July 18, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जब भी कोई अच्छे उद्देश्य को लेकर कार्य करता है तो समाज का एक तबका उसका विरोध ज़रूर करता है। इसके पीछे मेरी नज़र में दो मुख्य कारण हो सकते हैं। पहला, हितों या व्यक्तिगत लाभों का टकराना और दूसरा, विरोधियों का मूर्ख होना। अगर विरोध का कारण पहला है, तो इससे बचने के लिए आपको सभी लोगों को कार्य के फ़ायदे, उसके पीछे के उद्देश्य आदि को तर्क के आधार पर बताकर जागरूक करना होगा और अगर विरोध मूर्खता पर आधारित है तो इससे आप सिर्फ़ रचनात्मक तरीके से ही निपट सकते हैं। अन्यथा उनके मूर्खता पूर्ण कार्य आपके अंदर नकारात्मक भावों को जन्म देंगे और आपको नकारात्मक प्रतिक्रिया को देने को मजबूर करेंगे। इससे बचने के लिए आपको अपने अंदर सकारात्मकता के बीज बोने होंगे और साथ ही इस भाव को विकसित करना होगा कि ‘जो घट रहा है, मेरे फ़ायदे के लिए घट रहा है।’ अन्यथा मूर्खों की मूर्खता आपको उनके स्तर तक गिराएगी और उस स्तर पर वे अपने मूर्खतापूर्ण अनुभवों के साथ आपको हरा देंगे और आपकी ख़ुशी और शांति को हर लेंगे। चलिए अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
बात कई साल पुरानी है, एक बहुत ही पहुंचे हुए फ़क़ीर घूमते-घूमते मूर्ख और नास्तिकों के गाँव पहुँच गए। गाँव वालों ने अपने स्वभाव के आधार पर फ़क़ीर का विरोध किया और क्रोध में आकर, उसे ढोंगी ठहराते हुए, नीचा दिखाने के उद्देश्य से जूतों की माला पहना दी। जूतों की माला पहनते ही फ़क़ीर मस्ती से भर गया और खिलखिलाकर हंसते हुए झूमने-नाचने लगा। इसके बाद फ़क़ीर ने जूतों को बड़े गौर से देखा और जूतों को दिल से लगाकर एक बार फिर मस्ती में उछलने-कूदने लगा।
फ़क़ीर के इस बर्ताव पर गाँव वाले अचंभित थे। उन्हें फ़क़ीर से कुछ दूसरे आचरण याने नकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। लेकिन यहाँ तो स्थिति एकदम उनकी सोच के उलट थी। वे आश्चर्यचकित होते हुए बोले, ‘तुम कर क्या रहे हो? हमने तुम्हें फूलों की नहीं जूतों की माला पहनाई है।’ फ़क़ीर ने हंसते हुए कहा, ‘मेरे जूते फट गए थे इसलिए मैंने कल ही परमात्मा से प्रार्थना की थी कि जूते दिलवाओ। मैं तो बस दो की आशा रखता था, मैंने तो यह सोचा भी नहीं था कि वह इतने दिलवा देगा। परमात्मा भी कभी-कभी मेरी प्रार्थना सुनता है, इस बार सुन ली।’ इतना कहते हुए फ़क़ीर ने आसमान की ओर देखा और परमात्मा को धन्यवाद देता हुआ बोला, ‘है मालिक तेरी बड़ी कृपा है। तूने इतनी जल्दी मेरी मुराद पूरी कर दी।’ इसके पश्चात फ़क़ीर एकदम शांत हो गया और गाँव वालों की ओर देखता हुआ बोला, ‘रही बात आप लोगों की तो मैं यह जान के खुश हूँ कि जो आपके पास था आप दान करने के लिए लाए तो। कई लोग तो सब-कुछ होने के बाद भी दान देना नहीं चाहते हैं। वे तो जूते भी नहीं लाते। ऐसा लगता है मानों उनके पास कुछ है ही नहीं। कम से कम आपके पास जो था आप लेकर आए तो। आप सभी का धन्यवाद।’
बात तो सही है दोस्तों, जिसके पास जो होगा वह वही देगा। मूर्खों के पास मूर्खता है, वह हमेशा मूर्खता पूर्ण प्रतिक्रिया देगा। अज्ञानी के पास अज्ञान है, वह तर्कहीन मूर्खतापूर्ण व्यवहार करेगा। इसी तरह जिसके पास क्रोध होगा वह क्रोध देगा, जिसके पास गालियाँ है गालियाँ देगा। ठीक इसी तरह जो आशावान है, वह दूसरों को आशा देगा, जिसके पास जोश है वह दूसरों को जोश देगा, जिसके पास भक्ति है वह तुमको भक्त बनना सिखाएगा। जिसके पास दया है, वह दया दिखाएगा।
इसलिए दोस्तों, हमें लोगों की मूर्खता पर नाराज़ होने के स्थान पर, सबसे पहले यह देखना चाहिए कि हमारे पास क्या है? उनके पास जो था उन्होंने दिया, हमारे पास जो होगा हम वह देंगे। ऐसी स्थिति में विचार सबसे महत्वपूर्ण हैं, विचार ही आपको नकारात्मक प्रतिक्रिया देने से बचाएँगे और आप रचनात्मक व्यवहार कर सकेंगे। विचार कर देखिएगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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