Jan 1, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को नव वर्ष २०२४ की मंगल कामनाएँ। ईश्वर करे कि आप अपने हर नये दिन की शुरुआत परम प्रसन्नता और प्रेम के साथ करें। वैसे भी आज हम नए जोश, नई उमंग, नये उल्लास, एक बेहतरीन सकारात्मक मूड और बहुत सारे सपनों और अपेक्षाओं के साथ नए वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। हम में से कुछ ने नये वर्ष के लिए कुछ संकल्प भी लिये होंगे और आज से निश्चित तौर पर उनपर काम करना भी शुरू कर दिया होगा। वैसे ऐसा हमारे साथ कोई पहली बार नहीं हो रहा है, पहले भी हमने कई बार नये साल के लक्ष्य बनाये थे, कुछ संकल्प भी लिये थे और उन्हें पूरा करने का प्रयास भी किया था। इतना ही नहीं उनमें से कुछ संकल्पों को समय से पूरा कर हमने अपने लक्ष्यों को पाया भी था। लेकिन जीवन को बदल देने वाले कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य इस यात्रा में बीच में ही छूट भी गए थे।
दोस्तों, अगर आप अपने जीवन में पीछे पलट कर देखेंगे तो पायेंगे कि अक्सर हमारे जीवन में कई चीजें बीच में ही अधूरी छूट जाती हैं। याने हम जीतने जोश के साथ नये लक्ष्यों को बनाते हैं, उतने जोश के साथ उन्हें पाने के लिए कार्य नहीं कर पाते हैं।इसके पीछे सामान्य मानव मनोविज्ञान याने ह्यूमन साइकोलॉजी है। चलिए इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेते हैं। जब हम बहुत छोटे थे और इस ज़िंदगी के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत बनाते हुए बड़े हो रहे थे। याने बढ़ती उम्र के साथ हम ख़ुद की क्षमताओं को खोजने, फिर पहचानने और अंत में उसे डेवलप करने का प्रयास कर रहे थे।
इसी दौर में जब आपने बैठना, उठना, चलना आदि शुरू किया था, तब आपको असंतुलित होते, गिरते या चोट लगते देख हमारे अपनों याने परिवार के बड़े लोगों ने कभी ना ख़त्म होने वाली डरावनी अभिव्यक्तियों के साथ हमारा मूल्यांकन करना शुरू कर दिया था। चूँकि उस वक़्त तक हमने अपनी इंद्रियों से समझना और सीखना शुरू कर दिया था। इसलिए परिवार और समाज से मिली अभिव्यक्ति और अनुभवों को हमने जस का तस अपने अंतर्मन में अंकित करना शुरू कर दिया। इसी वजह से हमारे मन में डर, आशंकाओं और अन्य नकारात्मक भाव और अभिव्यक्तियाँ जन्म लेने लगते हैं।
इन्हीं नकारात्मक अनुभवों, नकारात्मक भावों, नकारात्मक अभिव्यक्तियाँ और डर के कारण हम बीतते समय के साथ ख़ुद पर; ख़ुद की क्षमताओं पर संदेह करने लगते हैं। ख़ुद पर संदेह करने की यही आदत हमें कई बार लक्ष्यों को बीच में छोड़ने; अपनी दिशा बदलने या फिर हार मान लेने के लिए मजबूर कर देती है। जी हाँ दोस्तों, इसीलिए विपरीत स्थिति आते ही हमारा अंतर्मन हमें रुकने या दिशा बदलने का संकेत देता है। लेकिन दोस्तों, यही वह समय है जब आपको ख़ुद पर संदेह करने के स्थान पर चलते रहना होगा।
जी हाँ दोस्तों, जो लोग रुकावटों या विपरीत स्थितियों के आने पर रुकने के स्थान पर चलते रहने का निर्णय लेते हैं, वे ही अपने संकल्पों को पूरा कर पाते हैं। अगर आप भी इस नए वर्ष में लिए गए अपने संकल्पों को पूरा करना चाहते हैं; सफल होना चाहते हैं तो विपरीत परिस्थितियों, रुकावटों या फिर शुरुआती असफलताओं के दौर में रुकने, ख़ुद पर शक या संदेह करने के स्थान पर ख़ुद को कुछ नया सोचने के लिए प्रेरित करें। अर्थात् असफलता, रुकावट या किसी भी तरह की चुनौती से मिले अनुभव को काम में लेते हुए नया रास्ता खोजने का प्रयास करें। पूरी तरह रुकने के स्थान पर थोड़ी देर के लिए ठहर कर अपने अतीत के अनुभवों से मार्गदर्शन लेना, आपको बेहतर तरीक़े से कुछ नया सोचने और तरोताज़ा होने का मौक़ा देता है।
याद रखें, बदले हुए विचार आपके जीवन को बदलने की ताक़त रखते हैं। इसलिए उपरोक्त सूत्र काम में लें और धैर्य के साथ भरोसा रखें सब कुछ वैसा ही घटित होगा याने जीवन वैसा ही आकार लेगा, जैसा आपने तय किया था। क्योंकि, सुखद और उज्ज्वल भविष्य कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसका हमें इंतजार करना है, उसका तो हमें वर्तमान में जीते हुए निर्माण करना है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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