Oct 8, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक पौराणिक कथा से करते हैं। एक बार दैत्यराज शकुनि के अति महत्वाकांक्षी पुत्र वक्रासुर तीनों लोक के स्वामी बनने की इच्छा लिए कहीं जा रहे थे। तभी रास्ते में अचानक ही उनकी मुलाक़ात देवर्षि नारद से हो गई। वक्रासुर ने देवर्षि नारद जी को प्रणाम किया और एक दूसरे का कुशलक्षेम जानने के बाद नारद जी से प्रश्न किया, ‘देवर्षि कृपया मेरा मार्गदर्शन करें और बताएँ कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से कौन से देव को तपस्या से जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है?’ नारद जी बोले, ‘युवराज! लगता है, वरदान पाने की इच्छा के साथ तुम प्रभु को प्रसन्न करने के लिए तप करने का इरादा लिए हो।’ वक्रासुर बोला, ‘जी देवर्षि! मैं इस प्रयोजन के लिए कितना भी मुश्किल या कठोर तप करने के लिए तैयार हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए।’ देवर्षि नारद बोले, ‘तू सुनो वक्रासुर, ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से भगवान महेश याने भगवान शिव सबसे भोले और कृपालु हैं। वे शीघ्र संतुष्ट और प्रसन्न हो जाते हैं।’
इतना कहकर देवर्षि नारद जी वहाँ से चले गये और वक्रासुर कुछ विचार कर तप करने का निर्णय लिये केदार पर्वत की और चल दिया। वहाँ पहुँचकर उसने सबसे पहले एक हवन कुंड बनाया और फिर उसमें अग्नि प्रज्वलित कर अपने शरीर के मांस के टुकड़ों से हवन करने लगा। इस तरह हवन करते-करते छह दिन बीत गये और उसके शरीर का सारा मांस ख़त्म हो गया। अर्थात् अब उसका शरीर मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया था, लेकिन इससे भी उसके तप में कोई कमी नहीं आई और सातवें दिन उसने तलवार से अपना शीश काट कर यज्ञ में आहुति के रूप में डालना चाहा। उसी वक़्त सहसा भगवान शिव, पार्वती सहित प्रकट हुए और वक्रासुर के खड़ग वाले हाथ को थामते हुए बोले, ‘वत्स! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। पुत्र! वर माँगो।’
खड़ग वाला हाथ भगवान शिव द्वारा पकड़ने मात्र से ही वक्रासुर का सारा दर्द, सारी थकान ख़त्म हो गई और उसका शरीर पहले से कई गुना ज़्यादा अच्छा याने स्वस्थ और शक्तिशाली बन गया। सबसे पहले वक्रासुर ने भगवान शिव और पार्वती जी को प्रणाम करा और पूर्व में तय अमरता के साथ सारे संसार का शासक होने का वरदान माँगने के विषय में सोचने लगा किंतु माँ पार्वती का रूप देख कर उसने अपना निर्णय बदला। अब वह माँ पार्वती को पाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भगवान शिव से बोला, ‘भगवान मुझे ऐसा वर दीजिए कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूँ, वह भस्म हो जाये।’
भगवान शिव ने उसे ‘तथास्तु’ कहा और माँ पार्वती के साथ जाने लगे। वक्रासुर शायद इसी मौक़े की तलाश में था। भगवान शिव के ‘तथास्तु’ कहते ही वह उनकी और लपका और उनके सिर पर अपना हाथ रखने का प्रयास करने लगा। इसके पीछे उसका उद्देश्य भगवान शिव रूपी काँटे को हमेशा के लिए हटाना और माँ पार्वती को पाने का जतन करना था। भगवान शिव तत्काल उसकी योजना समझ गये और उससे बचने के लिए वहाँ से चले गये। वक्रासुर भी कहाँ मानने वाला था। वह भी भगवान शिव के पीछे हो लिया।
