीवन की एकमात्र महान उपलब्धि को अपने हाथ से यूँ ही क्यों फिसल जाने दिया? वास्तव में लॉरेंस के जीवन मूल्य उन्हें किसी भी क़ीमत पर विजेता बन मेडल जीतने की इजाजत नहीं देते थे। इसलिए उन्होंने अपने सपने, अपने लक्ष्य और ओलंपिक मेडल के स्थान पर दो लोगों की जान बचाने के विकल्प को चुना। लॉरेंस लेम्यूक्स को ओलंपिक प्रतिस्पर्धा में तो कोई पदक नहीं मिल सका लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी द्वारा उन्हें, उनके अदम्य साहस, आत्म-त्याग और खेल भावना के लिए पियरे द कूबर्तिन पदक से सम्मानित किया, जो ओलंपिक मेडल से कई गुना बड़ा था।


दोस्तों हम सब अपने जीवन में अपने विभिन्न लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ते हैं और उन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए भी हमेशा प्रयासरत रहते हैं। लेकिन इन प्रयासों के बीच हम सभी को हर क्षण यह याद रखना चाहिए कि सिर्फ़ भौतिक लक्ष्य ही हमें महान नहीं बनाते है, उसके लिए तो हमें इंसानी करुणा जैसे भावों के साथ हर क्षण दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए, तभी हम वास्तविक विजेता बन पाते हैं, जैसा कि लॉरेंस लेम्यूक्स ने किया था।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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