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लालच छोड़ें, मज़े से जिएँ…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Sep 4, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। गाँव के बाहरी इलाक़े में रहने वाला सेठ बर्तन किराए पर देने का कार्य किया करता था। एक दिन उसकी दुकान पर एक व्यक्ति आया और उससे तीन दिनों के लिए कुछ बर्तन किराए पर ले गया। तीन दिन बाद अपने वादे अनुसार वह व्यक्ति सेठ को बर्तन लौटाने आया, तब वह दो-तीन बर्तन अधिक ले आया। जब सेठ ने उससे इस विषय में पूछा कि तुमने अधिक बर्तन क्यों लौटाये? तो वह व्यक्ति बोला, ‘सेठ, आपने जो बर्तन मुझे दिये थे यह सब अतिरिक्त बर्तन उनकी संतान है; इनपर भी आपका हक़ है, इसलिए इन्हें भी आप ही सम्भालिये।


सेठ मन ही मन उस व्यक्ति की बेवक़ूफ़ी पर बड़ा प्रसन्न हुआ और सोचने लगा, ‘यह तो बड़ा ही अच्छा ग्राहक है, जो मुझे किराए के साथ-साथ अतिरिक्त बर्तन भी देता है। ऐसे ही चलता रहा तो मैं तो इससे ढेर सारा मुनाफ़ा काम लूँगा।’ विचार आते ही सेठ ने मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहा, ‘भैया, इस दुकान को अपनी दुकान ही समझना और जब भी ज़रूरत हो निःसंकोच आ जाना। इस दुकान के दरवाज़े तुम्हारे लिए हमेशा खुले हैं।’ उस व्यक्ति ने हाँ में सर हिलाया और वहाँ से चला गया।


अभी इस घटना को बीते कुछ ही दिन हुए थे कि वह व्यक्ति एक बार फिर सेठ की दुकान पर पहुँचा और फिर से कुछ बर्तन किराए पर ले गया और कुछ दिन बाद बर्तन लौटाते समय ज़्यादा बर्तन देते हुए, वही बात कह गया कि ‘आपके बर्तनों को फिर संतान हुई है।’ सेठ एक बार फिर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने चुपचाप सारे बर्तन रख लिये। अब तो बर्तन ले जाना और ज़्यादा लौटाने का उस व्यक्ति के लिए सिलसिला सा बन गया था।


एक बार वही व्यक्ति उस सेठ के पास पहुँचा और बोला, ‘सेठ मेरे यहाँ कुछ विशेष अतिथि आ रहे हैं और इस बार मुझे कुछ चाँदी के बर्तनों की आवश्यकता है। क्या आप मुझे बर्तन उपलब्ध करवा पायेंगे या मैं किसी और से ले लूँ?’ उस व्यक्ति की बात सुनते ही सेठ सोच में पड़ गया, तभी उसे याद आया कि मैंने पहले उसे जितने भी बर्तन दिये है, हर बार वो उनसे ज़्यादा लौटा कर गया है। इसलिए इस बार भी चाँदी के अधिक बर्तन मिलने की संभावना है। मन में लालच आते ही सेठ के विचार बदल गये और वह एकदम से ही बोला, ‘कहीं और जाने की क्या आवश्यकता है। मैं तुम्हें चाँदी के बर्तन उपलब्ध करवा देता हूँ।’ इतना कहकर सेठ ने उस व्यक्ति को उसके कहे अनुसार बर्तन उपलब्ध करवा दिए।


उस व्यक्ति ने सभी बर्तन लिए और उसके बाद वह लगभग एक डेढ़ माह तक बर्तन लौटाने ही नहीं आया। बीतते समय के साथ सेठ की चिंता इस विषय में बढ़ने लगी और एक दिन अत्यधिक परेशान होकर सेठ उसके घर पहुँच गया। उस व्यक्ति ने सेठ की अच्छे से आवभगत की, लेकिन आज तो सेठ के मन में कुछ और ही था। इसलिए मौक़ा मिलते ही वह बोला, ‘भले मानस! तूने वो चाँदी के बर्तन अभी तक वापस क्यों नहीं किए।’ इस पर वह व्यक्ति बहुत ही मायूस होकर बोला, ‘सेठ जी, क्या करूँ समझ ही नहीं आ रहा। आपने जो चाँदी के बर्तन दिए थे, उनकी तो मृत्यु हो गई है।’ इतना सुनते ही सेठ को ग़ुस्सा आ गया। वह लगभग चिल्लाते हुए बोला, ‘क्या बकवास करता है? मैं तुझे अंदर करवा दूँगा। कभी बर्तनों की मृत्यु भी होती है?’ वह व्यक्ति उसी मायूसी के साथ बोला, ‘सेठ जी! जब मैंने कहा था कि बर्तनों की संतानें हो रही हैं, उस वक्त आप सब ठीक मान रहे थे। यदि बर्तनों की सन्तान हो सकती है, तो वे मर क्यों नहीं सकते?’


दोस्तों, कहने की ज़रूरत नहीं है कि लालच के अंतिम परिणाम के रूप में सेठ को क्या मिला होगा। ख़ैर इसे यहीं छोड़िये और सोच कर देखिए कहीं हम भी तो सेठ के माफ़िक़ ही अपना जीवन नहीं जी रहे हैं? मुझे तो लगता है शायद सेठ के द्वारा की गई गलती हम भी रोज़ दोहरा रहे हैं। जी हाँ दोस्तों, लालच में आकर रोज़ अधिक कमाने की चाह में हम कभी स्वास्थ्य, कभी अंतर्मन की शांति और ख़ुशी को, तो कभी रिश्तों को दांव पर लगाकर, इस गलती को दोहरा रहे हैं। एक बार विचार कर देखियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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