Nov 17, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, कई बार हम दूसरों द्वारा की गई गलती की सजा खुद को दे बैठते हैं और अपनी शांति, सुख, चैन से हाथ धो बैठते हैं और अनावश्यक रूप से अपने मन, अपने दिल पर नकारात्मकता का बोझ बढ़ा लेते हैं। उक्त बात मुझे हाल ही में उत्तराखंड के शहर रुड़की की यात्रा के दौरान उस वक्त याद आई जब मैं अपने बचपन के मित्र महेश (बदला हुआ नाम) से मिलने हरिद्वार स्थित उसके घर पर अचानक से पहुँचा। घर पहुँचते ही वहाँ मेरा स्वागत एक तेज़, कर्कश और ग़ुस्से से भरी आवाज़ ने यह कहते हुए किया, ‘तू भूल गया हमारे साथ कैसा व्यवहार किया था? लोग इस तरह दुश्मन या जानवर को भी ट्रीट नहीं करते हैं। सारी बातों को भूलने और छोड़ देने का कह रहा है… ऐसे-कैसे भूल जाऊँ सब-कुछ… तुम तो एकदम सीधे हो। यही तो सुनहरा मौक़ा है अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेने का।’ कुछ पलों के लिए तो मैं एकदम ठिठक कर रुक गया। मुझे लगा, कहीं पूर्व में मुझसे ही तो कोई ऐसी गलती नहीं हो गई थी, जिसके लिए यह ताने मेरे बारे में मित्र को दिए जा रहे हों? लेकिन, अगले ही पल मुझे ध्यान आया कि मैं मित्र व उसके परिवार के साथ लगभग 15 साल बाद मिल रहा हूँ और हमारी अंतिम मुलाक़ात बेहद संजीदगी भरे माहौल में हुई थी।
ख़ैर, शुरुआती औपचारिक बातचीत के बाद जब मैंने महेश से उपरोक्त बात के विषय में पूछा, तो उसने हमारे एक और मित्र के बारे में याद दिलाते हुए बताया कि किस तरह उसने अपनी सफलता के घमंड में आकर परिवारजनों के समक्ष उसकी बेइज़्ज़ती करी थी। हालाँकि, कुछ वर्षों बाद, जब वह थोड़ा परिपक्व हो गया तो उसने महेश व उसके परिवार से उनके घर जाकर, हाथ जोड़कर माफ़ी भी माँगी थी। लेकिन आज जब महेश ने आवश्यकता पड़ने पर बेइज़्ज़ती करने वाले उसी मित्र की मदद करने का निर्णय लिया तो उसके परिवार द्वारा विरोध जताया जा रहा था।
स्थिति की गम्भीरता का आकलन करने के लिए जब मैंने महेश से उक्त घटना पर विस्तृत चर्चा करी तो पता चला कि उक्त घटना को हुए अब 7-8 वर्ष हो गए हैं। इस दौरान बुरा बर्ताव करने वाले मित्र ने ना सिर्फ़ कई बार अपने ग़लत व्यवहार के लिए सभी से माफ़ी माँगी है, बल्कि अपने परिवार के साथ महेश के सुख-दुःख में साथ भी निभाया है। वैसे कुछ हद तक महेश के परिवार की नकारात्मक प्रतिक्रिया सामान्य ही थी। शायद हम में से ज़्यादातर लोग ऐसी स्थिति में ना सिर्फ़ इसी तरह अपनी प्रतिक्रिया देते, बल्कि बदला लेने का मौक़ा भी तलाशते। ठीक उसी तरह जैसे महेश के परिवार द्वारा दूसरे मित्र का किसी परेशानी में होना, एक मौके के रूप में देखा जा रहा था और वे बदला लेने का सुझाव भी दे रहे थे।
पूरी बात सुन लेने व स्थिति पर मनन करने के बाद मेरे मन में एक ही प्रश्न बार-बार आ रहा था, ‘महेश के परिवार का यह व्यवहार क्या उनके खुद के सुख, चैन और शांति के लिए उचित है?’ शायद नहीं क्यूँकि गलती करने वाले के प्रायश्चित कर लेने के बाद भी नकारात्मक भावों को हर पल अपने मन में रख महेश का परिवार असल में खुद को ही तो सजा दे रहा था।
अक्सर दोस्तों, हम छोटे-मोटे नकारात्मक अनुभवों को अपने जीवन में इतनी ज़्यादा तवज्जो दे देते हैं कि ये छोटे नकारात्मक अनुभव नासूर बन, जीवन का उल्लास, ऊर्जा और सकारात्मकता को खत्म कर देते हैं और हम नकारात्मक नज़रिए के साथ अपना जीवन जीना शुरू कर देते हैं। यहीं नकारात्मक नज़रिया समय के साथ हमारे मन की शांति और ख़ुशी को खत्म कर देता है। जैसा मेरे मित्र महेश के परिवार के साथ अभी हो रहा था।
दोस्तों, नकारात्मक बातों, अनुभवों को हमेशा याद रखना मानवीय स्वभाव है और हम में से ज़्यादातर लोग आज भी ऐसा ही करते हैं और ऐसा करते वक्त भूल जाते हैं कि यह अंततः हमारी ख़ुशी, शांति और सुख को चुराकर ले जाएगा। लेकिन साथियों, अगर आपका लक्ष्य खुशहाल जीवन जीने का है तो आपको लोगों को माफ़ करना सीखना होगा। इसलिए नहीं कि आप बहुत बड़े दिलवाले या देवता अथवा भगवान बन गए हैं, बल्कि हमें ऐसा सिर्फ़ इसलिए करना है क्यूँकि हम अपने दिल, अपने मन को अनावश्यक बोझ से मुक्त रख, जीवन को सुख, चैन और शांति के साथ जीना चाहते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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