Oct 25, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, यह बात उस वक़्त की है जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि के निर्माण करने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम उन्होंने पृथ्वी का निर्माण किया जिसमें पहाड़, मैदान, खाई, चट्टान याने मिनरल आधारित चीजें बनाई। लेकिन कुछ ही दिनों में ब्रह्मा जी को अपनी बनाई धरती अधूरी लगने लगी। काफ़ी सोच-विचार करने पर उन्हें एहसास हुआ कि इसमें रंग नहीं हैं, इसलिए यह धरती अधूरी महसूस होती है। विचार आते ही ब्रह्मा जी ने इस धरती को तरह-तरह के फूल, पौधों और पेड़ों से रंग दिया। अब धरती तरह-तरह की वनस्पतियों से सजी हुई थी। धरती के हर कोने का अपना एक अलग रूप-रंग था।
अपनी बनाई इस अनूठी कलाकृति को देख ब्रह्मा जी काफ़ी खुश हुए। लेकिन अगले कुछ ही दिनों में ब्रह्मा जी को इसमें भी अधूरापन लगने लगा। अब वे सोच रहे थे कि मैंने जिसे जहाँ, जैसा रंग-रूप दे दिया, अब सब कुछ वैसा का वैसा ही है। इसमें कहीं पर भी कोई चहल-पहल नज़र नहीं आ रही है। इस नये विचार ने ब्रह्मा जी को एक बार फिर उलझन में डाल दिया। वे एक बार फिर सोच में पड़ गये कि अब क्या किया जाये? काफ़ी सोच-विचार कर वे इस निर्णय पर पहुँचे कि मुझे इस धरती पर चलते-फिरते प्राणियों को लाना होगा। इसके बिना यह धरती अधूरी ही लगती रहेगी। विचार आते ही ब्रह्मा जी ने इस धरती पर तरह-तरह के जानवरों की उत्पत्ति करी।
अपनी इस गतिशील दुनिया को देख ब्रह्मा जी बहुत ज़्यादा खुश थे। अब वे जब तब इस पृथ्वी को निहारा करते थे। लेकिन एक दिन ब्रह्मा जी को अपनी इस नायाब कृति में कुछ कमी नज़र आई। वे सोचने लगे कि क्यों ना ऐसा कुछ बनाया जाये जो स्वयं इस पृथ्वी को समय-समय पर नया रूप, नया रंग दे सके। इस विचार पर मंथन करते वक़्त ब्रह्मा जी के मन में इंसानों याने मनुष्यों के निर्माण का आइडिया आया।
ब्रह्मा जी ने तुरंत सभी देवताओं को बुलाया और उन्हें अपने इस विचार से अवगत कराया। ब्रह्मा जी का विचार सुनते ही सभी देवी-देवता सोच में पड़ गये और कुछ तो घबरा कर ब्रह्मा जी से बोले, ‘भगवान! आप तो इंसानों को देवी-देवताओं के बराबर शक्ति देने पर विचार कर रहे हैं। अगर हक़ीक़त में ऐसा हो गया तो सोच कर देखिए एक ना एक दिन ये सब मिलकर हमारे स्वर्ग पर ही क़ब्ज़ा कर लेंगे।
सभी देवताओं के विचारों को सुनने के बाद ब्रह्मा जी ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘देखो, मेरे मन में कुछ नया बनाने का विचार आया है, तो मैं इसपर अमल ज़रूर करूँगा। लेकिन साथ ही मैं आपके तर्कों से भी सहमत हूँ, इसलिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मैं इंसानों को असीमित क्षमताओं और शक्तियों का धनी तो बनाऊँगा लेकिन उनकी क्षमता और शक्ति को उन्हीं के अंदर छिपा कर रखूँगा। इसके साथ ही मैं उन्हें दो आँखें और लोभ, मोह, लालच आदि जैसे भावों से भर दूँगा, जिससे वे ज़्यादातर समय इसी में उलझे रहेंगे और जो इंसान इन पर विजय प्राप्त करेगा, वो मुझे मेरे उद्देश्य की पूर्ति में मदद करेगा; इस दुनिया को और बेहतर बनाते हुए मोक्ष को प्राप्त करेगा। कहते हैं दोस्तों, ब्रह्मा जी का यह विचार सभी देवी-देवताओं को अच्छा लगा और उसके बाद ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि के सबसे शक्तिशाली जीव मनुष्य की रचना करी।
दोस्तों, उपरोक्त कहानी इसलिए भी सही मान पड़ती है क्योंकि आँखों से देखी चीजों को पाने याने लोभ, मोह, लालच आदि जैसे भावों में फँसे होने के कारण आज तक मनुष्य अपनी क्षमताओं और शक्तियों को पहचान नहीं पाया है। अगर आपका लक्ष्य अपनी शक्तियों और क्षमताओं को पहचानना है, तो आपको अपने अंदर की यात्रा तय करना होगी। अर्थात् आपको संयम के साथ बाहरी दुनिया के मोह से बचकर, ख़ुद को खोजना होगा। जो बिलकुल भी आसान नहीं होगा क्योंकि इसके लिए आपको एक युद्ध, ख़ुद के विरुद्ध लड़ना होगा। ख़ुद के विरुद्ध याने जब आप अपनी क्षमताओं और शक्तियों को खोजने के लिए अपने अंदर की यात्रा करेंगे और अपने अंदर बदलाव लाने का प्रयास करेंगे तब आप पायेंगे कि आप स्वयं ही ख़ुद को इस बदलाव के लिए रोक रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपको ख़ुद को ख़ुद के विरुद्ध संग्राम छेड़ना होगा और लोभ, मोह, लालच आदि को पछाड़कर अपने अंतर्मन के आधार पर जीवन में आगे बढ़ना होगा, तभी आप अपनी शक्तियों और क्षमताओं को पहचाना पायेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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