July 11, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है ग़लतियाँ करना या किसी कार्य को करते वक्त गलती हो जाना स्वाभाविक है। जब भी आप कोई नया कार्य करेंगे तो सम्भावना है कि उसे करते वक्त आप कोई ऐसी चूक कर जाएँ जो आपको मनचाहा परिणाम प्राप्त करने से वंचित कर दे। लेकिन अक्सर लोग किसी कार्य में मिली असफलता पर लोगों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं की वजह से मनचाहा परिणाम ना मिल पाने को अपनी असफलता मान लेते हैं। याद रखिएगा, लोगों की प्रतिक्रिया को आधार बनाकर, किसी कार्य में मिली असफलता को अपनी असफलता मान लेना, एक और बड़ी चूक या गलती है, जो आपको ईश्वर के द्वारा प्रदत्त इस अमूल्य उपहार ‘जीवन’ का मज़ा लेने से वंचित कर देती है।
जैसा मैंने पहले कहा, ‘गलती हो जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।’ जो लोग हमारी गलती अथवा चूक या फिर असफलता पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं या हमें अलग-अलग तमग़ों या उपाधियों से नवाज़ रहे हैं, उन्होंने भी अपने जीवन में कई ग़लतियाँ करी होंगी और सम्भावना तो इस बात की भी है उनमें से कुछ ग़लतियाँ हमारे द्वारा की गई ग़लतियों के समान ही होगी। हमारी ग़लतियों पर अपनी प्रतिक्रिया देने वाला कोई भी व्यक्ति अगर यह कहता है कि उसने कभी भी कोई गलती नहीं करी है, तो इसका मतलब हुआ उसने ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों या क्षमताओं का कभी उपयोग ही नहीं करा है।
जब भी आप जीवन में कुछ नया, कुछ हट कर करेंगे या फिर रिस्क लेंगे, तब बहुत अधिक सम्भावना है कि आप ग़लतियाँ करेंगे। गलती करना क़तई बुरा नहीं है। ग़लतियों के विषय में तो मैं आपको एक ही सलाह देना चाहूँगा, अगर जीवन के सही मज़े लेना चाहते हैं तो ग़लतियों को देखने के अपने नज़रिए को बदल डालिए। चलिए, इसे हम इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक, महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन के जीवन में घटी एक घटना से समझने का प्रयास करते हैं।
यह घटना तब की है, जब एडिसन को बल्ब बनाने के लिए किए जा रहे प्रयोगों में लगातार असफलता मिल रही थी। प्रयोग में मिली असफलता के उस दौर में एक दिन एक पत्रकार एडिसन साहब के पास उनका इंटरव्यू लेने के लिए पहुँचा। इंटरव्यू के दौरान उस पत्रकार ने एडिसन से एक प्रश्न किया, ‘मैंने सुना है, आप बल्ब का अविष्कार करने के लिए किए गए प्रयोगों में सौ से ज़्यादा बार असफल हो गए हैं, क्या यह सही है?’ प्रश्न सुनते ही एडिसन बोले, ‘असफल? यह क्या होता है? मैंने तो सौ से अधिक ऐसी तकनीकें खोजी हैं, जो बल्ब के अविष्कार में सहायक नहीं हैं।’ असल में साथियों उन्होंने ग़लतियों या असफलता को सफलता की राह का रोड़ा नहीं बल्कि सफलता की राह में पड़ने वाला एक पड़ाव माना था और हर असफलता से सीख लेकर एक नया प्रयास करा था और अंततः बल्ब का अविष्कार कर सफलता का स्वाद चखा था। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘ग़लतियाँ करें, एक नहीं हज़ार करें, लेकिन एक ही गलती को बार-बार ना करें।’ जी हाँ साथियों, एक ही गलती को बार-बार दोहराने को हम गलती नहीं मान सकते, यह तो आपके द्वारा चुना गया एक विकल्प है या गलती को दोहराने की आपकी इच्छा है।
साथियों जब भी आप कोई नया कार्य करते हैं, आपको उपलब्धि या सफलता अथवा असफलता के रूप में परिणाम मिलते हैं। जब सफलता मिलती है तब तो कोई दिक़्क़त नहीं है। लेकिन जब असफलता मिलती है तो साथ में आलोचना भी मिलती है। इसलिए मेरी नज़र उपलब्धि और आलोचना दोनों पर होनी चाहिए जो कि रिश्ते में भाई-भाई कहलाते हैं। जीवन में जैसे-जैसे उपलब्धियाँ बढ़ेंगी, तारीफ़ के साथ आलोचना भी बढ़ेगी। याद रखिएगा, तारीफ़ हो या आलोचना दोनों ही लोगों की प्रतिक्रियाएँ हैं और प्रतिक्रियाओं से हमारे जीवन स्तर या गुणवत्ता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। जो बात हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, वह यह है कि हमने अपनी ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से पूरा किया है या नहीं।
अंत में इतना ही कहना चाहूँगा, जिस कार्य को करने में डर लगे, उसी को करने का नाम साहस है। हम अपने जीवन में वैसे ही बन पाते हैं जैसा हमें स्वयं पर विश्वास होता है। इसलिए दोस्तों खुद पर भरोसा रखें और इस बात की चिंता बिलकुल छोड़ दें कि लोग क्या कहेंगे। उनकी परवाह करने की बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है, वे तो हर हाल में कुछ ना कुछ कहेंगे। अगर आप अपना जीवन अच्छे से जीना चाहते हैं तो उसे अपने विचारों के सृजन में लगाएँ ताकि यही कहने वाले लोग कह सकें, ‘वाक़ई इनमें कुछ तो ख़ास है!!!’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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