Oct 27, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर हमारे यहाँ प्रचलित यह कहावत ज़रूर सुनी होगी, ‘दूसरों की थाली में घी ज़्यादा दिखना!’ अर्थात् दूसरे को हमेशा खुद से बेहतर स्थिति में मानना। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह सीमित सोच के साथ तुलना करना होता है। वैसे अगर यह तुलना सामान्य स्तर तक होती, तो भी चल जाता। लेकिन खुद के भाग्य को फूटा मान, तुलना करना व्यर्थ का तनाव पैदा करता है, आपके मन में नकारात्मक विचार या भाव पैदा करता है और इन्हीं नकारात्मक विचारों या भावों के प्रभाव में व्यक्ति ना सिर्फ़ अपनों को बल्कि परमात्मा तक को दोष देने लगता है। उसे लगता है कि उसके साथ लगातार पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है।
सोच कर देखिए साथियों, परमात्मा से यह कहना कि ‘उसे ऐसा नहीं करना चाहिए…’ क्या कहीं से भी उचित है? बिलकुल भी नहीं क्यूँकि मनुष्य कितना भी पढ़-लिख क्यों ना जाए, वह इतना समझदार नहीं बन सकता है कि परमात्मा के इरादे समझ सके। जी हाँ साथियों, परमात्मा से या उनके बारे में शिकायत करने के स्थान पर हमें स्वीकारना होगा कि कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माता है और वर्तमान में किए गए कर्म, फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे, हमारे भाग्य का निर्धारण करते हैं। इसीलिए तो मानसिक सतर्कता और गुजरते हुए मौक़ों को पहचानने की हमारी क्षमता को भाग्य से जोड़ कर देखा जाता है। इसीलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में समझाने का प्रयास किया था कि चीजों या उपलब्ध संसाधनों की तुलना तक तो ठीक है, लेकिन अपने भाग्य की तुलना करना बिलकुल भी उचित नहीं है।
अगर आप भाग्य की तुलना के इस ट्रैप से बचना चाहते है तो सबसे पहले स्वीकारें कि अगर आपको ईश्वर ने कुछ नहीं दिया है तो इसकी सिर्फ़ एक वजह है, वह आपको इससे भी बेहतर कुछ देना चाहता है। जी हाँ साथियों, ईश्वर सदैव हमें वही देता है जो हमारे लिए सबसे उचित होता है, हमारे लिए लाभदायक होता है और हाँ, वह कुछ भी देने से पूर्व, हमें उसे पाने के लिए पात्र बनाना चाहता है, इसीलिए वह हमसे कर्म की आशा रखता है। जैसे-जैसे आप कर्म करते जाएँगे वह आपकी झोली भरता चला जाएगा।
वैसे इसी बात को हम पूर्व में मेरे द्वारा कहे गए कथन कि ‘हमें दूसरों की थाली में घी ज़्यादा दिखता है…’ की मूल वजह ‘सीमित सोच के साथ तुलना करना’, को समझना होगा। असल में दोस्तों, हमारे द्वारा की गई तुलना अक्सर वर्तमान स्थितियों पर आधारित होती है और तुलना करते वक्त अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि उस चीज़ या वस्तु को पाने के लिए सामने वाले ने पूर्व में क्या कर्म किए गए थे। अगर हम फल के स्थान पर गहराई में जाकर कर्मों की तुलना करेंगे तो शायद जल्दी ही उन सब वस्तुओं के लिए खुद को पात्र बना लेंगे।
इसलिए दोस्तों, मैंने कहा तुलना से बेहतर है खुद की पात्रता बढ़ाना और इसके लिए आपको दूसरों के भाग्य से तुलना करने या सराहने में समय बर्बाद करने के स्थान पर, स्वयं के भाग्य को बनाने में लगाना होगा। याद रखिएगा परमात्मा हम सभी के भाग्य का खाका या चित्र ज़रूर बनाता है लेकिन उसमें रंग हमें स्वयं भरना होता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए पूर्व में मेरे द्वारा किए गए कर्मों के आधार पर ईश्वर मेरा जन्म किसी बहुत ही गरीब परिवार में करता है। अब इसके लिए मैं अगर बार-बार सिर्फ़ दोष दे रहा हूँ या दूसरों से तुलना कर रहा हूँ तो मैं अपना जीवन इन्हीं बातों में बर्बाद कर दूँगा। लेकिन इसके विपरीत अगर मैं कर्मों पर ध्यान दूँगा तो निश्चित तौर पर परमात्मा के आशीर्वाद से मेरी मृत्यु उन हालातों में नहीं होगी, जिनमें मैंने जन्म लिया था। तो आईए दोस्तों, आज से हम कर्म प्रधान बन अपना भाग्य, अपनी क़िस्मत खुद लिखने का प्रयास करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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