Nirmal Bhatnagar
वाणी की शक्ति…
Nov 19, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, गुरुकुल में संध्या के समय सभी बच्चे आपस में हंसी-मजाक और मस्ती कर रहे थे। मस्ती-मजाक के दौरान ही सभी बच्चों में चर्चा छिड़ गई कि इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है? हर बच्चे का अपना अलग मत था। कोई कुछ कहता था, तो कोई और कुछ, जब काफ़ी देर तक इस पारस्परिक विवाद का समाधान नहीं निकला तो सभी शिष्य मिल कर गुरु के पास गए और उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया और अंत में अपने प्रश्न का हल गुरुजी से पूछा।
प्रश्न सुनते ही गुरुजी अपने स्वभाव के विरुद्ध एकदम नाराज़ हो गये और चिढ़ते हुए ग़ुस्से में बोले, ‘क्या अनाप-शनाप बातों पर अपना वक़्त ज़ाया कर रहे हो? तुम सभी बच्चों की बुद्धि ख़राब हो गई है क्या? इन निरर्थक प्रश्नों पर अपना समय बर्बाद करने से क्या मिलेगा? चलो भागो यहाँ से।’ इतना कहकर गुरुजी वहाँ से चले गए। हमेशा शांत रहने वाले गुरु से किसी भी शिष्य को इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। इसलिए उनके इस अनपेक्षित व्यवहार से सभी शिष्य नाराज़ हो उठे और आपसी बातचीत में अपने गुरु की आलोचना करने लगे।
कुछ देर पश्चात अचानक से ही गुरुजी एक बार फिर शिष्यों के पास पहुँचे और उनकी तारीफ़ करते हुए बोले, ‘मुझे तुम सब पर गर्व है। मैंने हमेशा देखा है तुम लोग कभी भी अपना एक क्षण भी बर्बाद नहीं करते। देखो आज भी अवकाश के समय में तुम सब लोग बौद्धिक चर्चा कर रहे हो।’ इस बार गुरु के मुँह से प्रशंसा सुन सभी शिष्यों के चेहरे खिल उठे। अब वे सब खुश थे और गुरु से मिली तारीफ़ की वजह से उन सबका आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ गया था और स्वाभिमान जाग गया था।
कुछ देर तक तो गुरुजी अपने शिष्यों को खुश देख, मंद-मंद मुस्कुराते रहे और फिर उनके पास जाकर उनें समझाते हुए बोले, ‘प्रिय शिष्यों, आज निश्चित तौर पर तुम सभी को मेरा व्यवहार थोड़ा विचित्र लगा होगा। दरअसल, मैंने ऐसा अजीब सा व्यवहार जानबूझकर किया था। असल में मैंने ऐसा सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे प्रश्न का जवाब देने के लिए करा था। जब तुम्हारे प्रश्न के जवाब में मैं तुम लोगों पर चिढ़ा था, तब तुम सब लोग मुझसे नाराज़ हुए थे और इसीलिए मिलकर मेरी आलोचना कर रहे थे। लेकिन कुछ देर बाद जब मैंने तुम लोगों की तारीफ़ करना शुरू किया तो तुम सभी लोग मेरी आलोचना करना बंद करते हुए अपना ग़ुस्सा त्यागकर, खुश हो गए। इस आधार पर देखा जाए बच्चों तो इस दुनिया में वाणी से बढ़कर शक्तिशाली कुछ और नहीं है।
बात तो दोस्तों गुरुजी की एकदम सही थी क्योंकि उनकी वाणी ने ही बच्चों की सोच, व्यवहार और बर्ताव को अच्छा और बुरा बनाया था। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वाणी से ही मित्र को शत्रु और शत्रु को मित्र बनाया जा सकता है। इसीलिए हमारे यहाँ कहा जाता है, ‘बोले गए शब्द ही एकमात्र ऐसी चीज है जिनकी वजह से इंसान या तो दिल में उतर जाता है या फिर दिल से उतर जाता है।’ इसीलिए दोस्तों, हमें ईश्वर प्रदत्त इस शक्तिशाली विशेषता का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिए और साथ ही हर पल कोशिश करना चाहिए कि हमारी वाणी का माधुर्य लोगों को हमारी ओर आकर्षित कर सके और हम लोगों के बीच में लोकप्रिय हो सकें। वैसे भी दोस्तों, नकारात्मक लहजे और क्रोध के साथ अपनी बात को कह पाना संभव नहीं है।
यही बात कबीरदास जी ने अपने दोहे में भी हमें समझाते हुए कहा है, ‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।’ अर्थात् मनुष्य को ऐसी वाणी बोलना चाहिए जिसे सुनना सामने वाले को अच्छा लगे; जिसे सुन कर सामने वाले को सुख की अनुभूति का एहसास हो और साथ ही बोलने के बाद हम स्वयं भी आनंद का अनुभव कर सकें। सही कहा ना दोस्तों? अपनी प्रतिक्रिया देकर बताइएगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com