June 28, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आपने परिवार के बड़े बुजुर्गों को यह कहते तो सुना होगा कि ‘लालच बुरी बला है!’ लेकिन इसके बाद भी आपने अपने आस-पास ही या अपने परिवार या परिचितों में ही इसके शिकार लोगों को भी देखा होगा। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह लालच की वजह से होने वाले नुक़सान का सही आकलन ना कर पाना है। सामान्यतः लोग इस बात का एहसास ही नहीं कर पाते हैं कि यह लालच असल में उनसे जीवन जीने का मौक़ा छीन लेता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, प्रतिदिन की तरह आज भी पंडित जी सुबह-सुबह स्नान कर भगवान के दर्शन और पूजन के लिए मंदिर जाने के लिए निकले। मंदिर के रास्ते में पंडित जी को एक स्वर्ण मुद्रा मिली। पंडित जी ने सोचा कि रास्ते में इस तरह मुद्रा को छोड़ना और उसे लोगों के पैरों में आने देना लक्ष्मी जी का अपमान होगा। इसलिए इसे उठा कर किसी दरिद्र को देना बेहतर होगा। विचार आते ही पंडित जी ने स्वर्ण मुद्रा को उठाया और अपनी धोती के कोने में बांध लिया।
इसके बाद पंडित जी ने पूरे नगर में दरिद्र और भिखारी को ढूँढना शुरू किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसलिए अब प्रतिदिन पंडित जी उस स्वर्ण मुद्रा को साथ लेकर घूमने लगे। एक दिन पंडित जी को किसी आवश्यक कार्य के लिए दूसरे गाँव जाने की आवश्यकता पड़ी। पंडित जी ने एक पोटली में अपनी ज़रूरत का सामान लिया और दूसरे गाँव जाने के लिए निकल पड़े। अभी वे गाँव के बाहरी हिस्से में पहुँचे ही थे कि उन्हें वहाँ राजा अपनी सेना के साथ कहीं जाते नज़र आए। पंडित जी को देखते ही राजा ने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद देने का कहा।
राजा की बात सुनते ही पंडित जी ने उनसे पूछा कि आख़िर वे कहाँ जा रहे हैं? इस पर राजा बोले, ‘पण्डित जी मैं पड़ोसी राज्यों पर हमला करने जा रहा हूँ। जिससे मैं उन्हें जीत कर अपने राज्य का विस्तार कर सकूँ। कृपया मुझे विजयी होने का आशीर्वाद दीजिए। इतना सुनते ही पंडित जी मुस्कुराए और राह में मिली स्वर्ण मुद्रा को राजा के हाथ में थमा कर आगे जाने लगे। राजा ने आश्चर्यचकित हो पंडित जी को आवाज़ देकर रोका और उनसे स्वर्ण मुद्रा के विषय में पूछा तो पंडित जी बोले, ‘महाराज, मुझे यह स्वर्ण मुद्रा मंदिर के रास्ते में मिली थी। उस वक़्त मैंने सोचा था कि जब भी मुझे कोई दरिद्र या भिखारी मिलेगा तो मैं उसे यह दे दूँगा। पिछले कई दिनों से मैं अपने राज्य में दरिद्र और भिखारी को खोज रहा था, पर मुझे कोई मिला ही नहीं। आज आप से मिलकर मेरी यह खोज पूर्ण हुई, इसलिए मैंने आपको इस मुद्रा को थमा दिया।
राजा एकदम भौंचक्के थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण पंडित से क्या कहें। एक पल के लिये तो उनके मन में विचार आया कि इस गुस्ताखी के लिये पंडित को मौत के घाट उतार दें, लेकिन अगले ही पल उन्हें लगा कि पंडित जी देखने से बहुत ज्ञानी लगते हैं और अगर वे ऐसा कह रहे हैं तो इसमें कुछ ना कुछ गूढ़ रहस्य छुपा हो सकता है। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ते हुए पंडित जी से बोला, ‘ब्राह्मण देवता, मैं आपकी बात समझ नहीं पाया। क्या आप मुझे इसे विस्तार से बता सकते हैं?’ पंडित जी एकदम गंभीर स्वर में बोले, ‘राजन, जो व्यक्ति सब कुछ होने के बाद भी और अधिक पाने की लालसा रखे और अपनी लालसा की पूर्ति के लिए दूसरों पर हमला करने से भी ना चुके, उससे दरिद्र और कौन हो सकता है?
बात तो दोस्तों, पंडित जी की एकदम सटीक थी। जो इंसान अपने जीवन को दांव पर लगा कर भी हमेशा और अधिक पाने की अपेक्षा रखता है, वह वास्तव में दरिद्र ही होता है। मेरी बात का यह अर्थ क़तई नहीं है दोस्तों कि कुछ पाने की चाह होना गलत है। किसी लक्ष्य या वस्तु को पाने की ज़िद होना अच्छी बात है। लेकिन आगे बढ़ने की ज़िद में दूसरों की चीजों या दौलत को हड़पने की चाह या स्वार्थी सोच रखना, पूर्णतः ग़लत है क्योंकि स्वार्थी सोच सब कुछ होने के बाद भी आपको दुखी ही रखती है। आपका ध्यान जो है के स्थान पर जो नहीं पर लगाती है। इसीलिए कहा जाता है दोस्तों, ज़रूरतें पूरी हो सकती है लेकिन लालच से उपजी इच्छाएँ कभी नहीं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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