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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

विचारों के बीज…

Jan 31, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बोले गए शब्द किसी को जीवन दे सकते हैं तो किसी के जीवन को नरक भी बना सकते हैं क्योंकि शब्द विचारों को जन्म देते हैं, विचार हमारी सोच को दिशा देते हैं और दिशा हमारे जीवन की दशा तय करती है। इसलिए दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को आनंद के साथ जीना चाहते हैं, तो नकारात्मक नज़रिया रखने वाले लोगों की बातों, उनके द्वारा दिए गए सुझावों और उनके साथ से दूरी बना लें। अन्यथा आपके जीवन में उनके द्वारा कहे गए शब्दों का प्रभाव तत्काल ही नज़र आने लगेगा। चलिए अपनी बात को मैं आपको दो उदाहरणों से समझाने का प्रयास करता हूँ-


पहला उदाहरण - एक सज्जन अपने मित्र महेश से मिलने के उद्देश्य से उनके घर पहुंचे। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने पाया कि महेश की पत्नी तो आराम कर रही है और महेश घर के काम निपटाने में व्यस्त हैं। उन सज्जन को महेश का घर के काम में हाथ बंटाना थोड़ा अटपटा लगा और उन्होंने महेश पर ‘जोरू का ग़ुलाम होने का ठप्पा’ लगा दिया। कुछ ही दिनों में यह बात महेश के मित्रों को पता चल गई और उनमें से कई मित्रों ने महेश का मज़ाक़ बनाना शुरू कर दिया।


कुछ दिनों बाद वे सज्जन एक बार फिर महेश से मिले और उसे समझाने लगे कि जोरू का ग़ुलाम बनने के भविष्य में उसे क्या नुक़सान होंगे और किस तरह उन्होंने अपनी बीवी को क़ाबू में रखा हुआ है। उन सज्जन की बात आज महेश को उचित लगी और उसने अपनी बीवी को उन सज्जन के बताए तरीके से ट्रीट करना शुरू कर दिया। महेश की बीवी, जो स्वयं एक प्राइवेट कम्पनी में वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्यरत थी, ने शुरू में तो महेश के व्यवहार को नज़रंदाज़ करा। लेकिन जब बात सीमा से बाहर जाती लगी तो दोनों के बीच का संतुलन गड़बड़ा गया और हंसते-खेलते, मज़े से रहते पति-पत्नी के रिश्ते के बीच दरार आ गई।


दूसरा उदाहरण - महेश और सुरेश दोनों बचपन के दोस्त थे। ईश्वर की कृपा से महेश एक बड़ा व्यापारी बन गया था और इसके ठीक विपरीत सुरेश एक दुकान पर छोटी-मोटी नौकरी करके किसी तरह अपने जीवन को ख़ुशी-ख़ुशी चला रहा था। एक दिन दोनों दोस्त काफ़ी अरसे बाद मिले, शुरुआती बातचीत के बाद महेश ने सुरेश से पूछा कि तुम कहाँ नौकरी करते हो? सुरेश ने एकदम सादगी से जवाब देते हुए बताया कि वह पास ही की एक दुकान पर 20000 रुपए प्रतिमाह पर नौकरी करता है।


सुरेश की पगार सुनते ही महेश ने आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘यार इतने कम पैसों में तुम कैसे काम कर लेते हो? बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्च, सपने आदि सब कैसे मैनेज करोगे?’ सुरेश ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘बस यार जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं। कभी सर ढँक लेता हूँ, तो कभी पैर।’


सुरेश और महेश की मुलाक़ात तो कुछ घंटों में खत्म हो गई, लेकिन पगार से असंतुष्टि के बीज ने सुरेश के मन में जगह बना ली थी। उस दिन के बाद से सुरेश का कार्यालय में मन लगना बंद हो गया और वह सबसे रूखा-रूखा व्यवहार करने लगा। इसके साथ ही सुरेश ने अपने मालिक से पैसे बढ़ाने के विषय में बात करी, जिसे मालिक ने उसके कार्य करने के तरीके और लोगों के व्यवहार के बारे में बताते हुए नकार दिया। मालिक के व्यवहार को सुरेश ने एकतरफ़ा माना और नौकरी से त्यागपत्र दे घर बैठ गया।


दोस्तों, अगर उपरोक्त दोनों उदाहरणों को बारीकी से देखा जाए तो आप पाएँगे कि किसी के कहे शब्दों या लफ़्ज़ों ने सीधी-साधी चल रही ज़िंदगी को बेपटरी कर दिया था। इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में आपको नकारात्मक बातों, विचारों और लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी। जी हाँ साथियों, मन में बोए विचारों के बीज ही हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों तय करते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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