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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

वस्तुओं का नहीं रिश्तों का सम्मान करें…

Jan 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।


चलिए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत कुछ दिन पूर्व घटे एक क़िस्से से करता हूँ। पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए मुझे हाल ही में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सुबह के सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के पश्चात मैंने अपने समय का उपयोग सभी रिश्तेदारों से मिलने में लगाने का निर्णय लिया और इसकी शुरुआत अपनी एक कज़िन के साथ करी। जिसके साथ मैंने बचपन में काफ़ी मज़ेदार समय बिताया था।


शुरुआती कुछ घंटे तो मेरे उसी के साथ मस्ती-मजाक में बीत गये। उसके बाद मैंने उसे अपने साथ लिया और अन्य लोगों से मिलने के लिये चल दिया। यक़ीन मानियेगा साथियों, अतीत के सुनहरे पलों को याद करते-करते कब शाम हो गई मुझे पता ही नहीं चला। अचानक ही मेरी बहन मेरे पास आई और बोली, ‘दादा, चलना नहीं है क्या? तुम्हारे दामाद डंडा लिए मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।’ उसकी बात सुन पहले तो मुझे हंसी आई फिर समय की नज़ाकत को देख मैंने वहाँ सबसे विदा ली और नीचे पार्किंग में आ गया।


गाड़ी के पास पहुँच कर मैंने गाड़ी की चाबी अपनी बहन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘चल बेटा आज तू ही गाड़ी चला।’ असल मैं सालों पहले मैंने ही उसे कार चलाना सिखाया था। उन्हीं पलों को एक बार फिर जीने के लिए मैंने उसे गाड़ी चलाने के लिए कहा था। लेकिन मेरी आशा के विपरीत उसने मेरे निवेदन को नकारते हुए बोला, ‘दादा, अब मैंने गाड़ी चलाना छोड़ दिया है।’ मैंने एक बार फिर उस पर दबाव बनाते हुए कहा, ‘मजाक मत कर और चुपचाप गाड़ी चला।’ मेरी बात सुन वह मुस्कुराई और बोली, 'दादा मैंने पिछले दस-बारह सालों से गाड़ी नहीं चलाई है। अब वो पहले वाली बात कहाँ।’ इतना कह कर वो एक पल के लिये शांत हो गई फिर एकदम ठंडी आवाज़ में बोली, ‘दादा, शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता है।’


उसकी आवाज़ में अजीब सी हताशा देख मैंने चुप रहने का ही निर्णय लिया और गाड़ी में बैठ गया। कुछ देर पश्चात मैंने उससे विस्तार से बताने के लिए कहा तो वह बोली, ‘दादा, एक बार घर से गाड़ी निकालते समय मुझसे एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया था। चूँकि गाड़ी एकदम नई थी इसलिए घर पर सभी लोगों का मूड बहुत ख़राब हो गया था। इन्होंने तो उसके बाद कई दिनों तक मुझसे ढंग से बात भी नहीं करी। आज भी जब कभी वह घटना याद आ जाती है या उसकी बात निकलती है तो मुझे मजाक-मजाक में ताने मारे जाते हैं।’ उसकी बातें सुनते-सुनते मैं सोच रहा था कि दो-पाँच-दस हज़ार में ठीक हो जाने वाली चीज के कारण अपनों का दिल दुखाना; दिल के रिश्तों में गाँठ बाँध कर रखना कहाँ तक उचित है? विचार आते ही मैंने उसी पल गाड़ी रोकी और उसे ड्राइवर सीट पर बैठाते हुए, ज़बरदस्ती गाड़ी चलाने पर मजबूर किया।


मुझे नहीं मालूम मैं सही था या ग़लत। मेरा तो बस उस पल यही मानना था कि एक वस्तु की क़ीमत परिवार के सदस्य की भावनाओं से ज़्यादा नहीं हो सकती। अगर गाड़ी चलाना उसका पैशन था तो उसे गाड़ी अभी भी चलाना चाहिए और दूसरी बात; एक बार गलती हुई है इसका अर्थ यह कभी नहीं होता कि व्यक्ति उसी गलती को बार-बार जान-बूझकर दोहराएगा। याद रखियेगा दोस्तों, इस दुनिया में वस्तुएँ उपयोग करने के लिए होती हैं और रिश्ते निभाने के लिए; साथ देने के लिए। लेकिन होता अक्सर इसका उल्टा है। लोग वस्तुओं के मोह में फँसकर उससे तो रिश्ता बना लेते हैं और रिश्तों का उपयोग करने लगते हैं। अगर आप शांति पूर्ण रिश्तों के पक्षधर हैं तो तत्काल वस्तुओं को प्राथमिकता देने के स्थान पर अपनों को प्राथमिकता देते हुए उनका सम्मान करना शुरू कर दीजिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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