भगवान शिव उस असुर से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगे। तभी अचानक उनके मन में एक विचार कौंधा कि मुझे भगवान विष्णु से इस विषय में मदद लेना चाहिये। वे तत्काल भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उन्हें पूरा वृतांत बताते हुए बोले, ‘प्रभु, बचाइए मुझे। यह असुर मुझसे वरदान पाकर, मुझे ही भस्म कर देना चाहता है।’ भगवान विष्णु ने भगवान शिव को धैर्य रखने का कहा और एक मोहिनी का रूप धारण कर असुर का विनाश करने का निर्णय लिये, उस दिशा में चलने लगे जहाँ से वक्रासुर आ रहा था। कुछ ही देर में वक्रासुर का सामना मोहिनी का रूप धरे भगवान विष्णु से हो गया। एक अपूर्व सुंदरी को अचानक अपने सामने देख वक्रासुर अचकचा गया और एकटक उन्हें देखते हुए सोचने लगा कि यह सुंदरी तो माँ पार्वती से भी सुन्दर है और अब मुझे इसे ही अपनी पत्नी बनाना चाहिए।
अभी वह इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि मोहिनी एकदम से बोली, ‘हे दैत्यराज, इन सुनसान जंगलों में यूँ मारे-मारे क्यों फिर रहे हो?’ वक्रासुर बोला, ‘मैं शिव का पीछा कर रहा हूँ सुंदरी। वह मुझे धोखा देकर यहीं कहीं छुप गया है। मैं उसे भस्म कर उसकी सुंदर पत्नी को पाना चाहता हूँ।’ मोहिनी एकदम से बोली, ‘तो क्या उसकी पत्नी मुझसे भी ज़्यादा सुंदर है?’ वक्रासुर बोला, ‘हाँ! वह सुंदर तो बहुत है, पर तुमसे अधिक नहीं। इसलिए अब मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ।’ मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली, ‘ज़रूर दैत्यराज, तुम्हें देख कर मैंने विवाह ना करने का अपना विचार त्याग दिया है। परन्तु मेरी एक शर्त है, तुम्हें मेरे समान नृत्य करना होगा।’ शर्त सुनते ही वक्रासुर सोच में पड़ गया। असल में वो नाचना नहीं जानता था। मोहिनी उसकी असमंजसता को भाँपते हुए बोली, दैत्यराज! चिंता ना करो मैं अभी थोड़ी देर में ही तुम्हें नाचना सिखा देती हूँ।’ इतना कहकर मोहिनी ने वक्रासुर को नक़ल करने के लिए कहा और तरह-तरह की नृत्य मुद्रायें बनाने लगी और वक्रासुर उन मुद्राओं को दोहराने लगा।
कुछ ही देर बाद मोहिनी ने अपना एक पैर मोड़कर ऊपर उठाया, एक हाथ को आकर्षक मुद्रा बनाते हुए अपने होंठ पर रखा और दूसरे हाथ को अपने सिर के ऊपर रख लिया। इस बार भी वक्रासुर ने उनकी नक़ल की और पहले एक पैर पर खड़ा हुआ, फिर अपने एक हाथ को अपने होंठ पर रखा और अंत में अपने दूसरे हाथ को अपने सिर पर रख लिया। उसी पल अचानक एक बिजली कौंधी और देखते ही देखते वक्रासुर का जिस्म धू-धू कर जलते हुए भस्म हो गया। भगवान शिव का वक्रासुर को दिया वरदान अब सार्थक हो चुका था। मोहिनी ने वापस अपने मूल रूप को धरा और भगवान शिव के पास जाकर पूरा वृतांत कह सुनाया।
दोस्तों, जिस तरह वक्रासुर ने वरदान को ही अपने मृत्यु की वजह बना लिया, ठीक इसी तरह की गलती अक्सर मनुष्य अपनी क्षमताओं के अहंकार के कारण निम्न 6 विकारों या दोषों याने काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि में फँस कर किया करता है, जो अंततः उसके जीवन की सबसे बड़ी परेशानी बन जाती है। अगर आपका लक्ष्य दोस्तों अपनी क्षमताओं को अपनी ताक़त बनाकर खुलकर जीवन जीना है, तो इन विकारों से बचकर मूल्य आधारित जीवन जीना शुरू करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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